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नश्वर है बुराई की चमक मगर अच्छाई स्थायी

04:00 AM Dec 16, 2024 IST

सच यही है कि बुराई और उससे होने वाला लाभ बढ़ता तो बहुत तेजी से है, परंतु नष्ट भी उतनी ही तेजी से होता है। वहीं सच्चाई और अच्छाई से चलने वाले धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, पर उनकी सफलता स्थायी होती है।

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डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’

आज समाज बड़ी तेजी से भौतिकता की ओर दौड़ रहा है और उसे बुराई की चकाचौंध में अच्छाई की महत्ता भी नहीं दिखती। बड़ों ने कहा है कि भले ही बुराई की चमक तुरंत आकर्षित कर लेती है, किंतु वह होती है क्षणभंगुर ही, जबकि अच्छाई की चमक स्थायी होती है।
मस्तमौला फक्कड़ कबीर तो धड़ल्ले से कह गया है :-
‘जो तोको कांटा बुवे, ताहि बाऊ तो फूल।
तोको फूल के फूल हैं, वाको हैं तिरसूल।’
आज जाने क्यों, समाज थोथी चमक-दमक के पीछे पागल की तरह अंधी दौड़ में खुद को भी भूलता जा रहा है। धोखाधड़ी, बेईमानी और मक्कारी समाज में बढ़ी है और सज्जनता बहुत कम दिखाई देती है।
आखिर, यह भौतिकता की अंधी दौड़ कहीं तो खत्म होगी ही न? बुराई पर अच्छाई की जीत तो युगों से होती आई है। बस, हमें स्वयं को तलाशना होगा। आज फिर एक ऐसी प्रेरक बोधकथा पढ़ने को मिली है, जिसने अंतर्मन को शक्ति दी है। वह बोधकथा आपको दे रहा हूं :-
‘एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है? अच्छी आत्माएं इतने शानदार महलों में रहती हैं और हम सब खंडहरों में? आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब भी तो आप ही की संतानें हैं।
भगवान ने उन्हें समझाया- ‘मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया है, पर तुम ही अपने कर्मों से बुरी आत्माएं बन गयी हों। सो वैसा ही तुम्हारा घर भी हो गया।’ भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएं भेदभाव किये जाने की शिकायत करती रहीं और उदास होकर बैठ गयी।
इस पर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले, ‘बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है। आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खंडहर दिए थे, वो सब नष्ट हो जायेंगे और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने-अपने लिए दो अलग-अलग नगरों का निर्माण नए तरीके से स्वयं करेंगी।’ तभी एक आत्मा बोली, ‘लेकिन इस नगर निर्माण के लिए हमें ईंटें कहां से मिलेंगी?’
भगवान बोले, ‘जब पृथ्वी पर कोई इंसान अच्छा या बुरा कर्म करेगा, तो यहां पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी। सभी ईंटें मजबूती में एक समान होंगी। अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम अच्छे कार्यों से बनने वाली ईंटें लोगे या बुरे कार्यों से बनने वाली ईंटें लेना चाहोगे?!’
बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर बुराई करने वाले अधिक लोग हैं, इसलिए अगर उन्होंने बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें ले लीं, तो एक विशाल नगर का निर्माण जल्दी हो सकता है। बस, उन्होंने भगवान से बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें मांग लीं। दोनों नगरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का नगर वहां रूप लेने लगा, क्योंकि उन्हें लगातार ईंटों के ढेर के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बहुत जल्द बना भी लिया। वहीं अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे-धीरे चल रहा था। काफी दिन बीत जाने पर भी उनके नगर का केवल एक ही हिस्सा बन पाया था।
कुछ दिन और ऐसे ही बीते। फिर एक दिन अचानक एक अजीब-सी घटना घटी। बुरी आत्माओं के नगर से ईंटें गायब होने लगीं... दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से, हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते ही देखते उनका पूरा नगर खंडहर का रूप लेने लगा। परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पूछा, ‘हे प्रभु! हमारे महल से अचानक ये ईंटें क्यों गायब होने लगीं? हमारा महल और नगर तो फिर से खंडहर बन गया है?’
भगवान मुस्कुराये और बोले, ‘ईंटें गायब होने लगीं! अच्छा! दरअसल जिन लोगों ने बुरे कर्म किए थे, अब वे उनका परिणाम भुगतने लगे हैं अर्थात‍् अपने बुरे कर्मों से उबरने लगे हैं। उनके बुरे कर्म और उनसे उपजी बुराइयां नष्ट होने लगी हैं। सो उनकी बुराइयों से बनी ईंटें भी नष्ट होने लगी हैं। आखिर को जो आज बना है, वह कल नष्ट भी तो होगा ही। अब किस की आयु कितनी होगी, ये तो अलग बात है।’
इस प्रकार बुरी आत्माओं ने अपना सिर पकड़ लिया और सिर झुका के वहां से चली गईं। सच यही है कि बुराई और उससे होने वाला लाभ बढ़ता तो बहुत तेजी से है, परंतु नष्ट भी उतनी ही तेजी से होता है। वहीं सच्चाई और अच्छाई से चलने वाले धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, पर उनकी सफलता स्थायी होती है।
इस बोधकथा से यही सीख मिलती है कि हमें सदैव सच्चाई की बुनियाद पर सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए। झूठ और बुराई की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते हैं, जिनकी चमक क्षणभंगुर ही होगी।
‘चमक बुराई की क्षणिक, थोड़ा सा भरमाय।
अच्छाई रहती सदा, यश औ’ मान दिलाय। ’

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