प्रकृति का अद्भुत प्रजनन तंत्र
थैली वाला मेढक, जिसे अंग्रेजी में ‘मार्सूपिअल फ्रॉग’ कहते हैं, एक अद्वितीय प्रजाति है जिसमें मादा मेढक के शरीर पर कंगारू की तरह एक थैली होती है। इस थैली में मादा अंडों और छोटे बच्चों की सुरक्षा करती है। यह मेढक अपने विशिष्ट शारीरिक संरचना और प्रजनन प्रक्रिया के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य वृक्ष मेढकों से अलग बनाता है।
के.पी. सिंह
थैली वाले मेढक को अंग्रेजी में ‘मार्सूपियल फ्रॉग’ कहते हैं। इसमें मादा मेढक के शरीर पर कंगारू के समान एक थैली होती है। इनमें मादाएं अंडों को अपनी पीठ पर बनी थैली में रखती हैं, जहां अंडों के साथ-साथ टेडपोल और छोटे बच्चे भी सुरक्षित रहते हैं।
थैली वाले मेढक की अनेक प्रजातियां हैं। अधिकांश थैली वाले मेढक आकार में बहुत छोटे होते हैं। इनकी लंबाई आधा सेंटीमीटर से लेकर तीन से सेंटीमीटर तक होती है, किंतु कुछ प्रजातियों के थैली वाले मेढक दस सेंटीमीटर तक लंबे हो सकते हैं। थैली वाले मेढक का रंग मुख्य रूप से हरा होता है एवं शरीर पर कत्थई रंग के धब्बे, चित्तियां अथवा धारियां होती हैं। इस प्रकार के रंग होने के कारण इसमें कॉमाफ्लास बहुत अधिक बढ़ जाता है तथा यह आसपास के पर्यावरण से पूरी तरह मिल जाता हैं। यही कारण है कि वृक्षों की शाखाओं और पत्तियों पर बैठा हुआ वृक्ष मेढक सरलता से दिखाई नहीं देता। थैली वाले मेढक की शारीरिक संरचना वृक्ष मेढक से बहुत मिलती-जुलती है। सामान्य वृक्ष मेढक के समान ही थैलीवाले मेढक के पंजों की उंगलियों के सिरों पर गद्दीदार चूषक होते हैं, जिनकी सहायता से यह वृक्षों की शाखाओं अथवा पत्तियों से लटका रहता है, किंतु थैलीवाले मेढक के पैर सामान्य वृक्ष मेढक की अपेक्षा अधिक मजबूत और शक्ति शाली होते हैं।
थैली वाला मेढक वृक्ष के किसी खोखले स्थान पर या पत्तियों के मध्य छिपकर अपने शिकार प्रतिक्षा करता है। वृक्षों पर पाये जाने वाले कीड़े-मकोड़े और दूसरे जीवों का शिकार करता है। अलग-अलग प्रजातियों की मादाओं द्वारा दिये जाने वाले अंडों की संख्या में काफी भिन्नता होती है। छोटी मादाएं प्रायः 4 से लेकर 7 तक, योल्क से भरे अंडे देती हैं, किंतु बड़ी मादाएं 200 तक अंडे दे सकती हैं। सभी मादाएं अपने अंडों को पीठ पर बनी थैली में डाल लेती हैं। कुछ मादाएं यह कार्य स्वयं करती हैं और कुछ में अंडों को मादा की थैली में डालने का कार्य नर करता है। इनके अंडों का पोषण थैली के भीतर ही होता है तथा ये थैली के भीतर तब तक रहते हैं। अधिक अंडे देने वाली मादाएं टेडपोल अपनी थैली में नहीं रखतीं और इन्हें बाहर निकाल देती हैं। ये टेडपोल अपना कुछ समय पानी के भीतर व्यतीत करते हैं और मेढक बनने के बाद पानी से बाहर आ जाते हैं तथा वृक्षों पर रहने लगते हैं। थैली वाले मेढक का समागम और प्रजनन बड़ा रोचक होता है। सामान्य मेढकों की तरह इनमें भी बाह्य समागम तथा बाह्य निषेचन होता है, किंतु असामान्य ढंग के समागम एवं प्रजनन के कारण थैली वाले मेढकों को अंडे देने के लिये पानी के भीतर नहीं जाना पड़ता।
थैली में अंडों को ताजी हवा पहुंचाने के लिए मादा पिछले पैर की एक अंगुली अपने पीठ पर ले जाती है और थैली के छिद्र जैसे द्वार को खोल देती है। बड़ी मादाओं मंे थैली के अंदर अंडे रखने का काम नर करता है। मादा के प्रजनन अंगों से अंडों से निकलने के बाद नर इन्हें निषेचित करता जाता है और थैली के भीतर पहुंचाता है। इन मादाओं के अंडे जैसे ही फूटते हैं, इनसे टेडपोल निकलते हैं, वह पानी के भीतर चली जाती है और अपने शरीर से एक एक टेडपोल को बाहर निकाला शुरू कर देती है। यह लगभग 200 तक टेडपोल निकालती है। बड़ी मादा मेढक प्रायः 100 दिन से लेकर 110 दिन तक अपनी थैली में रखती हैं इसके बाद अंडे फूटते हैं और उनसे टेडपोल निकलते हैं। ये टेडपोल 56 से 60 दिन के मध्य में छोटे मेढक के रूप में दिखाई देने लगते हैं। इ.रि.सें.