पौराणिक प्रसंगों में माता भीमेश्वरी देवी की महिमा
संदीप भारद्वाज
झज्जर जिले के बेरी कस्बे में मां भीमेश्वरी देवी का मंदिर श्रद्धा और श्रद्धालुओं की मान्यता का प्रतीक बना हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की सभी इच्छाएं माता पूर्ण करती हैं। मान्यताओं के अनुसार छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध माता भीमेश्वरी देवी का मंदिर का निर्माण कौरव राजा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने करवाया था। जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का धर्म युद्ध लड़ा जा रहा था तो भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए माता को उस युद्ध में अपने साथ बुलाने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि यदि माता हिंगलाज पहाड़ से तुम्हारे साथ आकर युद्ध में अपना आशीर्वाद देती है तो जीत निश्चित है।
पौराणिक मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने पांडवों की तरफ से बलशाली भीम को वर्तमान पाकिस्तान स्थित हिंगलाज पहाड़ से माता को लाने के लिए भेजा। भीम हिंगलाज पहाड़ पर पहुंचा और माता को अपने साथ आने के लिए प्रार्थना की। माता ने भीम की बात सुनकर अपनी शर्त उसके सामने रखी। माता ने भीम से कहा कि वत्स मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं, लेकिन तुम मुझे अपने कंधों पर उठाकर यहां से लेकर जाओगे और रास्ते में कहीं मुझे नहीं उतारोगे। यदि मुझे रास्ते में कहीं उतार दिया तो मैं वही विराजमान हो जाऊंगी।
बताते हैं कि भीम ने स्वयं को महाबली मानते हुए माता की इन शर्तों को मान लिया। तत्पश्चात भीम माता को अपने कंधों पर विराजते हुए वहां से चल पड़े लेकिन कुछ समय चलने के पश्चात भीम को लघुशंका का आभास हुआ। भीम ने माता को जंगल में एक पेड़ के नीचे बिठा दिया। भीम जब लघुशंका से वापस लौटे और माता को उठाने की कोशिश की तो माता ने अपनी शर्त की याद दिलायी। माता वहीं विराजमान हो गईं और भीम को धर्मयुद्ध में विजयश्री का आशीर्वाद प्रदान किया। मान्यता है कि इस जगह का नाम भीम के नाम से ही भीमेश्वरी माता का मंदिर रखा गया।
मान्यता है कि पूरे भारतवर्ष में भीमेश्वरी अकेली ऐसी देवी है जिसके दो मंदिर हैं। भोर के समय माता को बाहर वाले मंदिर में लाया जाता है और दोपहर को अंदर वाले मंदिर में मुख्य पुजारी अपनी गोद में उठाकर माता को ले जाते हैं। रातभर माता अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं। यहां महर्षि दुर्वासा द्वारा रचित माता की आरती की जाती है।
एक कथा प्रचलित है कि जब माता का मंदिर यहां निर्जन इलाके में स्थित था तो रात के समय कुछ लुटेरे यहां से माता की मूर्ति को उठाकर चल पड़े। जनश्रुति है कि कुछ दूर चलने के बाद लुटेरों के सामने अंधेरा छा गया और कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया। जब उन्होंने माता की मूर्ति को वापस उसके स्थान रख दिया तो उनको रास्ता दिखाई देने लग गया।
माता भीमेश्वरी मंदिर के ठीक पीछे एक तालाब बनाया गया है। माना जाता है कि इस तालाब में मिट्टी की छंटाई करना उतना ही शुभ माना जाता है जितना की माता के दर्शन। विश्वास है कि यहां मिट्टी छांटने से श्रद्धालुओं की दरिद्रता और उनकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। अपनी मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात श्रद्धालु चैत्र और आषाढ़ माह में लगने वाले मेलों में भंडारों का भी आयोजन करते हैं। यहां माता का सिंहासन चांदी का बनाया गया है।
मान्यता है कि जब किसी नवयुगल का विवाह होता है तो यहां मंदिर में गठजोड़े की जात लगाई जाती है और जगराता किया जाता है। यहां नवजात शिशुओं के बालों का मुंडन भ्ाी किया जाता है। विश्वास है कि भीमेश्वरी माता के मंदिर में जो लोग सच्ची श्रद्धा से यहां प्रार्थना करते हैं, माता उनकी सभी इच्छाएं माता पूर्ण करती हैं।