पाठकों के पत्र
नक्सलवाद से मुक्ति
बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान ने राज्य के बड़े हिस्से को नक्सलवाद से मुक्त कर दिया है। वर्ष 1967 में शुरू हुआ नक्सलवाद अब केवल छह ज़िलों तक सीमित रह गया है। सरकार की वचनबद्धता और सख्ती के कारण नक्सलवाद को मार्च, 2026 तक समाप्त किया जा सकता है। प्रभावित युवकों को विकास निधि और पुनर्वास के माध्यम से मुख्यधारा में लौटने का मौका मिल रहा है, जिससे वे शिक्षा और रोजगार की ओर बढ़ रहे हैं। स्थायी समाधान के लिए विकास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ सख्त कार्रवाई आवश्यक है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
बढ़ते हादसे
गुजरात की अवैध पटाखा फैक्टरी में भीषण आग लगने से 18 मजदूरों की जान चली गई। यह हादसा दिल दहला देने वाला है और किसी पहले हादसे से कम नहीं है। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, हैदराबाद, दिल्ली और अन्य राज्यों में ऐसे हादसे हो चुके हैं। शासन-प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। बार-बार ये हादसे होते हैं, लेकिन जांच आयोग गठित करने के बाद कोई परिणाम नहीं निकलता। क्या अवैध फैक्टरियों के चलते कोई मिलीभगत है? अब समय आ गया है कि व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया जाए।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
अपूरणीय क्षति
पांच अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में हेमंत पाल के लेख में मनोज कुमार की बहुआयामी प्रतिभा और उनके योगदान का बखान किया गया है। वे अभिनेता और निर्देशक दोनों के रूप में प्रसिद्ध थे। देशभक्ति और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों जैसे उपकार, क्रांति और शहीद में उनके अभिनय ने उन्हें ‘भारत कुमार’ का खिताब दिलवाया। उन्हें 7 फिल्मफेयर अवार्ड, पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के अवार्ड मिले। उनका निधन भारतीय सिनेमा के लिए अपूरणीय क्षति है।
शामलाल कौशल, रोहतक