...तोड़ के बंधन बांधी पायल
दीप भट्ट
वहीदा के सुव्यवस्थित फिल्मी सफर में, सबसे महत्वपूर्ण तीन भूमिकाएं हैं-प्यासा की गुलाबो, तीसरी कसम की हीराबाई और गाइड की रोजी। इन तीनों भूमिकाओं में कथा के केंद्र में नायक के होते हुए भी, नायिका नायक से अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। क्या कांटों से खींचकर ये आंचल…गाती हुई ये रोजी कहीं किसी के सामने भी भुलाई जा सकती है? और उसके मानसिक उद्वेग को रूपाकार देने वाला सपेरा नृत्य, किसी दर्शक के मानसपटल से खरोंचा जा सकता है? और अंत में राजू गाइड की मानसिक हलचल को रोजी की आत्मानुभूति ही क्या जीवन सार्थकता नहीं देती। दरअसल, रोजी, गाइड राजू की प्रेमिका ही नहीं, बल्कि जीवनी शक्ति है। निश्चित ही यहां इस संरचना में कथाकार-गीतकार और निर्देशक का हुनर भी शामिल है और रोजी की भूमिका में जिस तरह वहीदा रहमान गहरी अंतरंगता में डूबी हैं, उसी ने कथाकार, गीतकार और निर्देशक की उच्चतम कल्पनाओं को साकार रूप दिया है। इस भूमिका को इतना महत्वपूर्ण बनाने में देव आनंद के भद्र व्यक्तित्व का नायिका को पूरा आश्रय प्राप्त हुआ है। वहीदा रहमान, देव आनंद के भद्र व्यक्तित्व के बारे में बार-बार ये संदर्भ देते हुए नहीं थकतीं। वे मुझे टॉम अल्टर के एक नाटक के शो के दौरान मुंबई में मिलीं। उन्हें इंटरव्यू का मकसद बताया तो उन्होंने बांद्रा स्थित बंग्लो में अगले दिन इंटरव्यू का वक्त दिया। गाइड और देव आनंद पर विस्तार से बातचीत की :
बहुत बड़े, पर को-ऑपरेटिव स्टार
देव के साथ मेरी पहली फिल्म थी, सीआईडी और वे बहुत बड़े स्टार थे। मैं न्यूकमर थी, उस वक्त। इसके बावजूद वे बहुत को-आपरेटिव थे, बहुत डीसेंट और जेंटलमैन थे। सीआईडी बहुत कामयाब हुई थी, उनके साथ। फिर तो मैं लगातार उनके साथ काम करती रही। मेरे ख्याल में, सबसे ज्यादा पिक्चर मैंने उनके साथ कीं।
गाइड की बात चल रही है तो कई बातें मेरे जेहन में तैर रही हैं। दरअसल, पहले चेतन आनंद साहब पिक्चर डायरेक्ट कर रहे थे। दूसरा, अंग्रेजी वर्शन वाले डायरेक्टर टैड डेनीलीवस्की थे। पहले ये लोग मुझे फिल्म में लेना नहीं चाह रहे थे। फिर देव साहब ने जिद की कि मैं प्रोड्यूसर हूं फिल्म का और मेरे वर्शन में वहीदा हीरोइन होंगी। तो डायरेक्टर को उनकी बात को मानना पड़ा।
मेरी बड़ी इच्छा थी कि विजय आनंद इस फिल्म को डायरेक्ट करें। वैसे चेतन आनंद भी बहुत अच्छे डायरेक्टर थे। लेकिन गोल्डी (विजय) और मेरी बहुत अच्छी अंडरस्टेंडिंग थी। जब मैंने देव से कहा कि इस फिल्म को गोल्डी डायरेक्ट करेंगे तो बेहतर होगा। देव ने कहा कि गोल्डी, तेरे-मेरे सपने की एडिटिंग कर रहे हैं। ऐसे में मेरी पिक्चर बहुत डिले हो जाएगी। तो चेतन साहब ने पिक्चर शुरू की। उधर डेनीलीवस्की ने भी पिक्चर शुरू की। फिर दोनों डायरेक्टरों के बीच क्लैश होने लगा। क्योंकि देव साहब चाह रहे थे कि एक ही सेट हो और उसी में पहले अंग्रेजी वाले की शूटिंग कर लो और फिर हिन्दी की शूटिंग कर लो। जबकि चेतन साहब जहां अंग्रेजी के डायरेक्टर ने शॉट लिया, वहीं हिन्दी वाला शॉट लेना नहीं चाहते थे। दस-बारह दिन शूटिंग की। वहीं इस दरम्यान, देव साहब बोले, ये तो बहुत गड़बड़ हो रही है। कोई कहता है इधर से शॉट लो और कोई कहता है, उधर से शॉट लो। उदयपुर से शूटिंग करके वापस आए तो दोनों भाइयों में कुछ बात हुई होगी। तो चेतन साहब ने कहा कि ऐसी बात है तो मैं नहीं करूंगा। तो वे अपने से हट गए। फिर देव साहब ने कहा कि वहीदा हम पहले अंग्रेजी वर्शन कर लेते हैं। तब तक गोल्डी फ्री हो जाएंगे। अंग्रेजी वर्शन बन गया तो विजय आनंद ने पूरी स्क्रिप्ट लिखी, सींस लिखे, डॉयलाग लिखे। तो हिन्दी वर्शन बिल्कुल अलग था। हिन्दी गाइड में जो डेप्थ थी, कहानी की, कैरेक्टर की, वह मेरे हिसाब से ज्यादा अच्छी थी। हिन्दी गाइड में देव आनंद कहीं हावी नहीं हैं, बस राजू गाइड है।
मेरी बेस्ट फिल्म
गाइड की शूटिंग के पूरे अनुभव के बारे में सोचती हूं तो लगता है, बहुत अच्छा अनुभव रहा मेरा। सबकी फेवरिट फिल्म है, मेरी भी बेस्ट फिल्म है यह। सब्जेक्ट ही एवरग्रीन है। आज से चौवन साल पहले उस वक्त बहुत ही प्रोग्रेसिव और बहुत ही बोल्ड सब्जेक्ट था। गाइड की फाउंडेशन तो आर. के. नारायण के उपन्यास-दि गाइड पर ही खड़ी है।
मार्को को थप्पड़ मारने वाला सीन
गाइड में स्क्रीन प्ले बेहद सुंदर है। मेरे कोई खास सीन सुंदर हों, ऐसी बात नहीं हैं। पूरी फिल्म ही सुंदर है। अगर मैं फिल्म में किसी सीन का जिक्र करूं तो मुझे लगता है कि मेरा गुफा में जाकर मार्को को थप्पड़ मारने वाला सीन बहुत स्ट्रांग और बोल्ड था। करेक्टर वाइज भी देखो तो राजू का किरदार हो या रोजी का या मार्को का, सभी बेहतरीन थे। तीनों किरदारों की अपनी-अपनी ख्वाहिशें हैं। फिल्म में आम प्यार नहीं है। रोजी हस्बेंड की वजह से अलग हो जाती है। राजू उसके डांस के हुनर को उभारने में मेहनत करता है तो उनका प्यार हो जाता है।
बेजोड़ सब्जेक्ट का कमाल
दरअसल देव साहब ने जहां-जहां गोल्डी के साथ काम किया, बहुत अच्छा काम किया। दूसरे डायरेक्टर उनका लिहाज करते थे। कुछ नहीं कहते थे। बहुत शरीफ आदमी थे, दूसरे बहुत बड़े स्टार। लेकिन विजय आनंद छोटे भाई थे। देव को हमेशा समझाया करते थे कि एक्टर वह होता है, जो अपने आपको भूलकर कैरेक्टर में घुस जाता है। तो गाइड में जैसे-जैसे गोल्डी कहते गए, वैसे-वैसे देव आनंद करते गए। गाइड की ताकत के बारे में सोचती हूं तो लगता है कि ये सब्जेक्ट आज भी ऐसा है कि एक रोजी हो सकती है, एक राजू हो सकता है और एक मार्को हो सकता है।
अंग्रेजी वर्शन की बात
अंग्रेजी वाली ‘गाइड’ को डेनीलीवस्की ने डॉक्यूमेंट्री की तरह बनाया। डायरेक्टर चाहते थे कि डांसिंग सीन जरूर अच्छे बनें। लेकिन इमोशन को वह नहीं उभार पाये फिल्म में। इसीलिए अंग्रेजी गाइड दर्शकों पर वह प्रभाव नहीं छोड़ पाई जो प्रभाव हिन्दी में गाइड फिल्म ने छोड़ा।
ऊटी में वो खतरनाक सफर
यहां गाइड की बात चल रही है तो मुझे ‘काला बाजार’ की भी याद आ रही है। इसकी शूटिंग कर रहे थे, हम लोग ऊटी में। यूनिट के लोग पहले चले जाते थे। देव और मैं कार में जा रहे थे और कार देव ड्राइव कर रहे थे। पहाड़ से नीचे उतरने का रास्ता था। देव कहने लगे, वहीदा गड़बड़ हो गई, होटल रूम में मैं अपना चश्मा भूल आया। दिख तो रहा है, पर थोड़ा-थोड़ा। तुम एकदम आगे बैठ जाओ, बताते रहना कि खड्ड किस तरफ है। अचानक नीचे की ओर से मिलिट्री का कॉनवाय आ रहा था ऊपर। इतना फॉग था कि ऊपर चढ़ने वाले ट्रकों को रोक भी नहीं सकते थे। एक रास्ता था। उधर कार मोड़कर भी नहीं जा सकते थे। अचानक इतने बादल आ जाते थे कि रुकना पड़ता। डेढ़ घंटा देरी से सेट पर पहुंचे। वहां गोल्डी और पूरी यूनिट बड़ी चिन्ता में थी।
गुरुदत्त और देव आनंद
लोग देव और गुरुदत्त साहब के बीच दोस्ती का जिक्र तो करते हैं, पर मैं इससे नावाकिफ हूं। लेकिन जहां तक उनके बीच तुलना की बात है तो मैं तो यही कहूंगी कि दोनों बिल्कुल अलग थे। गुरुदत्त जी बहुत डीप थिंकर थे। जो भी सब्जेक्ट उन्होंने बनाया जैसे प्यासा, कागज के फूल, साहब-बीवी और गुलाम, ये सब बड़ी सीरियस फिल्में हैं। गुरुदत्त बहुत बड़े डायरेक्टर थे, देव साहब की तुलना में। मगर एज ए स्टार देव आनंद बहुत चार्मिंग थे।
रोल में सचमुच छा गयी थी
गाइड के वक्त मेरे रोल के छा जाने की बात आप कह रहे हैं, उसमें कुछ सच्चाई भी है। दरअसल, टाइटल रोल तो देव का ही था और फिल्म का नाम भी गाइड था। फिल्म का नाम भी आर. के. नारायण के नॉवेल-दी गाइड के नाम पर था। फिल्म भी गाइड की जिन्दगी के बारे में बात करती है। राजू ही मार्को से मिला, रोजी से मिला। ये बात सही है कि मैंने टेक ओवर किया था फिल्म में। देव ने उन दिनों खुद कहा था- वहीदा, मैंने तो इतने पैसे खर्च किए फिल्म में। लेकिन जो फिल्म देखता है, वो कहता है वहीदा रहमान। तो मेरा कहना था- मैंने तो कुछ किया नहीं। डांस वगैरह की वजह से जरा ग्लैमरस हो गया रोल।
मैं उन्हें याद दिलाता हूं, गाइड फिल्म के इस गीत की-कांटों से खींच के ये आंचल तोड़ के बंधन बांधी पायल और कहता हूं कि गीतकार शैलेन्द्र के बगैर क्या गाइड की कल्पना की जा सकती है, तो वहीदा कहती हैं कि मूवी में डायरेक्टर कैप्टन आफ दी शिप होता है, लेकिन जब अच्छा सपोर्ट नहीं मिलता उसे म्यूजिक डॅायरेक्टर का, अच्छे लिरिसिस्ट का, अच्छे सिनेमैटोग्राफर का, अच्छे डॉयलाग राइटर का, अच्छे एक्टर्स का तब फिल्म खूबसूरत नहीं बन पाती। इन सबके सुर में सुर मिल जाएं तो फिर कमाल हो जाता है। शैलेन्द्र जी ने सिचुएशन को बेहतर समझा। विजय आनंद जी ने उन्हें समझाया होगा तो शैलेन्द्र जी ने अच्छी तरह समझ कर गीत को लिखा जो दुनिया की जुबान पर चढ़ गया।
देखिए, स्क्रिप्ट अच्छी नहीं हो तो पिक्चर अच्छी नहीं बन सकती। आप कितने ही बड़े स्टार ले लो। कहानी अच्छी होती है तो ऐसे-वैसे एक्टर भी फिल्म को संभाल लेते हैं। आजकल जो भी छोटी-मोटी पिक्चरें चल रही हैं तो उनकी स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है। वैसे भी फिल्म में अकेले का कंट्रीब्यूशन नहीं होता। बहुत बड़े डायरेक्टर को भी अच्छे एक्टर, अच्छे टेक्नीशियन चाहिए। जैसे गाइड में एक स्नेक डांस था। उन्होंने बर्मन दादा को समझाया होगा कि ये सिचुएशन है। दादा ने म्यूजिक भी एकदम उसी हिसाब से बनाया। फिर विजय आनंद ने डांस बेहतर तरह से पिक्चराइज किया। देव की फिल्मों के बारे में जब भी सोचती हूं तो मुझे लगता है कि वे गाइड के लिए और हम दोनों के लिए याद रह जाएंगे अगली सदी की जैनरेशन को। बाकी उनकी लाइट फिल्में हैं।
वहीदा कहती हैं कि देव आनंद याद रह जाएंगे, अपने अच्छे बिहेवियर के लिए। उनको कोई घमंड नहीं था। इतने बड़े स्टार थे, सिंपल फिएट में चलते थे। खुद ही चलाते थे। देव के दिमाग में कभी नहीं आया कि बड़े स्टार हो गए तो कभी मर्सिडीज रख लें, कोई और गाड़ी रख लें। क्योंकि वे नहीं चाहते थे जताना कि देखो मैं कितना बड़ा स्टार हूं। उस जमाने में राज-देव-दिलीप थे। पर इन तीनों को कंपेयर करके नहीं देखती।
सिनेमाई जीवन की अमर फिल्म
वहीदा कहती हैं-मुझसे आपने मेरी सबसे अच्छी फिल्म की बात पूछी तो मैं कहूंगी, गाइड मेरी सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। इस फिल्म में मेरा डांसिंग टैलेंट पूरी तरह उभरकर आया। गुरुदत्त साहब की प्यासा और कागज के फूल भी अच्छी फिल्में हैं, पर ये हीरो ओरिएंटेड फिल्में थीं। प्यासा एक पोयट की कहानी है और कागज के फूल, एक डायरेक्टर की लाइफ थी। लेकिन इन दोनों फिल्मों में मेरा सपोर्टिंग रोल इतना स्ट्रांग है कि मेरी भूमिकाएं दर्शकों के दिलो-दिमाग में रह जाती हैं। तीसरी कसम भी अच्छी फिल्म थी। दरअसल गाइड मेरे सिनेमाई जीवन की अमर फिल्म है। यह देव की भी अमर फिल्म है। जब तक गाइड रहेगी, राजू रहेगा और रोजी रहेगी।
सभी फोटो साभार : कामत फोटो फ्लैश मुंबई