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परियों की दुनिया जैसी एक यात्रा

10:11 AM Aug 23, 2024 IST
परियों की दुनिया जैसी एक यात्रा

अमिताभ स.
प्राग के ओल्ड टाउन की ओर जाते-जाते लगने लगता है कि परियों की हसीन दुनिया में आ गए हैं। ऊंचाई से देखने पर, प्राग एकदम सुनहरी लगता है। कह सकते हैं कि फोटो परफेक्ट! समूचे शहर में हैरिटेज इमारतों का जादू बिखरा है। एक से एक खूबसूरत। ज्यादा हिस्सा पुराना शहर ही है। पुरानी-पुरानी इमारतों का रखरखाव काबिल-ए-तारीफ है और ज्यादातर 4-4 मंजिला हैं। बीच-बीच में ऊंचे-ऊंचे टॉवर खड़े हैं। सलीके से हर मंज़िल पर खिड़कियों की कतार है और खिड़कियों के इर्द-गिर्द कलात्मक डिजाइन बने हैं।
प्राग के बीचोंबीच विल्तावा नाम की नदी बहती है। यही चेक की सबसे बड़ी नदी है। विल्तावा रिवर के पूर्वी ओर पर ओल्ड और न्यू टाउन हैं, जबकि पश्चिमी तरफ लेसर टाउन। ओल्ड टाउन साल 1348 में बसा है। विल्तावा नदी पर कुल 19 पुल हैं। सबसे पुराना चार्ल्स ब्रिज है, जो साल 1357 में बना था। चार्ल्स ब्रिज आज भी चालू है, लेकिन 1965 से इस पर केवल पैदल ही चल सकते हैं। पुल के दोनों ओर ज़रा-ज़रा फासले पर एक से एक हसीन प्रतिमाएं खड़ी हैं। नदी पर बोटिंग के जरिए ‘चार्म ऑफ चेक’ को नजदीक से देखने का मौका मिलता है।

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ओल्ड टाउन की रौनकें

तफरी के लिए चार्ल्स स्कवेयर, कैसल स्कवेयर और क्रॉस नाइट स्कवेयर बेहतरीन ठिकाने हैं। सबसे खास ओल्ड टाउन स्कवेयर है। स्कवेयर से ओल्ड टाउन की 5-6 गलियां जुड़ती है। विल्तावा नदी से ‘परिजका’ (यानी पेरिस स्ट्रीट) नाम की सड़क सीधे ओल्ड टाउन पहुंचती हैं। यहां दोनों ओर महंगे लग्ज़री ब्रांड्स के भव्य शोरूम हैं। सड़क के दोनों ओर फुटपाथ पर पेड़ों की कतारें खड़ी हैं। यहां पैदल चलिए, साइकिल किराए पर लीजिए या फिर, किराए की सेगवे के सहारे बिना थके मजे-मजे घूम सकते हैं। इलेक्ट्रिक सगवे दो बड़े-बड़े मोटे पहियों पर दौड़ती है और उस पर अकेले खड़े- खड़े सैर करते फिरते हैं। ओल्ड टाउन स्कवेयर की तमाम गलियों की सैर सगवे के अलावा बग्गी घोड़ा, विंटेज कार और साइकिल रिक्शा से भी कर सकते हैं।
बाकी यूरोपीय शहरों की तरह ओल्ड टाउन की सड़कें और गलियां भी छोटे-छोटे पत्थरों को जोड़-जोड़ कर बनी हैं, ताकि पुराना स्पर्श बरकरार रहे। यहां रौनकें रात तक शबाब पर रहती है। यहां-वहां गलियों-सड़कों में रोड-शो होते रहते हैं। यहीं ओल्ड टाउन सिटी हॉल पर एस्ट्रोनोमिकल क्लॉक (विशाल घड़ी) लगी है। क्लॉक साल 1410 से है और समय के साथ सूरज, चांद और बाकी तमाम ग्रहों की स्थिति दिखती है। हर घंटे 5 सेकंड के लिए घंटियां बज उठती हैं। लोग सामने खड़े- खड़े इस नजारे को देखने का पहले से बेसब्री से इंतजार कर रहे होते हैं। घड़ी के इर्द-गिर्द बनी प्रतिमाएं झूम उठती हैं और मुर्गा बांग देने लगता है। यही नहीं, घड़ियां प्राग के चरित्र में समाई हैं। हर चौराहे और बाजार में खम्भों पर बड़ी-बड़ी स्ट्रीट क्लॉक टंगी हैं, जो सही समय भी बताती हैं।

पैदल चलने के मज़े

उधर पहाड़ के ऊपर लेसर टाउन है। यहीं है 11वीं सदी में बना प्राग कैसल। यहां बीते 1000 सालों से चेक की शीर्ष कमान सम्भालने वाले राजा और अब राष्ट्रपति रहते हैं। यहीं रॉयल गार्डन है, जो गर्मियों में सैलानियों के लिए खुलता है। एकदम सामने प्रेजिडेंट हाउस है। नजदीक ही कैसल स्कवेयर में प्रेजिडेंट का ऑफिस है। जरा हट कर बात है कि ऑफिस परिसर पर लगा झंडा लहरा रहा है, तो समझिए राष्ट्रपति अंदर हैं। बगल में, प्राग की सबसे बड़ी चर्च है। चर्च की ऊंची- ऊंची बाहरी दीवारों पर, बाहर की ओर निकलते घोस्ट एनिमल्स (भूतों की आकृतियां) बने हैं। मान्यता है कि घोस्ट एनिमल्स बुरी बुलाओं को चर्च के भीतर आने से रोकते हैं।
प्राग की आबादी महज 26 लाख है। सड़कें कम चौड़ी हैं। फिर भी, ट्रैफ़िक जाम नहीं लगता। ट्रैफिक पुलिस भी नज़र नहीं आती। पार्किंग सड़कों के एक ओर खिंची नीली लाइन के अंदर कर सकते हैं। सड़क पर पैदल चलने वालों की खासी कद्र है। इस हद तक कि कई सड़कों पर ट्रैफ़िक सिग्नल न होने के बावजूद, जेबरा क्रॉसिंग पर पैदल पार करने वालों के लिए कारें-बाइक रुक जाती हैं। और पैदल चलने वालों को बाकायदा हाथ से पहले सड़क पार करने का इशारा करते हैं।
मेट्रो, ट्रॉम और बस से सफर कर सकते हैं। ज्यादातर लोग ट्रॉम और बस से ही आते-जाते हैं। मेट्रो अंडरग्राउंड है और ट्रॉम सड़क पर ही चलती हैं। इसी सड़क पर बसें, कारें, टैक्सियां वगैरह भी दौड़ती हैं। दुनिया का वन ऑफ द बेस्ट सिस्टम ऑफ पब्लिक ट्रांसपोर्ट कह सकते हैं। ट्रॉम इतनी जल्दी-जल्दी आती- जाती हैं कि स्टॉप पर भीड़ हो ही नहीं पाती। टैक्सियां भी हैं, लेकिन कम। छोटी-बड़ी कारें बहुत हैं। बाइक और टूव्हीलर ज्यादा नहीं हैं। साइकिलें तो खैर सबसे ज्यादा हैं। कारें, बसें, टैक्सियां वगैरह लेफ्ट हैंड ड्राइव हैं। यानी अपने शहरों से उलट वहां यातायात सड़क के दाईं तरफ पर दौड़ता है।

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कॉफी और बीयर का चलन

चेक रिपब्लिक की करेंसी करोना है। एक करोना करीब 3.60 रुपये के बराबर है। प्राग की सबसे खास कमर्शियल मार्केट है वाइसड्री स्कवेयर। सबसे बड़ा मॉल ‘प्लेडियम’ है। प्राग के लोग फिल्मों से ज्यादा थियेटर देखना पसंद करते हैं। हर हफ़्ते में दो दिन शनिवार और रविवार को सार्वजनिक अवकाश होता है। शुक्रवार शाम से ही वीकेंड जश्न का माहौल और दौर शुरू हो जाता है। बार, रेस्टोरेंट और कसीनों सारी-सारी रात खुले रहते हैं। 18 साल से ऊपर की उम्र वाले ही शराब पी सकते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीने की मनाही है, लेकिन सड़कों पर लोग सरेआम कश लगाते चलते जाते हैं। हॉट कॉफी ज्यादा पी जाती है, चाय के शौकीन भी हैं। अपने असम और दार्जिलिंग की चायपत्ती भी वहां मिलती है।
बीयर पीने की तो मत ही पूछिए। दुनिया के सबसे बड़े बीयर पीने वाले देश की राजधानी जो है। औसत 144 लीटर बीयर हर बंदा हर साल गटक जाता है। यहां का लोकल बीयर बांड ‘प्रिजनर उर्कवेल’ दुनिया की बेस्ट बीयर मानी जाती है। सोसोजिज और हेमबर्गर लोकप्रिय स्ट्रीट फूड हैं, खूब खाए जाते हैं।
प्राग के लोग आपस में चेक भाषा बोलते हैं। ज्यादातर अखबार भी चेक भाषा में ही छपते हैं। लेकिन अंग्रेज़ी भी बखूबी समझी और बोली जाती है। स्कूलों में चेक के अलावा इंग्लिश, जर्मन, रशियन और स्पेनिश भाषा पढ़ाई जाती है। स्कूली पढ़ाई 9वीं क्लास तक है, आगे 4 साल कॉलेज होता है। चेक के लोग सॉकर और आइस हॉकी खेलना पसन्द करते हैं। उनकी आइस हॉकी की टीम दमदार है।

सभी चित्र लेखक

ज़रा-सा इतिहास

चेक रिपब्लिक का पहले नाम चेकोस्लोवाकिया था। साल 1993 में, चेकोस्लोवाकिया दो देशों में बंट गया। एक हो गया चेक रिपब्लिक और दूसरा स्लोवाक। चेक रिपब्लिक हंगरी, पोलैंड, ऑस्ट्रिया, जर्मनी और स्लोवाक से घिरा है।
चेकोस्लोवाकिया सन‌् 1948 से 1989 तक काम्युनिस्ट देश रहा। सन‌् 1949 से लोकतांत्रिक देश है और आज चेक रिपब्लिक भी लोकतांत्रिक देश है।

यह भी ग़ौरतलब है..

* यूरोप के एकदम मध्य में चेक रिपब्लिक है। इसकी राजधानी प्राग है।
* यह यूरोप का 14वां सबसे बड़ा शहर है। यूरोप घूमने आने वाले सबसे ज़्यादा पर्यटन लंदन, पेरिस, रोम और इस्तानबुल के बाद 5वें नम्बर पर यहां आते हैं।
* उड़ान से दिल्ली से प्राग पहुंचने में करीब 8 घंटे लगते हैं। समय के लिहाज से, प्राग दिल्ली से साढ़े 3 घंटे पीछे है।
* प्राग घूमने के लिए मई और जून सबसे खास महीने हैं। हालांकि सारा साल जा सकते हैं। अपने उत्तर भारत की सर्दियों के महीनों में वहां भी सर्दी ही होती है, और यहां गर्मियां, तो वहां भी गर्मी। वैसे, अपनी दिल्ली जैसी सड़ी हुई गर्मी नहीं पड़ती। सर्दियों में बर्फ जरूर पड़ती हैं।

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