पाठकों के पत्र
प्रभावी तंत्र जरूरी
बीस जनवरी का दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘हादसों की सड़क’ विश्लेषण करने वाला था। खराब सड़कों के कारण सड़क दुर्घटनाओं में भारत पहले स्थान पर है, जो शर्मनाक है। हालांकि सीसीटीवी कैमरे, जुर्माना और सिगनल जैसे उपाय किए गए, फिर भी दुर्घटनाएं बढ़ी हैं। सवाल है कि तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसे क्यों नहीं थम रहे हैं। भूतल केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 2030 तक दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत कमी लाने के लिए सड़कों के निर्माण से जुड़े ठेकेदारों, इंजीनियरों और जिम्मेदारों की जवाबदेही तय करने का प्रस्ताव रखा है। इसके साथ ही सड़क निर्माण, दुर्घटना नियंत्रण और निगरानी के लिए एक स्वतंत्र और सशक्त तंत्र बनाना आवश्यक है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
स्क्रीन से सुरक्षा
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य करने का प्रस्ताव किया है। यह कदम डिजिटल डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है, लेकिन इसकी सफलता और पालन समय के साथ ही पता चलेगा। स्वीडन, फ्रांस, कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी बच्चों के स्क्रीन उपयोग पर प्रतिबंध और सलाह दी है, परंतु यह नियम कितने प्रभावी होंगे, यह सवाल बना हुआ है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
जन धन की पारदर्शिता
भारत में सरकारों को नागरिकों और करदाताओं को पारदर्शिता से स्पष्ट करना चाहिए कि राजनीतिक दल धार्मिक कार्य करने करवाने वाले लोगों के लिए वेतन या मुफ्त तीर्थयात्रा के वादे कैसे कर सकते हैं। धर्म व्यक्तिगत मामला है, और करदाता का पैसा ऐसे कार्यों में खर्च नहीं किया जा सकता। सरकारों और राजनीतिक दलों से यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि विज्ञापनों में खर्च होने वाली बड़ी राशियों के बजाय जनता और देश कल्याण के लिए धन का सही इस्तेमाल हो।
मुमुक्षु के. ठाकुर, चम्बा, हि.प्र.