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धरती को गर्म करने में मंगल की भूमिका

04:00 AM Jan 15, 2025 IST
धरती को गर्म करने में मंगल की भूमिका
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भूभौतिकी के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक डाइटमार मुलर ने बताया कि सौर मंडल में ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र एक-दूसरे के साथ हस्तक्षेप करते हैं। इस अंतःक्रिया के कारण मंगल का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पृथ्वी को सूर्य के थोड़ा करीब खींचता है, जिससे सौर विकिरण बढ़ता है और जलवायु गर्म होती है।
मुकुल व्यास
मंगल का पृथ्वी के साथ एक अनोखा संबंध है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। यह बात कुछ अजीब-सी लगती है कि मंगल का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी को सूर्य के करीब खींचता है, जिससे हमारी जलवायु गर्म होती है। नए शोध से मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र और पृथ्वी की जलवायु के बीच रिश्ते का संकेत मिलता है। 6.5 करोड़ वर्ष पुराने भूवैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि पृथ्वी पर गहरे समुद्र की धाराएं हर 24 लाख वर्षों में शक्ति के चक्रों से गुजरती हैं। इन चक्रों को ‘खगोलीय विराट चक्र’ कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये चक्र पृथ्वी और मंगल के बीच गुरुत्वाकर्षण संबंधों से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं। गहरे समुद्र की धाराएं मजबूत और कमजोर चरणों के बीच बारी-बारी से आती हैं और समुद्र तल पर तलछट के संचय को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। मजबूत धाराओं की अवधि के दौरान शक्तिशाली हलचल रसातल तक पहुंचती है और वहां जमा तलछट को नष्ट कर देती है।
सिडनी विश्वविद्यालय में भूभौतिकी के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक डाइटमार मुलर ने बताया कि सौर मंडल में ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र एक-दूसरे के साथ हस्तक्षेप करते हैं। इस अंतःक्रिया के कारण मंगल का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पृथ्वी को सूर्य के थोड़ा करीब खींचता है, जिससे सौर विकिरण बढ़ता है और जलवायु गर्म होती है। समय के साथ, पृथ्वी फिर से पीछे की ओर खिसकती है, और यह चक्र लगभग हर 24 लाख वर्ष में पूरा होता है। यह सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पृथ्वी के दीर्घकालिक जलवायु पैटर्न को आकार देने में भूमिका निभा सकता है। हमारे सौर मंडल में प्रत्येक ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह और यहां तक कि छोटे धूल कण गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण एक बड़े पिंड के चारों ओर एक विशिष्ट पथ या कक्षा का अनुसरण करते हैं। मंगल और पृथ्वी अण्डाकार पथों में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, लेकिन पृथ्वी सूर्य के करीब है और अपनी कक्षा में तेजी से चलती है। पृथ्वी को एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 365 दिन लगते हैं जबकि मंगल को लगभग 687 दिन लगते हैं।
शोधकर्ताओं ने लाखों वर्षों के दौरान समुद्र तल पर तलछट संचय का मानचित्रण करने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग किया। टीम ने भूगर्भीय रिकॉर्ड में अंतराल की खोज की, जिससे पता चलता है कि मंगल के प्रभाव के कारण गर्म अवधि के दौरान शक्तिशाली समुद्री धाराओं ने तलछट के जमाव को बाधित किया होगा। ये निष्कर्ष इन साक्ष्यों को बल प्रदान करते हैं कि मंगल के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव सहित खगोलीय यांत्रिकी, पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करती है। नए निष्कर्ष ग्रहों की कक्षीय यांत्रिकी और पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियों के परस्पर संबंध पर जोर देते हैं, और इस बात पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं कि ब्रह्मांड लाखों वर्षों में हमारे ग्रह की जलवायु को कैसे आकार दे सकता है।
शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि गर्मी के इस प्रभाव का मानव गतिविधियों से हो रही वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग से संबंध नहीं है। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि ये चक्र उन परिदृश्यों में भी समुद्री धाराओं को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं जहां आज ग्लोबल वार्मिंग उन्हें कमजोर कर सकती है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण धारा अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) है, जिसे अक्सर समुद्र की कन्वेयर बेल्ट के रूप में जाना जाता है। यह प्रणाली उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से उत्तरी गोलार्ध में गर्म पानी पहुंचाती है और गहरे समुद्र में गर्मी के वितरण को सुगम बनाती है।
हालांकि, कुछ वैज्ञानिक आने वाले दशकों में एएमओसी के संभावित पतन की भविष्यवाणी कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस धारा के बंद होने से हमारे समक्ष बड़ी चुनौतियां प्रकट हो सकती हैं। विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी और उत्तरी एटलांटिक क्षेत्र में तूफान की घटनाएं बढ़ सकती हैं। एटलांटिक धारा के बंद होने से विश्व स्तर पर गर्मी और वर्षा का वितरण प्रभावित होगा। इसका पृथ्वी की जलवायु पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। पृथ्वी की जलवायु में समुद्री धाराओं की भी एक बड़ी भूमिका होती है। समुद्री धारा दरअसल गुरुत्वाकर्षण, हवा और जल के घनत्व द्वारा संचालित समुद्री जल का निरंतर दिशात्मक प्रवाह है। समुद्री धाराएं समुद्र में निर्धारित मार्गों का अनुसरण करती हैं। वे एक प्रकार से समुद्र में बहने वाली नदियां हैं। वे पानी की सतह पर हो सकती हैं या गहरे समुद्र में भी जा सकती हैं। कुछ धाराएं बहुत बड़ी हैं। जापान की कुरोशियो धारा का आयतन 6,000 बड़ी नदियों के बराबर है। दरअसल, समुद्री धाराओं की प्रणाली गर्मी के हस्तांतरण, जैव विविधता में भिन्नता और पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के लिए जिम्मेदार है। यदि कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का वर्तमान उत्सर्जन जारी रहता है, तो उष्णकटिबंधीय और एटलांटिक क्षेत्र के सबसे उत्तरी हिस्सों के बीच गर्मी, ठंड और वर्षा का पुनर्वितरण करने वाली महत्वपूर्ण समुद्री धाराएं वर्ष 2060 के आसपास बंद हो जाएंगी। यह निष्कर्ष डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय की नई गणनाओं पर आधारित है। अपने अध्ययन में इस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि यदि हम ग्रीनहाउस गैसों का वर्तमान स्तर पर उत्सर्जन जारी रखते हैं तो समुद्री धाराओं की प्रणाली पूरी तरह से बंद हो जाएगी। उन्नत सांख्यिकीय उपकरणों और पिछले 150 वर्षों के समुद्र के तापमान डेटा का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने गणना की कि एटलांटिक समुद्री धारा, जिसे थर्मोहेलाइन सर्कुलेशन भी कहा जाता है, 2025 और 2095 के बीच बंद हो जाएगी। ऐसा संभवतः 2057 में हो सकता है। थर्मोहेलाइन सर्कुलेशन समुद्री धाराओं की वैश्विक प्रणाली का हिस्सा है।
डेनमार्क के नील्स बोर इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पीटर डिटलेवसन ने कहा कि पूरी दुनिया के गर्म होने से गर्मी की लहरें बार-बार आएंगी। धारा का बंद होना उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी बढ़ाने में योगदान देगा, जहां बढ़ते तापमान ने पहले से ही चुनौतीपूर्ण जीवन परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं। उन्होंने कहा कि हमारे अध्ययन के निष्कर्ष वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जल्द से जल्द कम करने के महत्व को रेखांकित करते हैं। थर्मोहेलाइन सर्कुलेशन के बारे में ये प्रारंभिक चेतावनीपूर्ण संकेत पहले भी बताए जा चुके हैं, लेकिन अब उन्नत सांख्यिकीय तरीकों के विकास से यह भविष्यवाणी करना संभव हो गया है कि समुद्री धारा कब बंद होगी। लेकिन नए अध्ययन से जुड़े विज्ञानियों का कहना है है कि गहरे समुद्र की वृत्ताकार धाराओं के कारण होने वाला वेंटिलेशन (वायु संचार) समुद्रों को स्थिर होने से रोकने में मदद कर सकता है। अतः महत्वपूर्ण समुद्री धारा के बंद होने की भविष्यवाणी से दुनिया को फिलहाल विचलित होने की जरूरत नहीं है।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।
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