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निकाय चुनाव से पहले भाजपा का संगठन के चुनाव पर फोकस

04:25 AM Dec 30, 2024 IST

चंडीगढ़, 29 दिसंबर (ट्रिन्यू)
हरियाणा में शहरी निकाय चुनाव से पहले भाजपा संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर लेना चाहती है। इसके लिए राज्य व जिला चुनाव अधिकारियों की घोषणा के बाद अब पार्टी ने जिला पर्यवेक्षकों की नियुक्तियां की हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को जिला पर्यवेक्षक बनाया गया है। एक पर्यवेक्षक को दो से चार जिलों का प्रभार सौंपा गया है। जिलों के चुनाव के बाद प्रदेश का चुनाव होगा, जिसमें इस बार फिर मोहन लाल बड़ौली के ही दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना है।

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भाजपा की प्रदेश महामंत्री एवं प्रदेश चुनाव अधिकारी डा. अर्चना गुप्ता ने जिला पर्यवेक्षकों की नियुक्तियां की हैं। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य एवं पूर्व सांसद डा. सुधा यादव को सिरसा, फतेहाबाद व भिवानी जिलों का पर्यवेक्षक बनाया गया है, जबकि भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ पंचकूला, अंबाला और यमुनानगर जिलों के पर्यवेक्षक होंगे। राज्यसभा सदस्य रामचंद्र जांगड़ा को कैथल, कुरुक्षेत्र और करनाल जिलों का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है।

डा. अर्चना गुप्ता के अनुसार भाजपा के प्रदेश महामंत्री सुरेंद्र पुनिया को चार जिलों का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। उन्हें सोनीपत, रोहतक, जींद और झज्जर जिले सौंपे गये हैं। यमुनानगर के विधायक घनश्याम दास अरोड़ा को पानीपत, फरीदाबाद व पलवल जिलों का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया, जबकि हरियाणा के पूर्व परिवहन व उच्च शिक्षा मंत्री पंडित मूलचंद शर्मा को महेंद्रगढ़, भिवानी व हिसार जिलों का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। भाजपा के सदस्यता अभियान के प्रदेश प्रमुख वेदपाल एडवोकेट को गुरुग्राम, नूंह और दादरी जिलों का पर्यवेक्षक बनाया गया है।

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जिलों के संगठनात्मक चुनाव में भाजपा इस बार कुछ बदलाव कर सकती है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए अच्छा काम करने वाले कार्यकर्ताओं को जिला प्रधान बनने का मौका दिया जा सकता है, जबकि अच्छा काम नहीं करने वाले जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। हर जिले में सर्वसम्मति से चुनाव होने की संभावना है और सभी जिलों में संगठन के चुनाव होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडौली सोनीपत जिले के राई से विधायक रह चुके हैं और उनकी राज्यसभा में जाने की चर्चा थी। पार्टी ने उन्हें ना तो विधानसभा चुनाव लड़वाया और ना ही राज्यसभा में भेजा, इसलिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद का दायित्व फिर से सौंपा जा सकता है।

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