पाजू कलां का शिव मंदिर तालाब बना संकट, अधूरी परियोजना से बढ़ा खतरा
रामकुमार तुसीर/निस
सफीदों, 5 फरवरी
प्रदेश सरकार द्वारा गांवों के तालाबों को संवारने और जल संरक्षण के उद्देश्य से बनाई गई योजनाएं कागजों पर भले ही आकर्षक लगती हों, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। सफीदों के पाजू कलां गांव में पांच साल पहले शुरू हुई ग्रे-वॉटर प्रबंधन परियोजना पिछले चार साल से अधर में लटकी हुई है। शिव मंदिर तालाब के सुधार के लिए दो करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया था, लेकिन परियोजना की शुरुआत के तुरंत बाद ही काम ठप हो गया।
परियोजना के तहत तालाब की खुदाई तो कर दी गई, लेकिन उसके बाद कोई कार्य आगे नहीं बढ़ा। अब यह तालाब ग्रामीणों के लिए सुविधा के बजाय खतरे का कारण बनता जा रहा है। तालाब में करीब 10 फुट पानी भर चुका है, और बारिश के मौसम में यह स्तर 15 फुट तक पहुंच सकता है, जिससे गांव के बच्चों और मवेशियों के लिए दुर्घटना का खतरा बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि न तो कोई सूचना बोर्ड लगाया गया और न ही कोई जिम्मेदार अधिकारी योजना की सही जानकारी दे रहा है।
सांसद ने लिया गोद, फिर भी अधूरा पड़ा प्रोजेक्ट
गौर करने वाली बात यह है कि यह गांव पिछली लोकसभा में सोनीपत से भाजपा सांसद रहे रमेश कौशिक द्वारा गोद लिया गया था। बावजूद इसके, यह परियोजना अधूरी पड़ी है और ग्रामीणों को अब तक यह नहीं पता कि इसका भविष्य क्या होगा।
बजट कहां गया, कोई जवाब नहीं
गांव के सरपंच पवन कुमार ने बताया कि यह परियोजना उनके कार्यकाल से पहले ही बंद हो गई थी। उन्होंने कई बार अधिकारियों से जानकारी मांगी, लेकिन कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। पंचायती राज विभाग के उपमंडल अभियंता आशीष मेहरा का कहना है कि तालाब के लिए दो करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत हुआ था, लेकिन विभाग को केवल 55 लाख रुपये ही मिले, जो खुदाई और पानी निकासी में खर्च हो गए।
नए एस्टीमेट का इंतजार
उपमंडल अभियंता आशीष मेहरा ने बताया कि तालाब में बहकर आ रहे गंदे पानी की रोकथाम के लिए 2.5 लाख रुपये की लागत से वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट लगाने का प्रस्ताव भेजा गया है, जिसकी स्वीकृति का इंतजार है। इसके अलावा, तालाब की बाड़बंदी और सौंदर्यीकरण के लिए भी दो करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है, लेकिन काम कब शुरू होगा, यह तय नहीं है।
गांव वाले परेशान, कौन लेगा जिम्मेदारी?
गांव वालों का कहना है कि अगर यह प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ, तो यह गंभीर हादसों को न्योता दे सकता है। सवाल यह उठता है कि जब बजट स्वीकृत हो चुका था, तो काम अधूरा क्यों छोड़ा गया? प्रशासन की सुस्ती और जवाबदेही की कमी के चलते यह तालाब फिलहाल एक अधूरी योजना का नमूना बनकर खड़ा है। अब देखना होगा कि सरकार और संबंधित विभाग इस योजना को कब तक धरातल पर उतारते हैं, या फिर यह भी अन्य योजनाओं की तरह फाइलों में ही दम तोड़ देगी।