दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति
एक बार चीन के सम्राट ने अपने गुरु से पूछा, ‘एक ही चीज़ के अनेक रूप कैसे संभव हैं? एक ही में अनेकता का क्या रहस्य है?’ गुरु ने सम्राट से कहा, ‘हर चीज़ अपने आप को विविधतापूर्ण रूप में प्रस्तुत करती है।’ गुरु ने फिर उदाहरण दिया, ‘अब यह देखिए इस गुलाब के फूल को। कोई इसे उसके समग्र सौंदर्य के लिए पसंद करता है, तो कोई उसकी गंध के लिए, और कोई उसके रंग के लिए इसे सराहता है। कितने ही दार्शनिक इस गुलाब के फूल को केवल फूल नहीं, बल्कि कंटकों के साथ मुस्कुराते रहने वाले संत के रूप में भी देख सकते हैं।’ गुरु ने आगे कहा, ‘संभव है कि कोई गुलाब के फूल पर पड़ी ओस की बूंदों को देखकर उसमें गुलाब के फूल के दुख-दर्द और अपने दिल के छिपे हुए दर्द की झलक देखता हो।’ गुरु ने सम्राट से कहा, ‘यानी, वस्तु एक ही है, पर उसे चाहने और पसंद करने वाले अनेक हैं। हर किसी का दृष्टिकोण अलग है और हर व्यक्ति अपने अनुभव, भावनाओं और सोच के आधार पर किसी चीज़ को अलग तरीके से देखता है।’
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे