नयी दिल्ली, 3 मार्च (एजेंसी)सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि दृष्टिबाधित लोगों को न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस महादेवन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि न्यायिक सेवा में भर्ती के दौरान दिव्यांगजन के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए तथा सरकार को समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘चाहे वह ‘कटऑफ' के माध्यम से हो या प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण.. किसी भी प्रकार के ऐसे अप्रत्यक्ष भेदभाव में हस्तक्षेप किया जाना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप दिव्यांगजन को अवसर से वंचित रखा जाता हो ताकि मौलिक समानता बरकरार रखी जा सके।' फैसले में कहा गया कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उसके दिव्यांग होने के कारण अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम 1994 के उन कुछ नियमों को भी रद्द कर दिया, जिसके तहत दृष्टिबाधित और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में प्रवेश से रोका गया था। गौरतलब है कि पीठ ने इस मामले में पिछले साल तीन दिसंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था।