For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

बचना जरा इमोशनल अरेस्ट करने वालों से

04:00 AM Mar 05, 2025 IST
बचना जरा इमोशनल अरेस्ट करने वालों से
Advertisement

मुकेश राठौर

Advertisement

जब से स्मार्ट फोन आया, आदमी भयंकर स्मार्ट हो गया है। इतना स्मार्ट कि बिना खड़ग, बिना ढाल हजारों मील दूर बैठकर फोन से फोन पर आपको बंधक बनाने जैसा कमाल कर रहा है। क्यों न करे? नया इंडिया है मोबाइल में घुसकर मारता है। आप फोन कॉल आने पर हेलो भर कहने जाते हैं और ‘ये लो’, ‘ये भी लो’ करते-करते हाउस लोन संबंधी किस्तों की जमा पूंजी गंवा बैठते हैं। स्मार्ट लैंग्वेज में इसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ करना कहते हैं। कभी तो लगता है देश में जितने असल अपराधी अरेस्ट नहीं हो रहे, उससे कहीं ज्यादा बेचारे निरपराध लोग अकारण अरेस्ट हुए जा रहे हैं। किए की सज़ा पर उतना दुख नहीं होता, जितना बिन किए मिली सज़ा पर होता है।
डिजिटल अरेस्ट के बरअक्स समाज में ‘इमोशनल अरेस्ट’ की घटनाएं भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही हैं। इमोशनल अरेस्ट माने भावनात्मक रूप से किसी को बंधक बनाना। अनुभव कहता है भावुक आदमी जल्दी बंधक बन जाता है। बगैर जंजीरों के कच्चे धागों से। बस लपेटते रहिए वह लिपट जाएगा फिर सामने वाला गले लगाए, चाहे गला दबाए, उसकी मर्जी।
इमोशनल अरेस्ट करने वाले भी आप पर महीनों बल्कि बरसों नज़र रखते हैं। ये डिजिटल अरेस्ट करने वालों की तरह अपरिचित नहीं होते बल्कि आपके अपने जाने-पहचाने, दोस्त-मित्र, नाते-रिश्तेदार होते हैं। वे पहले जां, फिर जाने जां, फिर जाने जाना होते हुए आपके दिल के मेहमां हो जाते हैं। जब कोई आपकी हर बात को पसंद करने लगे, दूसरों की तुलना में आपको श्रेष्ठ बताए, आपकी ही तरह स्वयं को भी सिद्धांतवादी बताए, आपके एक इशारे पर सारे काम छोड़कर आ जाए, आप आधी रात को बाइक से कन्याकुमारी चलने को कहे और वह चल दे, आपके दिए दस रुपये से साढ़े आठ का सामान खरीदकर डेढ़ रुपया मय हिसाब लौटाए तो सम्भल जाइए भाई साहब, ये इमोशनल अरेस्ट के सिम्टम्स हैं।
अचानक एक दिन वह कल तक के लिए कुछ रुपये उधार मांगेगा, आप इमोशनल अरेस्ट होकर सहर्ष उसकी मदद करेंगे। फिर वही होता है जो होता आया है। हर कल, कल बन जाएगा। कल-कल करते आज, हाथ से छूटे सारे टाइप पैसा तो गया ही आदमी भी हाथ से चला जाता है। आप ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’ गाते रहेंगे और वह ‘चिट्ठी न कोई संदेश न जाने कौन से देश’ चला जाता है जहां फोन भी नहीं लगता। फोन लगता भी है, आप बहुत कुछ बोलना चाहते हैं मगर आपकी आवाज नहीं सुनाई देती।
बहरहाल, डिजिटल अरेस्ट हुए लोगों की मदद के लिए साइबर सेल और हेल्प लाइन नंबर हैं लेकिन इमोशनल अरेस्ट के मारों की मदद करने वाला कोई नहीं। कहीं कोई हो तो बताइएगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement