नैतिकता की सीख
एक बार महान दार्शनिक सोफोक्लीज के पास एक जाना-माना विद्वान आया। कहने लगा, ‘मैं ज्ञान-साधक हूं। हर पल ज्ञान ही लेता रहता हूं और अब तीस साल के अपने साधक जीवन के बाद आप जैसी नैतिकता सीखना चाहता हूं।’ सोफोक्लीज ने कहा, ‘अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए तो कुछ भी नहीं करना है बस सदाचारी बनो यही नैतिकता है।’ ‘क्या कह रहे हैं, बस इतना ही?’ जिज्ञासु हैरत में पड़ गया। ‘हां-हां, भरोसा रखो, इसके लिए कोई दंड बैठक या तपस्या की जरूरत नहीं है। बुराइयों को अपनाने के लिए कहीं सीखने जाना पड़ता है पर नैतिकता तो सहज है।’ सोफोक्लीज की इतनी आसान सलाह उसे हजम नहीं हुई और बात सुनकर भी प्रश्नकर्ता संशय से उनका मुंह देखता रहा। अब सोफोक्लीज ने एक सवाल उसी से पूछा, ‘अगर मैं तुमसे कहूं कि जाओ वहां से अमुक खजाने को चुरा लाओ तो ले आओगे?’ ‘एकदम तो नहीं ला सकूंगा पहले चोरी करना सीखना पड़ेगा।’ ‘और चोरी नहीं करना तुमने कैसे और कब सीखा?’ ‘अरे, यह कहीं से नहीं सीखा, चोरी नहीं करने की आदत तो मेरे भीतर हमेशा से स्थाई है।’ ‘तो अब तुमको नैतिकता का जवाब भी मिल गया होगा’, कहकर सोफोक्लीज हौले-हौले से मुस्कुराने लगे।
प्रस्तुति : पूनम पांडे