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धक्के का रुतबा और धक्काशाही का दौर

04:00 AM Dec 28, 2024 IST

सहीराम

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अगर व्रत-उपवास की कहानियों के अंदाज में कहा जाए तो जैसे धक्के के दिन फिरे, वैसे सबके फिरें, जैसे धक्के का रुतबा बढ़ा, वैसा सबका बढ़े। धक्के का रुतबा इतना बढ़ा है जनाब कि वह संसद तक पहुंच गया है और राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गया है। वरना कल तक धक्के का स्तर गली मोहल्ले वाला ही था। वो जिसे भोजपुरी में थेथरई कहते हैं न, धक्के का स्तर वही था-थेथरई वाला, जो भोजपुरी गानों में कुछ इस तरह प्रतिबिंबित होता था कि लगेला कमरिया का झटका, बलम कलकत्ता पहुंच गए। लेकिन इधर धक्के से सांसद अस्पताल पहुंच रहे हैं। जलकुकड़े इसकी व्याख्या इस तरह कर सकते हैं कि बलम बेचारे तो रोजी-रोटी के लिए कलकत्ता जाते थे, लेकिन सांसद अस्पताल क्यों जा रहे हैं, राजनीति के लिए?
जो भी हो जनाब, सच तो यही है न कि धक्का संसद तक पहुंच गया। जैसे गली-मोहल्ले से उठकर कई बार दादा टाइप के गुंडे, हत्यारे, अपराधी और बलात्कारी संसद पहुंच जाते हैं, धक्का भी कुछ-कुछ उसी तरह से संसद पहुंच गया है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उसका राजनीतिकरण पहली बार हुआ है। जैसे राजनीति का अपराधीकरण अरसे से चल रहा है, वैसे ही धक्के का राजनीतिकरण भी अरसे से चल रहा है।
एक जमाना होता था जब सरकारों के खिलाफ यह नारा अक्सर लगता था कि सड़ी-गली सरकार को एक धक्का और दो। लेकिन अब सरकारों के खिलाफ नारे कहां लगते हैं। सरकार भी इतनी तगड़ी ठहरी कि उसका छप्पन इंची सीना अक्सर खौफ पैदा करता रहता है। जैसे घोषित इमरजेंसी में इस तरह के नारे लगने बंद हो गए थे, वैसे ही अब हो गए। क्योंकि आरोप तो वही लगता है न कि है तो इमरजेंसी ही, चाहे अघोषित ही सही। यूं उस जमाने को याद करने वाले अब भी मिल जाएंगे जब हर काम के लिए लाइनें लगती थीं-पानी के नल से लेकर राशन की दुकान तक। तब खूब धक्का-मुक्की होती थी। लेकिन जब से धक्का संसद पहुंचा है, उसके साथ लगी मुक्की गायब हो गयी है। अब सिर्फ धक्का रह गया है।
जलकुकड़े इस पर कुढ़ सकते हैं कि जैसे राममंदिर आंदोलन के कारण सीताराम-सियाराम से सीताजी गायब हुई और सिर्फ श्रीराम रह गए, वैसे ही धक्के से मुक्की गायब हो गयी। हां, अलबत्ता बसों और ट्रेनों में धकमपेल अभी भी मची रहती है। पर वो तो जी मैट्रो में भी मची रहती है, उसका कुछ नहीं किया जा सकता। खैर जी, देश के आम लोगों के साथ तो अक्सर धक्का होता ही रहता है, पर सांसदों के साथ धक्का पहली बार हुआ है और इसके बावजूद हुआ है कि विपक्षी आरोप लगाते रहते हैं कि सरकार की धक्काशाही चल रही है।

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