बसंत पंचमी : सफल बनाने वाले शुभ संकल्पों का समय
बसंत पंचमी मौसम के खुशनुमा बदलाव, सकारात्मकता व उल्लास की प्रतीक है। बेहतर है कि इस पावन अवसर पर ज्ञान के साधक युवा व किशोर कुछ अच्छे संकल्प लें और उन्हें जीवन में उतार लें। ताकि उनके व्यक्तित्व में सफलता दिलाने वाले अच्छे गुणों का विकास हो।
कुमार गौरव अजीतेन्दु
बसंत पंचमी का त्योहार आने वाला है। जो मौसम में नूतन बदलाव के साथ विद्या की देवी मां सरस्वती से भी जुड़ा है। जो शिक्षा प्राप्ति व अध्ययन कर रहे किशोरों व युवाओं को अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देने वाली शक्ति मानी जाती हैं। दरअसल ,बसंत पंचमी से ही होली की भी सुगंध आने लगती है और गुलाल, पुए से घर-आंगन महक उठता है। प्रसाद में चढ़ने वाले बेर का मीठा स्वाद हमको नये उल्लास से भर देता है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। उनका यह पर्व हमसे बहुत कुछ कहता है। तो आइये, इस बसंत पंचमी पर किशोरों व युवाओं समेत हम सभी कुछ संकल्प लेकर इस पर्व की सार्थकता में अपना योगदान दें जिससे सबके बेहतर भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त हो।
आत्मसम्मान की भावना
यह सबसे पहला संकल्प होना चाहिए। जो मनुष्य स्वयं का सम्मान नहीं करता, उसे किसी और से इज्जत कैसे मिल सकती है? इसलिए अपना, अपने परिवार, देश और संस्कृति का सम्मान करना सीखना चाहिए। ‘आत्म’ शब्द से मतलब यहां केवल खुद से नहीं है। बल्कि हम हर उस व्यक्ति, वस्तु और विचार का सम्मान करें जिनसे हमारा जीवन जुड़ा है।
सकारात्मक बनें
यह अगला महत्वपूर्ण बिंदु है। निगेटिविटी एक ऐसी बीमारी है, जिससे सबकुछ बर्बाद हो जाता है। जब हम किसी भी चीज का सकारात्मक पक्ष देखने लगते हैं तो स्थितियां बदलने लगती हैं और बुराइयों का अंत होने लगता है। नकारात्मक लोगों से न कभी दोस्ती करनी चाहिए और न ही उनकी कही किसी निगेटिव बात को मन में रखना चाहिए। हम जिस काम के बारे में सोचोगे कि वह हमसे हो सकता है, वह काम सचमुच हमसे हो जाएगा। अगर पहले ही सोच लिया कि कोई काम हम नहीं कर सकते, तो वह काम करना हमको बहुत कठिन लगने लगेगा।
ज्ञान के रूप अनेक
जब भी कभी ज्ञान की बात आती है तो मन में मोटा सा चश्मा पहनकर किताबों में सिर घुसेड़े आदमी का चित्र हमारी आंखों के सामने आ जाता है। हम किसी ऐसे इंसान की कल्पना करने लगते हैं जिसके पास खूब बड़ी-बड़ी डिग्रियां, जैसे पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी आदि हों! जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ज्ञान कोई संकुचित क्षेत्र का विचार नहीं होता। हमारी रुचि अगर साहित्य, नृत्य-संगीत, कुकिंग, स्पोर्ट्स या चाहे जिस ओर हो, उसमें ही पूरी लगन से दक्षता प्राप्त करें। हमारा उसी क्षेत्र में नाम होगा।
बुद्धि का सदुपयोग
अब आते हैं इस एक अत्यंत जरूरी प्वाइंट पर। हम में से हरेक के पास कोई न कोई गुण होगा। कोई पढ़ने में तेज होगा तो किसी को जूडो-कराटे या किसी और क्षेत्र में दिलचस्पी होगी। हमारे पास चाहे जिस प्रकार का भी गुण हो, उसका सही उपयोग करना चाहिए। जैसे जो युवा पढ़ने में तेज हों तो वे किसी कमजोर बुद्धि के सहपाठी का मजाक मत उड़ायें या फिर अपनी बुद्धि को ज्यादा शरारत करने में मत लगा दें। अगर कोई कराटे सीखता हो तो बिना मतलब बाकी दोस्तों पर उस आर्ट की धौंस मत दिखाएं, न ही बिना वजह झगड़ें।
सही-गलत को पहचानना
जैसे-जैसे हम उम्रदराज होते हैं, बाहरी दुनिया में कई प्रकार के लोग मिलते जाएंगे। उनमें से कौन अच्छा है, कौन बुरा? ये पहचानने की समझ अब अपने अंदर विकसित करनी है। जिन लोगों में सही-गलत को समझ पाने की क्षमता होती है, वे हमेशा सफल होते हैं। अपनी इसी क्षमता के बल पर हम अपने लिए उचित कैरियर भी चुन सकेंगे। इस गुण के विकास में घर के अनुभवी लोगों की बातें सुनना और अखबार, प्रिंट हो या ऑनलाइन, पढ़ने की आदत आपकी सहायता करेगी।