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बदलावों संग बदलना सीखें

04:01 AM Dec 17, 2024 IST
घ्रर परिवार में रिश्तों को बचाने और सहेजने की कला

 

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आज के दौर में संवाद के साधनों से लेकर कामकाजी दुनिया तक, बहुत कुछ बदला है। जिसका असर रिश्तों के ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। ऐसे में अपनों की सोच और व्यवहार में यदि परिवर्तन नजर आये तो भी रिश्ते निभाने की कोशिश जरूरी है। बदलावों को सहजता से लेना व सराहना-आलोचना स्वीकारना सीखें। बेहतर यह भी कि रिश्तों-नातों को स्पेस और सम्मान दिया जाये।

डॉ. मोनिका शर्मा
रिश्ते जीवन भर साथ चलते हैं। गुजरते समय और परिस्थितियों के मुताबिक बदलते भी हैं। कई बार हम पारिवारिक सम्बन्धों की तुलना दोस्तों, सहकर्मियों और आस-पड़ोसियों के साथ बने रिश्तों से करने लगते हैं। ऐसे में रिश्ते-नातेदारी के बाहर जिये-देखे जा रहे ऐसे जुड़ाव को बेहतर और सहज मानने लगते हैं। जबकि इनके साथ जुड़ाव के बावजूद भी एक दूरी बनी रहती है। यही कारण है उनके व्यवहार या सोच में आए बदलाव उतने स्पष्ट नहीं दिखते जितने कि करीबी रिश्तों में नजर आते हैं। लाजिमी भी है क्योंकि रिश्ते बरसों-बरस पीढ़ियों तक साथ चलते हैं। ऐसे में सम्बन्धों के सहज निबाह के लिए वक्त और जीवन की वास्तविकता के मोर्चे पर आए बदलावों को सहजता से लेना सीखें।
बदलाव को सहजता से लीजिए
साइंस फोकस में छपे एक लेख के मुताबिक, इन्सान पहले की अपेक्षा बंधन और जुड़ाव को कम ही जी पा रहा है। लाजिमी भी है क्योंकि अब जीवन से बहुत कुछ नया जुड़ गया है। आज के डिजिटल दौर में संवाद करने के साधनों से लेकर कामकाजी दुनिया तक, बहुत कुछ बदला है। जिसका असर रिश्तों के ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। वजह चाहे जो हो पर आज हर कोई व्यस्त है। बुजुर्गों की सोच से लेकर किशोरों के व्यवहार तक, सब कुछ नया रंग-ढंग ओढ़े है। कहीं बेवजह की औपचारिकताएं ज़िंदगी का हिस्सा बन गई हैं तो कहीं हद से ज्यादा खुलेपन को जिया जा रहा है। ऐसे में बच्चे हों या बड़े, रिश्तों के संसार में हर पल वैचारिक संघर्ष की स्थिति में नहीं जिया जा सकता। अपनेपन की दुनिया को अपने मन के मुताबिक ही देखा-समझा जाना मुमकिन नहीं। हालांकि रिश्तों में समय और स्थिति के मुताबिक अपने विचार रखना भी जरूरी होता है पर यह उलझनें बढ़ाने वाला ना हो। रिश्तों-नातों को सहेजने के लिए अपनों को जज करने के बजाय बदलाव को सहजता से स्वीकारते हुए सलाह या समझाइश दी जाए। नए बच्चे नई सोच के साथ बड़े हो रहे हैं। किसी सम्बन्धी के आर्थिक हालात उसका सामाजिक रुतबा भी बदलते हैं। बहू-बेटियां समान व्यवहार और सम्मान चाहती हैं। बुजुर्ग सिर्फ ठहराव को नहीं, नये दौर के बदलते बर्ताव को भी जीना-समझना चाहते हैं। सहज रहते हुए ऐसी तमाम बातों और बदलते हालातों के लिए थोड़ा मन बड़ा कीजिए।
ऊर्जा को सही दिशा दीजिए
रिश्तों की दुनिया एक पाठशाला है- बहुत कुछ सिखाती-समझाती, हंसाती-रुलाती। अनगिनत उतार-चढ़ावों के बावजूद साथ-साथ चलती। ऐसे में इस जुड़ाव को जीते हुए जद्दोजहद का हिस्से आना भी लाजिमी है। बस, रिश्तों में रचे-बसे जीवन के रंगों से मिलते-मिलाते आगे बढ़ते रहना ही एक राह है। लेखिका शॉना निक्वेस्ट कहती हैं, ‘जब सब सही हो, तो जिंदगी को शुक्रिया कहें और उसकी खुशी मनाएं। और जब कुछ बुरा हो जाए, तब भी जिंदगी का आभार व्यक्त करें और सबक सीखकर आगे बढ़ जाएं।’ ऐसा करना हर उम्र से लोगों के लिए अपनी ऊर्जा को सही दिशा देने जैसा है। रिश्तों को बांधने के बजाय सहजता से साधने के समान। कुछ करते-सीखते रहें। बेहद करीबी सम्बंध हों या दूर के रिश्ते-नाते- उनके हिस्से का स्पेस और सम्मान जरूर दें। स्वस्थ और सफल रिश्तों के लिए थोड़ी दूरी भी जरूरी होती है। कई बार बनती-बिगड़ती परिस्थितियों में थोड़ा सा सब्र बहुत सी समस्याएं आसान कर देता है। उलझाऊ हालातों में अपनी ऊर्जा को सही दिशा देने के मोर्चे पर डटे रहना रिश्तों की उलझनों को और बढ़ने से रोकने जैसा ही है। व्यक्तिगत जीवन हो या पेशेवर जिम्मेदारियां, वक्त के साथ में आते बदलावों की स्वीकार्यता स्वयं को तराशने का भी अवसर देती है। दरअसल, समय के साथ हमारे अनुभव और परिस्थितियां भी बदलते हैं। विचारों में नयापन आता है। ऐसे में सामाजिक सम्बन्धों के संसार की बेहतरी के लिए ही नहीं, नयी तकनीक सीखने, समय के साथ कदमताल करने के लिए भी यह सोच आवश्यक है।
सराहना-आलोचना स्वीकारना सीखिए
दूसरे क्या कहते हैं? इसकी परवाह करना जरूरी नहीं है पर सगे-संबंधियों से मिल रही समझाइश या सलाहों पर ध्यान दिये जाने की जरूरत होती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी जुड़ाव को जीते-सींचते रिश्तों में तल्खी के बावजूद परवाह का भाव बना ही रहता है। जैसे घर के बुजुर्गों की हर रोक-टोक नयी पीढ़ी को कंट्रोल करने भर के लिए नहीं होती। ठीक इसी तरह बच्चों की हर शिकायत भी आज के जमाने के नखरे मानकर नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती। ससुराल में कही गई हर बात में कमी निकालना और मायके में कमीबेशी से परे स्नेह मिलना, ठहराव के साथ समझने की बातें हैं। कहा भी जाता है कि ‘ जब आलोचना की जाए, तो स्रोत पर विचार करें।’ यानी आपको अपनी कमी या गलती से मिलवाने वाला कौन है?- इसपर विचार जरूर कीजिए। यह विचारशीलता अपनों से मिली आलोचना का पॉजिटिव पहलू समझाने वाली है। ठीक इसी तरह संबंधों में मिली सराहना को लेकर भी अहंकारी ना बन जाएं। याद रहे कि रिश्तों में हर उम्र के लोगों को मिली सराहना या आलोचना के पहलुओं को समझना आवश्यक है। उनकी फीडबैक को दिल से समझने या स्वीकारने की दरकार होती है। बदलावों के प्रति सहजता और स्वीकार्यता रखने से ही यह संभव है।

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