निर्वासन और गीता रहस्य
महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने क्रांतिकारियों का दमन करने वाले मुजफ्फरपुर के अंग्रेज जज किंग्सफोर्ड पर बम फेंका। उनके हमले की तार्किकता पर प्रख्यात पत्रकार व स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में दो संपादकीय लिखे। जिसके चलते तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चला। अंग्रेज जज डावर के अलावा जूरी के सदस्य अंग्रेज थे और तिलक अपना पक्ष मराठी में रखते थे। फलत: मनमानी करते हुए जज ने तिलक को छह साल के लिये देश निकाला की सजा दी। जब इस फैसले पर तिलक से सफाई देने को कहा गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि मैंने केसरी में जो लिखा, उसे राष्ट्रीय आंदोलन के यज्ञ में अपनी आहुति मानकर लिखा। जो भी लिखा सोच-विचार करके लिखा। जिसके लिये मैं किसी भी सजा को भुगतने को तैयार हूं। आपसे मैं न्याय की आस नहीं करता। आपकी सत्ता से बड़ी ऊपर वाले की सत्ता है, जो स्वतंत्रता के प्रेमियों को न्याय दिलाएगी। मेरा मानना है कि मेरे लिये निर्वासन लक्ष्य प्राप्ति में मददगार और शक्तिदायक होगा। तिलक को सजा काटने के लिये बर्मा की मांडले जेल भेजा गया। देश से सैकड़ों मील दूर रहते हुए भी वे हताश नहीं थे। एक छोटी-सी कालकोठरी में उन्होंने अपने बहुचर्चित ग्रंथ ‘गीता रहस्य’ की रचना की। प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा