न्याय प्रणाली को व्यावहारिक बनाने की पहल
भारतीय न्याय संहिता, 2023 एक ऐतिहासिक पहल है जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 को बदलने के लिए लाया गया है। दरअसल, औपनिवेशिक शासन और स्वतंत्र भारत के स्वशासन के फर्क को दूर करने के लिये यह सार्थक पहल हुई है।
डॉ. सुधीर कुमार
भारतीय न्याय संहिता, 2023 एक ऐतिहासिक पहल है जिसे भारतीय दंड संहिता, 1860 को बदलने के लिए लाया गया है। यह संहिता भारतीय न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव लाने का वादा करती है। लेकिन क्या यह वास्तव में न्याय प्रणाली में क्रांति ला पाएगी?
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए राजद्रोह का अपराध परिभाषित करती थी। यह धारा उन लोगों को दंडित करती थी जो भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के खिलाफ विद्रोह या असंतोष फैलाने का प्रयास करते थे। इस कानून के आलोचकों का मानना था कि इसका अक्सर दुरुपयोग किया जाता था। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता था। संहिता ने राजद्रोह के अपराध को निरस्त कर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय न्याय संहिता ने राजद्रोह के अपराध को हटाकर उसके स्थान पर नए अपराधों को परिभाषित किया है। ये नए अपराध देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्यों से संबंधित हैं। इनमें शामिल हैं लोगों के बीच फूट डालने का प्रयास, सशस्त्र विद्रोह या हिंसा को भड़काना, अलगाववादी गतिविधियां, राजद्रोह कानून के निरसन को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस नए कानून का दुरुपयोग न हो।
संहिता ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए दंड को कड़ा कर दिया है। इसमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा शामिल हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 में बलात्कार के लिए न्यूनतम सज़ा बढ़ा दी गई है। साथ ही, कुछ विशेष परिस्थितियों में बलात्कार के लिए मृत्युदंड का भी प्रावधान किया गया है। यौन उत्पीड़न को गंभीर अपराध माना गया है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। अब घरेलू हिंसा के मामलों में पीड़ित महिलाओं को अधिक सुरक्षा प्रदान की जाएगी। छेड़छाड़ और पीछा करने जैसे अपराधों के लिए भी कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। शादी के वादे के झांसे में फंसाकर शारीरिक संबंध बनाने पर अब तीन साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। ये बदलाव महिलाओं को न्याय दिलाने, सशक्त बनाने और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़ाने में मदद करेंगे और अपराधियों को कठोर सज़ा दिलाएंगे।
संहिता ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई नए प्रावधान जोड़े हैं। बाल यौन शोषण के मामलों में अधिकतम सज़ा बढ़ा दी गई है। इसके अलावा, बाल पोर्नोग्राफी को एक गंभीर अपराध माना गया है। बाल तस्करी को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। बाल तस्करों को कठोर सज़ा दी जाएगी। बाल श्रम और बाल विवाह को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। मुक्त कराए बच्चों को शिक्षा और पुनर्वास की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। भारत में बाल अपराधों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। यह संहिता बच्चों को अपराध और बच्चों को शोषण से बचाने में मदद करेगी।
संहिता में साइबर अपराधों से निपटने के लिए कई नए प्रावधान जोड़े गए हैं। बीएनएस ने साइबर अपराधों की परिभाषा को विस्तृत किया है, जिसमें हैकिंग, डेटा चोरी, ऑनलाइन धोखाधड़ी, साइबर उत्पीड़न और अन्य प्रकार के साइबर अपराध शामिल हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सभी प्रकार के साइबर अपराधों को कानून के दायरे में लाया जा सके। बीएनएस ने साइबर अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया है। इसमें लंबी जेल की सज़ा और भारी जुर्माना शामिल है। इसमें साइबर अपराध सिंडिकेट बनाने और चलाने के लिए दंड का प्रावधान शामिल है।
बीएनएस में साइबर अपराधों की जांच के लिए विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रावधान है। इससे साइबर अपराधों की जांच में दक्षता आएगी और अपराधियों को पकड़ने में मदद मिलेगी। बीएनएस में साइबर सुरक्षा के लिए उपाय करने का प्रावधान है। इसमें महत्वपूर्ण डेटा को सुरक्षित रखने, साइबर हमलों से बचाव करने और साइबर सुरक्षा जागरूकता विस्तार के उपाय शामिल हैं। संहिता में आतंकवाद से निपटने के लिए कई नए प्रावधान जोड़े गए हैं।
संहिता में आतंकवाद की परिभाषा को और अधिक व्यापक बनाया गया है, जिसमें भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता और आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले सभी कार्य शामिल हैं। संहिता में साइबर आतंकवाद से निपटने के लिए भी नए प्रावधान जोड़े गए हैं। संहिता में कई ऐसे प्रावधान हैं जो न्याय प्रणाली में गति ला सकते हैं। न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए लगातार अनुसंधान और विकास पर जोर दिया गया है। न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों को आधुनिक तकनीक और प्रक्रियाओं के बारे में प्रशिक्षित किया जा रहा है। जमानत की शर्तों को आसान बनाया गया है ताकि बेगुनाह लोग जेल में लंबा समय न बिताएं। निश्चित रूप से यह सकारात्मक कदम भारतीय न्याय प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करेगा।
लेखक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।