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तप, त्याग और न्याय के देवता का उत्सव

04:05 AM May 26, 2025 IST
तप  त्याग और न्याय के देवता का उत्सव
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राजेंद्र कुमार शर्मा
हिंदू सनातन और पौराणिक संस्कृति में भगवान शनि को कर्म, अनुशासन और न्याय के देवता की उपाधि दी गई है। मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार, दंड और पुरस्कार देने की जिम्मेदारी भगवान शनि की है। शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया मनुष्य जीवन की कड़ी परीक्षा की घड़ी मानी जाती है। जो इस कठिन समय को नियम और विधान के साथ पूरा कर लेता ही समझिए वो सोने की भांति आग में तपकर कुंदन के समान हो जाता है। शनि को न्याय का रक्षक माना जाता है।
खगोलीय दृष्टि से शनि ग्रह
सूर्य से छठा ग्रह शनि अपने राजसी छल्लों और ब्रह्मांड में रहस्यमयी उपस्थिति से सदियों से मानवता को आकर्षित करता रहा है।

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रोचक तथ्य
मान्यता है कि शनि देव का जन्म सूर्य देव और छाया देवी के घर हुआ था। अपनी मां की गहन साधना और तपस्या के कारण शनि का रंग सांवला और स्वभाव कठोर था। उनके पिता सूर्य ने शुरू में उन्हें अस्वीकार कर दिया, जिससे उनके और शनि के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे। यह मिथक कर्म के महत्व और भगवान शनि द्वारा स्थापित निष्पक्ष न्याय पर प्रकाश डालता है।

शिव का आशीर्वाद
ऐसा माना जाता है कि शनि देव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें नवग्रह का पद प्रदान किया और उन्हें न्याय के देवता के रूप सुशोभित किया। अतः शनि जयंती के पावन अवसर पर शिव पूजा करना अत्यंत शुभ व लाभकारी माना जाता है।
शुभ फल
किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि देव की स्थिति कर्मों के आधार पर या तो बहुत सौभाग्य लाती है या फिर बाधाएं। शनि जयंती मनाने से शनि दोष, साढ़े साती और ढैया के कारण होने वाली कठिनाइयों को कम करने में मदद मिलती है। भगवान शनि की पूजा अर्चना, वित्त, करिअर संबंधी बाधाओं को दूर, लम्बी बीमारियों से छुटकारा जीवन में सफलता और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
शुभ मुहूर्त
हर साल की भांति इस वर्ष भी शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या अर्थात‍‍् 27 मई को मनाई जाएगी। हिंदू धर्मग्रंथों और वैदिक पंचांग के अनुसार के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12:10 बजे शुरू हो कर 27 मई को सुबह 8:30 बजे समाप्त होगा।
अनुष्ठान
दिन की शुरुआत शनिदेव की मूर्ति के जल, दूध, तेल अभिषेक से होती है। अभिषेक के बाद, भक्त श्रद्धा से मूर्ति को फूलों, मालाओं और पारंपरिक कपड़ों से सजाते हैं। इसके उपरांत मंत्रों का जाप करते हुए विशेष पूजा की जाती है। शनि महाराज को प्रसन्न करने के लिए तिल, सरसों का तेल, काले कपड़े और नीले फूल सहित विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाते हैं।
श्रद्धा का प्रमाण
भारत के महाराष्ट्र में एक गांव शनि शिंगणापुर शनि देव के प्रति अगाध श्रद्धा का जीता जगता उदाहरण है। इस गांव में भगवान शनि का बिना छत का खुला मंदिर भगवान और भक्तों के बीच के खुले संवाद को दर्शाता है।

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