पानी और पलायन पर कैमरे की नज़र
अरुण नैथानी
अब तक आमतौर पर उत्तराखंड में जो भी फिल्में बनी हैं वे पर्वतीय समाज की सांस्कृतिक आकांक्षाओं और प्रवास के चलते पीछे छूट गये आत्मीय अहसासों के आसपास ही केंद्रित रही हैं। खासकर राज्य से बाहर रह रहे लाखों प्रवासियों के भावनात्मक अहसासों के आसपास ही रही हैं। इन फिल्मों में विषयवस्तु का लगातार दोहराव भी महसूस किया गया है। लेकिन पिछले दो सालों में राज्य को सिनेमा निर्माण के क्षेत्र में आशातीत सफलता मिली है। पहली बार दो लांग शॉट फिल्मों ‘सुनपट’ और ‘पाताल-ती’ को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया( आईएफएफआई, गोवा) में प्रतिष्ठित पैनोरमा पुरस्कार मिले हैं। उल्लेखनीय है कि ‘सुनपट’ शब्द का अर्थ सुनसान या बियाबान स्थान। वहीं ‘पाताल-ती’ के अर्थ पर गौर करें तो चीन सीमा से लगे जनजातीय क्षेत्र में ती शब्द का अर्थ पानी से होता है। यानी दुर्लभ हो गया मीठा जल। इन फिल्मों का प्रदर्शन फ्रांस व रूस आदि में कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में भी किया गया है। निस्संदेह, इस उपलब्धि ने विश्व परिदृश्य में उत्तराखंड की फिल्मों की संभावनाओं को भी उद्दीप्त किया है। साथ ही नये फिल्म निर्माताओं भी कुछ कर गुजरने का हौसला भी मिला है।
समकालीन सवाल और भावनात्मक पहलू
महत्वपूर्ण बात यह है कि ये फिल्में उत्तराखंडी समाज के समकालीन सवालों पर मंथन को बाध्य करती हैं। ‘सुनपट’ फिल्म का निर्माण व निर्देशन करने वाले राहुल रावत कहते हैं कि निस्संदेह फिल्म की कथा वस्तु भयावह पलायन के दंश के आसपास घूमती है। लेकिन हमने इसमें समस्या का आंकड़ों से इतर एक भावनात्मक पक्ष उजागर किया है कि बाहर से आने वाला उत्तराखंडी उत्तराखंड के गांव पहुंचने के बाद कैसा महसूस करता है। दोनों फिल्में उत्तराखंड के दूरस्थ इलाकों में शूट की गयी हैं। फिल्म में अभिनय करने वाले सभी कलाकार गांवों के स्थानीय लोग हैं। जिनके अभिनय ने विभिन्न फिल्म महोत्सव में समीक्षकों को चौंकाया है। पिछले साल दिल्ली में हुई पहली सार्वजनिक स्क्रीनिंग के दौरान लोगों ने स्टैंडिंग ओवेशन से इनको सम्मानित किया।
जड़ों से जोड़ने की कोशिश
ये फिल्में राज्य के उन मूल प्रवासी लोगों को उद्वेलित करती हैं जो अपने पैतृक गांवों से दूर चले गए हैं। राहुल रावत कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि इस माध्यम से प्रवासी लोग अपनी जड़ों से फिर से जुड़ पाएं और उस समाज की टीस को समझ पाएं, जिसे उन्होंने कई साल पहले पीछे छोड़ दिया है। दरअसल, ये फिल्में भौगोलिक और भावनात्मक अंतराल को पाटती हैं और राज्य के प्रवासी लोगों के बीच अपनेपन की भावना को फिर से जगाती हैं। इनकी कहानियां लोगों में गर्व, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक संवाद की भावना को भी बढ़ावा देती हैं।
पर्यटन के अलावा भी विशाल थाती
निस्संदेह, अपनी जेब से धन लगाकर फिल्म निर्माण करने वाले इन युवा निर्माता-निर्देशकों का संघर्ष बड़ा रहा है। दोनों फिल्मों के निर्देशक मानते हैं कि हमारा लक्ष्य उत्तराखण्ड की ओर दुनिया भर से ध्यान आकर्षित करना है। उत्तराखण्ड, एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के नाते अक्सर केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन आकर्षणों से जुड़ा होता है। ‘पाताल-ती’ के निर्देशक संतोष रावत कहते हैं, इन फिल्मों के माध्यम से, हम अपनी संस्कृति और समाज के वास्तविक सार को प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं, जिससे लोग उत्तराखण्ड के समृद्ध चित्रपट को सही रूप में जान सकें।
शुद्ध पानी की महत्ता
उल्लेखनीय है कि संतोष रावत के निर्देशन में बनी ‘पाताल-ती’ फिल्म एक मार्मिक विषय को छूती है। चीन सीमा से लगे जनजातीय क्षेत्र में एक वृद्ध अपनी अंतिम इच्छा के रूप में उस शुद्ध पानी का स्वाद चखना चाहता है जो कभी उसने पर्वतों में बचपन में चखा था। उसकी अंतिम इच्छा को पूरा करने का संकल्प उसका पोता करता है। वह दुर्गम पहाड़ियों में उस पानी को तलाशने के लिये कठिन संघर्ष करता है। फिल्म का मकसद यही है कि वक्त के साथ हम पानी की गुणवत्ता को लगातार खोते जा रहे हैं। प्रदूषण आदि के चलते हम पानी की उस मिठास को खो बैठे हैं। आने वाली पीढ़ियों को लिये यह संकट और गहरायेगा।
विदेशी दर्शकों का प्रतिसाद
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में, इन फिल्मों में हिमालयी क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का विदेशी दर्शकों ने सकारात्मक प्रतिसाद दिया है। इसने ऑस्कर विजेता साउंड डिज़ाइनर रेसुल पुकुट्टी सहित प्रसिद्ध फिल्म हस्तियों का ध्यान और सहयोग आकर्षित किया, जिन्होंने ‘पाताल-ती’ का साउंड डिज़ाइन और एडिटिंग का काम किया है। फिल्मों की गुणवत्ता और विजन ने इन सिनेमा के दिग्गजों को फिल्म में अपना योगदान देने के लिए आश्वस्त किया है, जो फिल्म के कलात्मक और तकनीकी पहलुओं को नई ऊंचाइयां देते हैं।
सिनेमा समृद्ध हो, प्रदेश भी खुशहाल
पिछले दिनों इन फिल्म निर्माताओं ने चंडीगढ़ में रचनात्मक जुनून की भावना के साथ इन फिल्मों की स्क्रीनिंग की हैं। मकसद यही था कि लोगों को बड़े पर्दे पर सामुदायिक तौर पर उत्तराखण्ड के सिनेमा का अनुभव मिले। सुनपट के निर्देशक और अनुभूति उत्तराखंड कार्यक्रम के निर्माता राहुल रावत कहते हैं – “हमारा मुख्य लक्ष्य उत्तराखण्ड समुदाय के लोगों और सिनेमा प्रेमियों को ये फिल्में दिखाकर उत्तराखण्ड सिनेमा को समृद्ध करना है। खासकर राज्य की नयी पीढ़ी को, जो एक जीवंत फिल्म बाजार के निर्माण में योगदान कर सकती है। निस्संदेह यह पहल आने वाले समय में अधिक फिल्म निर्माताओं को आकर्षित करेगी, साथ ही स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करेगी, और उत्तराखण्ड में फिल्म उद्योग के विकास को बढ़ावा देगी। जिससे राज्य में एक समृद्ध सिनेमा संस्कृति का विकास होगा। साथ ही अंततः सांस्कृतिक संरक्षण, पर्यटन प्रचार, सामाजिक जागरूकता, सामुदायिक जुड़ाव और राज्य के आर्थिक और समग्र विकास में मदद करेगा”। उल्लेखनीय है कि फ़िल्म के मर्म को गैर उत्तराखंडी दर्शकों ने भी समझा और प्रयास को सराहा। साथ ही अनुभूति उत्तराखंड के तत्वावधान में ‘सुनपट’ और ‘पाताल-ती’ का सिनेमास्कोप में दस जून को टैगोर थियेटर में प्रदर्शन किया जायेगा।