प्रेम के क्षण
04:00 AM Dec 15, 2024 IST
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निशी सिंह
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हिमाच्छादित धवल शिखर के मध्य
सप्तरंग धरा है जहां।
नीले वातायन तले, सुनहली धूप में
चटक सिंदूरी रंग के टेसू खिले-खिले।
रूपहली चांदनी के आंचल पर
टांक देती श्यामला सांझ सितारे।
दूर क्षितिज के भाल पर
सजा था भोर का तारा।
कुछ कहे-अनकहे,
कुछ बुझे-अनबुझे सवाल लिए
मिली थी तुमसे प्रेम की सौगात लिए।
अंकुर फूटा था, चटकी थी कली-कली,
कालचक्र के साथ-साथ
बरस बन गए कितने दिन,
पौधे अब दरख्त बन गए।
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प्रिये, क्या उन क्षणों की
पुनरावृत्ति संभव नहीं?
वो क्षण, जब मुखरित हुआ था मौन भी,
प्रणय-सत सराबोर वह क्षण,
सृजना का क्षण—।
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