नदियों के मिलन से बहेगी विकास की धारा
देश के कई क्षेत्रों में बाढ़, सूखे के हल के लिए जरूरी है कि नदियों का बाढ़ का पानी इकट्ठा करें और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिये भेजा जाए। इससे पेयजल समस्या दूर होगी व पर्याप्त सिंचाई जल मिलेगा। नदी जोड़ो परियोजना के तहत पार्वती, कालीसिंध और चंबल लिंक प्रोजेक्ट इसी दिशा में कदम है।
प्रमोद भार्गव
मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच पार्वती, कालीसिंध और चंबल का पानी एक बड़े जलस्रोत के रूप में बहता है। उपरोक्त नदियों को जोड़े जाने की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयपुर में रखी है। इसके प्रतीकस्वरूप तीनों नदियों के पानी को एक घड़े में भरा गया। इसके बाद भारत सरकार और राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्य सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस परियोजना पर 72000 करोड़ रुपए खर्च होंगे जिसमें 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देगी। इसमें मध्यप्रदेश के 13 जिलों के 3217 ग्रामों की सूरत बदल जाएगी। दोनों प्रदेशों में मिलाकर 27 नए बांध बनेंगे और 4 पुराने बांधों पर नहरों की जलग्रहण क्षमता बढ़ाई जाएगी। इसी के साथ मौजूदा चंबल-नहर प्रणाली का उद्धार किया जाएगा। ये नदियां निर्धारित अवधि में जुड़ जाती हैं तो सिंचाई के लिए कृषि भूमि का रकबा बढ़ने के साथ अन्न की पैदावार बढ़ेगी।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदी जोड़ो अभियान की जो परिकल्पना की थी, उसे नरेंद्र मोदी ने साकार करने की शुरुआत केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से कर दी थी। ये परियोजनाएं जल-शक्ति अभियान ‘कैच द रन’ के तहत अमल में लाई जा रही हैं। बाढ़ और सूखे से परेशान देश में इन नदी परियोजनाओं को जोड़ने का अभियान सफल होता है तो 57 अन्य नदियों के मिलन का रास्ता खुल जाएगा। दरअसल जलवायु परिवर्तन और बदलते वर्षा-चक्र के चलते जरूरी हो गया है कि नदियों के बाढ़ के पानी को इकट्ठा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिये भेजा जाए। वैसे भी भारत में विश्व की कुल आबादी के करीब 18 प्रतिशत लोग रहते हैं और उपयोगी जल की उपलब्धता महज 4 प्रतिशत है। हालांकि पर्यावरणविद् इन प्रोजेक्ट्स का विरोध कर रहे हैं कि नदियों को जोड़ने से इनकी अविरलता खत्म होगी व विलुप्त होने का संकट बढ़ जाएगा।
नर्मदा और क्षिप्रा नदियों को जोड़ने का काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले ही कर चुके थे। चूंकि ये दोनों नदियां मध्य प्रदेश में बहती थीं, इसलिए इन्हें जोड़ा जाना संभव हो गया था। केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की तैयारी में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारें बहुत पहले से जुटी थीं। इस परियोजना को वर्ष 2005 में मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन पानी के बंटवारे को लेकर विवाद बना हुआ था। कालांतर राजनीतिक स्थितियां बदलीं तो परियोजनाओं पर सहमति बन गई। केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किमी उत्तर की ओर बहने के बाद बांदा जिले में यमुना नदी में जाकर गिरती है। वहीं बेतवा नदी मध्य-प्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर 576 किमी बहने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिलती है। केन-बेतवा नदी जोड़ो योजना पर बांधों एवं नहरों का काम शुरू हो गया है।
दुनिया के महासागरों, हिमखंडों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भंडार हैं। लेकिन मानव के लिए उपयोगी जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए जल की उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। ऐसे में भी बढ़ते तापमान के कारण हिमखंडों के पिघलने और वर्षा न होने के चलते जल स्रोतों के सूखने का सिलसिला जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रही है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है जिसका मुख्य स्रोत नदियां और भू-जल हैं। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के दबाव के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं औद्योगिक कचरा और गंदगी बहाना जारी रहने से गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां बेहद प्रदूषित हो गई हैं।
प्रस्तावित करीब 120 अरब डॉलर अनुमानित खर्च की नदी जोड़ो परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना और दूसरे हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा। पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी। यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस परियोजना का हिस्सा है।
हिमालय क्षेेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ से छुटकारा मिले। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेेत्र में कोसी, घांघरा, मेच, गंडक, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। करीब 13,500 किमी लंबी ये नदियां भारत के संपूर्ण मैदानी क्षेेत्रों में बहती हैं। वही 2528 लाख हेक्टेयर भूखंडों और वनप्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घनमीटर जल है। कृषि योग्य 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत सिंचित होती है।
नदियों के बाढ़ के पानी को इकट्ठा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेेत्रों में नहरों के जरिए भेजा जाए। ऐसा हो तो पेयजल की समस्या का निदान तो होगा ही, सिंचाई के लिए भी पर्याप्त जल मिलने लग जाएगा। इसलिए नदी जोड़ो परियोजनाओं को भविष्य के लिए लाभदायी माना जा रहा है।