पाठकों के पत्र
भाषा का सम्मान
दस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘राजनीतिक हित साधने का जरिया न बने भाषा’ में भाषा को राजनीति से दूर रखने का आग्रह है। हमें अपनी क्षेत्रीय भाषा पर गर्व होना चाहिए, लेकिन दूसरों की भाषाओं का भी सम्मान जरूरी है। महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मराठी स्कूल घट रहे हैं, जो चिंता का विषय है। भाषा का विकास साहित्य, संस्कृति और ज्ञान की समृद्धि से होता है। हमें सभी भाषाओं को अपनाना और सीखना चाहिए, न कि उन्हें विवाद का विषय बनाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
दोहरी नीति
आजादी के बाद सरदार पटेल ने भारत की 562 रियासतों को कूटनीति और बल से भारतीय संघ में मिलाया, लेकिन कश्मीर का विलय पंडित नेहरू ने अपने हाथों में लिया, जिसके परिणामस्वरूप कई विसंगतियां उत्पन्न हुईं। सरदार पटेल ने हैदराबाद और जूनागढ़ को भारत में मिलाया, लेकिन कश्मीर का मामला कांग्रेस के नेतृत्व में कमजोर साबित हुआ। आज कांग्रेस सरदार पटेल का नाम लेकर सांप्रदायिकता से लड़ने की बात करती है, जो उनके पुराने दृष्टिकोण से परे है।
ईश्वर चंद गर्ग, कैथल
आर्थिकी को संबल
‘सस्ते लोन की आस’ के संदर्भ में दैनिक ट्रिब्यून के 10 अप्रैल का संपादकीय प्रासंगिक है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कटौती एक सराहनीय पहल है। इससे ऋण सस्ते होंगे और ईएमआई में राहत मिलेगी। रियल एस्टेट व ऑटो सेक्टर को भी गति मिलेगी। यह निर्णय आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा। यदि इसका लाभ शीघ्र ग्राहकों तक पहुंचे, तो उपभोक्ता विश्वास में वृद्धि होगी और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.