मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

नश्तर न हों रिश्ते कि रिसने लगे ज़िंदगी

04:00 AM Dec 19, 2024 IST

शमीम शर्मा

Advertisement

अपनी ज़िंदगी से बुरी तरह तंग आकर एक आदमी घर-बार छोड़ हिमालय चला गया। वहां जाकर उसने सोचा कि तपस्या में बैठने से पहले एक बीड़ी पी लेता हूं, फिर पता नहीं कब बीड़ी पीने का मौका मिले, न मिले। फिर उसने जेब में हाथ मारा तो माचिस नहीं मिली। बेचारा एक बार तो परेशान-सा हो गया। अब उसने बिना बीड़ी पिये तपस्या चालू कर दी। आंख मीचे दो साल समाधि में बैठा रहा तो भोलेनाथ प्रकट हो गये। उसके पैरों की आवाज सुनकर उस आदमी ने झट आंखें खोली और बोला- प्रधानजी, माचिस ले रे हो क्या? इस किस्से का कुल सार यह है कि भीतर की इच्छायें पूरी न हों तो कहीं चले जाओ, शान्ति नहीं मिलती।
मन की बात पूरी न हो तो मन कहीं नहीं लगता। मन भटकता रहता है और कई बार तो स्वयं की हार मानते हुए मौत को भी चूम लेता है। इस संदर्भ में कहना होगा कि हरियाणवी शायरी भी है कमाल की। हल्के लहजे में ऐसी बात कह दी जाती है कि बड़े-बड़े महारथी भी उस अंदाज में बात नहीं कह सकते। कल ये शे’र पढ़ने काे मिला :-
तारीफ करूं सूं तेरी हिम्मत की,
तन्नैं शेर ए दिलजमा खाक कर दिया
चार फुट की तू सारी नहीं अर,
यो छह फुट का छोरा खाक कर दिया।
मेरा ध्यान एकदम अतुल सुभाष पर पहुंच गया। आत्महत्या आसान नहीं होती। कोई भी अपने हाथोें मौत का फंदा चूमता है तो दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। शोषण चाहे औरत का हो या आदमी का, गलत है। अगर महिलायें कानून का दुरुपयोग कर अपने पति और उसके परिवार को सूली पर चढ़ाने को आमादा होंगी तो परिवार और विवाह नामक संस्थायें खतरे में पड़ जायेंगी। ऐसी नौबत नहीं आनी चाहिये कि कोई घर-बार छोड़कर हिमालय पर जा बैठे या अपनी आखिरी सांस की घड़ी अपने हाथों लिख ले। दो सहेलियां बात कर रही थीं। एक ने लड़कों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये सारे लड़के एक जैसे होते हैं। दूसरी बोली - तू सारे छोर्यां धोरै के इसीतिसी कराण गई थी?
संबंधों में सबसे ज्यादा महत्व एक-दूसरे के सम्मान का है। पर पढ़ाई-लिखाई और लाखों की नौकरियों ने हमारे युवक-युवतियों की सहनशीलता तथा पारस्परिक आदर-भाव को सूली पर चढ़ा दिया है। परिणाम यह होने लगा कि जीने की बजाय मरना अच्छा लगने लगा।
000
एक बर की बात है अक नत्थू बोल्या- ए! तेरा एडरेस बता दे। रामप्यारी बोल्ली- जुण से छज्जेपै कागा बैठ्या हो, उड़ै आ जाइये। नत्थू बोल्या- कागा तो कितै भी बैठ ज्यैगा। या सुणकै रामप्यारी बोल्ली-तन्नैं भी तो जूत खाणे हैं कितै भी खा लिये।

Advertisement
Advertisement