फसल खुद नष्ट कर रहे हैं किसान
मौसमी फसल बचाने को जरूरी है कि जिला स्तर पर अधिक कोल्ड स्टोरेज की स्थापना हो। साथ ही, स्थानीय उत्पाद के आधार पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की शुरुआत हो। यदि हर जिले में टमाटर के कैचअप और सॉस बनाने की फैक्टरी होती तो किसानों को अपनी फसल सड़कों पर नहीं फेंकनी पड़ती।
पंकज चतुर्वेदी
झारखंड के लातेहार जिले के बालूमाथ और बारियातू इलाकों में दो प्रकार के टमाटर की खेती प्रसिद्ध है- एक गुलशन (मोटे छिलके वाला) जो सलाद और सब्जी में उपयोग होता है, और दूसरा सलेक्शन (नरम छिलके वाला) जिसका इस्तेमाल सब्जी, चटनी और टोमैटो कैचअप में होता है। हालांकि, पहले यहां की टमाटर फसल किसानों के लिए लाभकारी थी, लेकिन इस साल फसल तो अच्छी हुई है, लेकिन मंडी तक पहुंचाने और उसकी कीमत निकालने में दिक्कत हो रही है, जिससे किसानों को घाटा हो रहा है।
रामगढ़, हजारीबाग, लोहरदग्गा में टमाटर, गोभी, पालक जैसी फसलों की बुरी स्थिति है। किसानों ने खुद अपनी फसल को ट्रैक्टर से रौंद कर नष्ट कर दिया है, क्योंकि फसल का मूल्य बहुत कम हो गया है। गोभी के दाम 2-4 रुपये और टमाटर के दाम 2 रुपये प्रति किलो तक गिर गए हैं, जो तुड़ाई की लागत भी नहीं निकाल पा रहे। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के हरवाई गांव में भी टमाटर की फसल पर रोटवेलर चलाकर गेहूं बोने की स्थिति है। यहां किसानों ने खेत किराये पर लिए थे, लेकिन टमाटर के दाम में भारी गिरावट आ गई है। पिछले महीने 400 रुपये प्रति क्रेट मिलने वाला टमाटर अब 30 रुपये प्रति क्रेट बिक रहा है। तुड़ाई, मंडी का खर्च और परिवहन के बाद किसान को भारी नुकसान हो रहा है।
मध्यप्रदेश के बड़वानी में टमाटर मवेशी खा रहे हैं, जबकि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में टमाटर के दाम 40 रुपये प्रति किलो हैं। लेकिन विभिन्न जिलों में टमाटर की फसल कूड़े में पड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ के किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण फसल नष्ट करनी पड़ रही है। दुर्ग जिले में चक्रवाती तूफान और अचानक बढ़ी ठंड ने टमाटर की फसल को प्रभावित किया, जिससे दाम गिर गए और किसान मजबूर होकर फसल नष्ट कर रहे हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी हालात खराब हैं, जहां मेडक के शिवमपेट में किसानों ने अपनी फसल को आग लगा दी है।
विदित है कि टमाटर 15-27 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच के तापमान में सबसे अच्छे उगते हैं, और इसके लिए आदर्श औसत मासिक तापमान 21-23 °डिग्री सेंटीग्रेड होता है। 32° डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान फल लगने और उसके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। दक्षिणी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के कारण टमाटर की खेती प्रभावित हो रही है, जिसके कारण सफेद फंगस और पट्टी में छेद करने वाले कीटों की समस्या बढ़ गई है। इससे पहले ही कीटनाशकों का खर्च बढ़ गया था। हालांकि, फसल अच्छी हो गई, लेकिन बाजार में दाम नहीं मिलने के कारण किसान कर्ज में दब गए हैं।
यह पहली बार नहीं हो रहा है। अधिक फसल कभी-कभी किसानों के सुनहरे सपनों पर पानी फेर देती है। घर के नए छप्पर, बहन की शादी, माता-पिता की तीर्थ यात्रा—किसान ऐसे अनेक सपने लेकर अपनी ‘केश क्रॉप’ फसल सड़क पर फेंक देते हैं। इसके साथ रहती है केवल एक चिंता—खेती के लिए लिए गए बीज और खाद के कर्ज को कैसे चुकाया जाए? पूरे देश की खेती अनियोजित, शोषण का शिकार और किसान प्रतिकूल है, जिससे हर साल कई हिस्सों में किसान फसल को सड़क पर फेंकने को मजबूर होते हैं, जबकि कुछ ही महीनों बाद वही फसल फिर संकट का कारण बन जाती है। किसान मेहनत कर सकता है और अच्छी फसल दे सकता है, लेकिन सरकार को भी उसके परिश्रम के लिए उचित दाम और माल के सुरक्षित भंडारण की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।
कर्नाटक के कई जिलों में किसान हरी मिर्च जैसी फसलों को हर दूसरे-तीसरे साल सड़कों पर फेंककर अपनी हताशा व्यक्त करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में कभी टमाटर, अंगूर, मूंगफली तो कभी गोभी किसानों को इसी तरह हताश करती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में आलू की फसल मवेशियों को चराने के लिए छोड़ दी जाती है, जबकि दिल्ली, गाजियाबाद और नोएडा में आलू के दाम बढ़े रहते हैं। राजस्थान के सिरोही जिले में जब टमाटर सड़कों पर बिखरते हैं, वहीं गुजरात में टमाटर के दाम उच्च स्तर पर रहते हैं। सरकारी और निजी कंपनियां अधिक उत्पादन देने वाले बीजों का प्रचार करती हैं, लेकिन जब फसल अच्छी होती है, तो दाम इतने कम होते हैं कि किसानों की लागत भी नहीं निकल पाती।
विडंबना है कि कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था वाले देश में कृषि उत्पाद के न्यूनतम मूल्य, उत्पाद खरीदी, बिचौलियों की भूमिका, किसान को भंडारण का हक, फसल-प्रबंधन जैसे मुद्दे गौण दिखते हैं। यह हमारे लोकतंत्र की किसान के प्रति संवेदनहीनता का प्रमाण है। सब्जी, फल और दूसरी कैश-क्राप को बगैर सोचे-समझे प्रोत्साहित करने के दुष्परिणाम दाल, तेल-बीजों (तिलहनों) और अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन में संकट की सीमा तक कमी के रूप में सामने आ रहे हैं।
मौसमी फसल बचाने को जरूरी है कि जिला स्तर पर अधिक कोल्ड स्टोरेज की स्थापना हो। साथ ही, स्थानीय उत्पाद के आधार पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की शुरुआत हो। यदि हर जिले में टमाटर के कैचअप और सॉस बनाने की फैक्टरी होती तो किसानों को अपनी फसल सड़कों पर नहीं फेंकनी पड़ती। देश में लगभग आठ हजार कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनमें से अधिकांश आलू और प्याज के लिए उपयोग होते हैं। अब जरूरी है कि यह नीतियां स्थानीय स्तर पर बनें, ताकि प्रत्येक जिले की फसल, स्थानीय मांग और परिवहन की क्षमता का सही मूल्यांकन किया जा सके। इसके अलावा, कोल्ड स्टोरेज या वेयर हाउस पर किसानों का नियंत्रण होना चाहिए, न कि व्यापारी का।