दूर नहीं अब भारतीय स्पेस स्टेशन का लक्ष्य
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने साल 2028 तक देश का पहला अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन लांच करने का ऐलान किया है। जिसका मॉड्यूल एक रोबोटिक मॉड्यूल होगा यानी एक ऐसा उपग्रह जहां हम डॉक व प्रयोग करके वापस आ सकते हैं। लेकिन एक इंसान का भारत के अंतरिक्ष स्टेशन पर जाना 2035 के बाद ही संभव है। यानी इसरो का लक्ष्य है कि 2035 तक भारत का अपना स्पेस स्टेशन हो।
शैलेंद्र सिंह
तेईस अगस्त, 2023 को जब भारत चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश बना था, उसके पहले किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि भारत जैसा देश भी आने वाले एक दशक के भीतर स्पेस में अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की भी घोषणा कर सकता है। लेकिन यह घोषणा करने के बाद अब जबकि शुभांशु शुक्ला एक स्पेस मिशन के चलते दो हफ्तों की इंटरनेशन स्पेस स्टेशन में ट्रेनिंग ले रहे हैं, तब किसी को इस बारे में आशंका नहीं रह गई कि निकट भविष्य में भारत अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनायेगा।
इसरो का पहला लक्ष्य रोबोटिक मॉड्यूल
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने साल 2028 तक भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन लांच करने का ऐलान किया है। उसके मुताबिक 2028 में लांच होने वाला मॉड्यूल एक रोबोटिक मॉड्यूल होगा यानी एक ऐसा उपग्रह जहां हम डॉक कर सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं और वापस आ सकते हैं। लेकिन एक इंसान का अंतरिक्ष स्टेशन पर जाना साल 2035 के बाद ही संभव होगा। यानी इसरो का लक्ष्य है कि 2035 तक भारत का अपना स्पेस स्टेशन हो। अंतरिक्ष स्टेशन (एसएस) पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन या रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह होता है। अभी तक पृथ्वी की निचली कक्षा में पूरी तरह से कार्यरत दो अंतरिक्ष स्टेशन मौजूद हैं। पहला आईएसएस (अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन) और दूसरा चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन है (टीएसएस)।
मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन
दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन साल्युट 1 था, जिसे तत्कालीन सोवियत संघ (आज का रूस) ने 19 अप्रैल 1971 को कजाकिस्तान के बायकोनूर कॉसमोड्रोम से लांच किया था। इसके भेजने का मुख्य मकसद अंतरिक्ष यात्रा में इंसान के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना और अंतरिक्ष से पृथ्वी की निरंतर तस्वीरें लेना था। लेकिन वर्तमान में जो कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन है, उसे 20 नवंबर 1998 को लांच किया गया था। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के नेतृत्व में संचालित यह स्पेस स्टेशन एक बहुराष्ट्रीय सहयोग से संचालित परियोजना है। इसमें 5 देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां भागीदार हैं। अमेरिका की नासा, रूस की रोस्कोस्मोस, जापान की जेएएक्सए , यूरोप की ईएसए तथा कनाडा की सीएसए। साल 2000 से इस अंतरिक्ष स्टेशन में दुनिया के अलग-अलग देशों के एस्ट्रोनॉट्स ने रहना शुरू किया। ये अंतरिक्ष यात्री यहां रहकर दूसरे ग्रहों की स्टडी और विभिन्न प्रयोग करते हैं। मौजूदा आईएसएस धरती से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर रहकर पृथ्वी के चक्कर काटता है। इसकी रफ्तार 28 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा है, जिससे यह महज 90 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर लेता है।
चीन का तियांगोंग
आईएसएस के अलावा अंतरिक्ष में जो दूसरा अंतरिक्ष स्टेशन मौजूद है, वह चीन का तियांगोंग है। यह एक स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन है जिसके कोर मॉड्यूल में छह अंतरिक्ष यात्री रह सकते हैं। चीन का अंतरिक्ष स्टेशन नासा के नेतृत्व वाले इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से छोटा है, लेकिन साल 2022 के अंत में तैयार हुए चीन ने अपनी इस स्टेशन को भविष्य में और बड़ा बनाने की योजना बना रखी है। इसका जीवनकाल 15 सालों का है।
बहुत पहले से जारी है योजना
इसरो ने अपनी योजना के मुताबिक, साल 2019 में ऐलान भी किया था कि अगले 20 से 25 सालों में भारत का अंतरिक्ष में अपना बेस होगा। इसरो ने स्पेस स्टेशन बनाने की शुरुआती योजना पर काम 2019 में ही शुरू हो गया था। फिर साल 2023 में 17 अक्तूबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गगनयान की प्रगति का आकलन करने के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की थी, उसी मीटिंग में इसरो को निर्देश दिया था कि अब वह बड़े मिशन पर काम करे, जिसमें अंतरिक्ष में स्टेशन बनाना और चांद पर भारतीयों को उतारना शामिल हो।
इस टारगेट के तहत इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने स्पष्ट किया था कि अगले पांच सालों यानी 2028 तक भारतीय स्पेस स्टेशन के शुरुआती मॉड्यूल को ऑर्बिट में पहुंचा दिया जायेगा। भारत के इस शुरुआती अंतरिक्ष स्टेशन का मॉड्यूल अस्थायी होगा। इसरो के मुताबिक, इसमें एक साथ 4 से 5 एस्ट्रोनॉट्स रह सकेंगे और इसे पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा में रखा जायेगा, जिसे एलईओ (लोअर अर्थ ऑर्बिट) कहते हैं और यह धरती से 400 किलोमीटर दूर स्थित है। - इ.रि.सें.