दिल को छूने वाली फिल्मों का इंतजार
बॉलीवुड में गिनती की अच्छी फिल्में आ रही हैं। फिर भी कमियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। फिल्म निर्माण में स्टारडम हावी है। हिंदी सिनेमा में रौनक चाहिये तो निर्देशन पर फोकस की जरूरत है। साथ ही अच्छी स्क्रिप्ट और संगीत की भी कद्र हो। हिट चाहिये तो फिल्मकार एजेंडा में फंसने की बजाय दर्शकों के दिल को छूने वाली फिल्में लेकर आयें।
असीम चक्रवर्ती
एक अरसे से बॉलीवुड में मानो पतझड़ का मौसम चल रहा है। फिल्म के कई अहम पक्षों में एक शून्यता दिखाई पड़ रही है। जिसके चलते न तो अच्छे रोल लिखे जा रहे हैं, न ही कलाकारों की शानदार परफार्मेंस नजर आ रही है। देखा जाए, तो ज्यादातर फिल्मों का निर्माण कटिंग-पेस्टिंग के स्टाइल में हो रहा है। यही वजह है कि पूरा साल बीत जाता है, गिनती की कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिलती हैं। दूसरी ओर बॉलीवुड अपनी इन कमियों को नजरअंदाज कर रहा है।
कैप्टेन हो रहा अदृश्य
फिल्मी जहाज का कप्तान डायरेक्टर होता है। एक दौर था, जब के. आसिफ, महबूब खान, कमाल अमरोही व हृषिकेश मुखर्जी जैसे डायरेक्टर्स की बात बड़े-बड़े सितारे मानते थे। वही होता था, जो डायरेक्टर चाहता था। इसके उलट आज फिल्म निर्माण में स्टारडम हावी है जिससे अच्छी फिल्मों का निर्माण ना बराबर हो रहा है।
कहां हैं कल्पनाशील डायरेक्टर
पिछले दिनों फ्लॉप हो चुकी रोहित शेट्टी की “सिंघम रिटर्न्स” के बारे में एक आलोचक ने बड़ी रोचक टिप्पणी की- “मैं पूरी फिल्म में सिर्फ डायरेक्टर को तलाशता रहा।” और यही बात आज की ज्यादातर फिल्मों के बारे में कही जा रही है। भूल-भुलैया या स्त्री-2, जिन भी फिल्मों में डायरेक्टर अपना रुतबा दिखाता है, वह फिल्म भले ही क्लासिक न बने, कमाई का अच्छा स्रोत जरूर बनती है। क्लासिक फिल्मों के लिए एक डायरेक्टर का कल्पनाशील होना जरूरी है।
स्क्रिप्ट राइटर की हालत
यदि आप काबिल लेखकों की तलाश करें, तो मीडिया या दूसरे क्रिएटिव फील्ड में आपके मन मुताबिक लेखक आसानी से मिल सकते हैं। लेकिन इस फील्ड में अच्छे लेखक की बजाय चाटुकार लेखक ज्यादा आ रहे। कई लेखक-निर्देशक हैं, जो सालों से बाउंड स्क्रिप्ट लेकर घूम रहे हैं, पर हर बैनर ने उन्हें नजरअंदाज किया।
लेखक का दर्द
एक लेखक ने अपना दुखड़ा व्यक्त किया- “मैं सलमान, शाहरुख सहित कई बड़े दिग्गज स्टार के घर में महीनों तक हाजरी लगा चुका हूं। कई से बात कर चुका हूं। इनमें से कई सितारों ने मेरी स्क्रिप्ट को पसंद भी किया। मगर कुछ हासिल नहीं हुआ।” वैसे इस मामले में आमिर जैसे कुछ लोग अपवाद हैं। वरना शाहरुख, सलमान, अजय, अक्षय जैसे दिग्गजों के इर्द-गिर्द चाटुकार मौजूद रहते हैं। बेवजह दखलअंदाजी से अच्छी स्क्रिप्ट का सत्यानाश हो जाता है। इसका ताजा उदाहरण है राजकुमार हिरानी की फिल्म “डंकी”।
म्यूजिक से मैलोडी ही गायब
एक दौर में सुरीला संगीत फिल्मों का जान हुआ करता था, कई हीरो को बनाने-संवारने में संगीत का बड़ा हाथ रहा। मगर हाल के वर्षों में बॉलीवुड फिल्मों से मैलोडी गायब हो चुकी है। फिल्मी म्यूजिक के नाम पर अमूमन शोर-शराबे वाले गाने परोसे जा रहे हैं, जिनका सिचुएशन से कोई वास्ता नहीं होता। जैसा कि गुलजार साहब कहते हैं, “फिल्म के हर गाने सिचुएशन के मुताबिक होने चाहिए,” आज वह चूक करीब हर फिल्म में नजर आती है।
साउथ का झटका
ताजा सर्वे के मुताबिक बॉलीवुड फिल्मों के दर्शक वर्ग का 60 प्रतिशत हिंदी भाषी है। जबकि साउथ की फिल्में तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम भाषी दर्शकों के बीच बंटी हुई हैं। लेकिन साउथ की ज्यादातर फिल्में डब होकर निरंतर पंख फैला रही हैं। इसकी खास वजह है कि वे अपनी फिल्मों का निर्माण टोटल मास अपील को ध्यान में रखकर कर रहे हैं। यही वजह थी कि “पुष्पा-2” को इसके निर्माताओं ने हिंदी के अलावा भोजपुरी में भी डब करके रिलीज किया है। यही नहीं साउथ की ज्यादातर फिल्में किसी आलोचना या एजेंडा में फंसने की बजाय सिर्फ अपने दर्शकों को टारगेट करती हैं। इससे किसी की भावनाएं आहत नहीं होती और फिल्म को सफलता मिलती है।