ट्रम्प के टैरिफ की चुनौती से मुकाबले की तैयारी
ट्रम्प की 'जवाबी' टैरिफ नीति से भारत को भी नुकसान होने की आशंका है। दरअसल भारत और अमेरिका के आयात शुल्कों के बीच बड़ा अंतर है। व्यापार की यह स्थिति भारत को रास आती है जो ट्रंप के निशाने पर है। भारत के टैरिफ जितनी जवाबी दरें करने का उनका निर्णय या तो भारतीय निर्यात को अप्रतिस्पर्धी बना देगा या फिर हमें मजबूरन अपने टैरिफ अमेरिका के समान करने होंगे।
ओनिंद्यो चक्रवर्ती
तकरीबन 2,000 साल पहले, जब रोमन साम्राज्य अपने चरम पर था, भूमध्य सागर से बाहर के बंदरगाहों से आने वाले व्यापारिक जहाजों को अपने साथ लाए जाने वाली प्रत्येक वस्तु पर एकमुश्त कर चुकाना पड़ता था। कुछ शताब्दियों बाद, जब इस इलाके पर रोमनों का राज जाता रहा और यह क्षेत्र यहां-वहां बिखरे देशों और छोटी सल्तनतों में विभक्त हो गया, तो व्यापारियों को एक बंदरगाह से दूसरे राजा के बंदरगाह तक जाने के लिए कई किस्म के शुल्कों का सामना करना पड़ा।
इसलिए, एक परंपरा विकसित हुई, जिसमें व्यापारियों को पहले से ही यह बता दिया जाता था कि प्रत्येक वस्तु पर कितना कर लगाया जाएगा। अरबी भाषा में इसे ‘तारीफेः’ अर्थात् अधिसूचना कहा जाता था। यही शब्द अन्य भाषाओं में भी आया, स्पेनिश में ‘टैरिफा’, इतालवी में ‘टैर्रिफा’ और आगे चलकर अंग्रेजी में ‘टैरिफ’ बना। गया।
आज, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बदौलत, यह शब्द पिछले चार दशकों से चली आ रही विश्व व्यवस्था में खलल डालने पर तुला है। कुछ ही दिनों में, ट्रम्प की 'जवाबी' टैरिफ नीति हर देश को प्रभावित करने वाली है। अमेरिका में आयात शुल्क दर अब ठीक उतनी होगी जो माल भेजने वाला देश अमेरिकी वस्तुओं के आयात पर लगाएगा।
हम पर भी इसका असर होगा। साल 2023-24 में अमेरिका को हमारा निर्यात 78 बिलियन डॉलर रहा और इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह 60 बिलियन डॉलर को पार कर गया। इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा दवाइयों का था- हमारी दवा कंपनियां अमेरिका को महत्वपूर्ण दवाओं के सस्ते संस्करण निर्यात करती हैं और कमाई मोटी है। इनके बाद सबसे बड़ा अंश था टेलीकॉम उत्पादों का, जैसे कि भारत में पुर्जे जोड़कर बनाए आईफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल गैजेट एवं मशीनें इत्यादि।
हालांकि, हम अमेरिकी उपभोक्ताओं को बहुत अधिक कारें नहीं बेचते हैं, लेकिन ऑटो पार्ट्स हम खूब निर्यात करते हैं। अमेरिकी बाजार हमारे सकल ऑटोमोबाइल निर्यात का 27 प्रतिशत हिस्सा है। हम अन्य देशों को भी ऑटो पार्ट्स निर्यात करते हैं, जिनका उपयोग ऑटोमोबाइल तैयार करने में किया जाता है, जिन्हें आगे अमेरिका भेजा जाता है। निर्यात का एक अन्य बड़ा हिस्सा हीरे एवं सोने के गहने हैं। वर्ष 2024 में, हमने अमेरिका को 12 बिलियन डॉलर के रत्न और आभूषण निर्यात किए। हम वहां कपड़ा और परिधान भी भेजते हैं। पिछले साल, हमने अमेरिका को 11 बिलियन डॉलर के रेडीमेड परिधान, यार्न और टेक्सटाइल बेचे। भारत से अमेरिका को कई किस्म के समुद्री खाद्य पदार्थ भी निर्यात किए जाते हैं। हम अमेरिकी उपभोक्ताओं को विभिन्न किस्मों के चावल भी बेचते हैं। वर्ष 2024 में अमेरिकी बाजार में भारत से कुल मिलाकर 6 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के कृषि उत्पाद, समुद्री भोजन, मछली और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ पहुंचे थे। वर्तमान में, अमेरिका को भारत का सकल निर्यात उसके यहां से आने वाले माल से 45 बिलियन डॉलर अधिक है।
ट्रंप का मानना है कि इस अंतर का एक बड़ा कारण है कि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर बहुत अधिक टैरिफ लगाता है, जिससे भारतीय बाजार में अमेरिकी सामान अधिक महंगा हो जाता है। भारत विदेश से घरेलू अर्थव्यवस्था में आने वाली वस्तुओं पर औसतन 12 प्रतिशत टैरिफ लगाता है। यह अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से पांच गुना अधिक है। लेकिन बात जब विशिष्ट वस्तुओं की आए तो यह अंतर और भी अधिक गहरा हो जाता है। आयातित कृषि उत्पादों पर भारत औसतन 37.8 प्रतिशत टैरिफ लगाता है जबकि अमेरिका केवल 5.4 प्रतिशत लगा रहा है। अमेरिका में बने ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स पर हमारा टैरिफ उसके द्वारा भारतीय कलपुर्जों पर वहां लगाए जाने वाले शुल्क से 24 प्रतिशत से भी ज्यादा है। हाल ही तक, अमेरिका भारतीय ऑटो कलपुर्जों पर महज 1 प्रतिशत शुल्क लगाता रहा था।
भारत और अमेरिका के टैरिफ के बीच अब तक रहे अंतर में ः कृषि उत्पादों में 32.4 प्रतिशत, ऑटो पार्ट्स में 23.1 प्रतिशत, हीरे और सोने के आभूषणों में 13.3 प्रतिशत, फार्मास्यूटिकल्स में 8.6 प्रतिशत तो इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल और दूरसंचार उत्पादों में 7.2 प्रतिशत शामिल है। यही चीज़ ट्रम्प के निशाने पर है। भारत के टैरिफ जितना शुल्क लगाने का उनका निर्णय या तो भारतीय निर्यात को अप्रतिस्पर्धी बना देगा या फिर अगर भारत चाहता है कि अमेरिकी बाजार तक अपने माल की पहुंच जारी रहे, तो उसे अपने टैरिफ अमेरिका के समान करने को मजबूर होना पड़ेगा। दोनों ही विकल्प भारत के लिए बुरे हैं।
ट्रम्प के जवाबी टैरिफ से भारतीय कृषि उत्पाद, समुद्री भोजन और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ अमेरिका में 31 प्रतिशत तक महंगे हो जाएंगे। अमेरिकी उपभोक्ता के लिए यह कारण बासमती चावल की बजाय इसके सस्ते विकल्प 'टेक्समती' की और मुड़ने के लिए काफी होगा। भारतीय ऑटो पार्ट्स भी 23 प्रतिशत महंगे हो जाएंगे। अमेरिकी बाजार में भारत निर्मित दवाएं और अन्य चिकित्सा उत्पाद 7 से 9 प्रतिशत तो रत्न एवं आभूषण 13 प्रतिशत महंगे पड़ेंगे। इससे भारतीय उत्पाद अमेरिकी दुकानों से बाहर हो सकते हैं। हमारे निर्यातक प्रतिस्पर्धा करने में तभी सक्षम हो सकेंगे, जब वे अपनी बिक्री कीमत कम रख पाएंगे। इसलिए, भारतीय झींगा और मसालों को 17 प्रतिशत कम पर बेचना पड़ सकता है ताकि उच्च टैरिफ के बाद भी अमेरिकी सुपर मार्केट में उनकी बिक्री बनी रहे।
पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय फार्मा कंपनियों ने अमेरिका में खुदरा दवा बिक्री में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई थी, जिससे आयरलैंड और स्विट्ज़रलैंड के बाद भारत अमेरिका को तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल्स निर्यातक बन गया। अब ट्रंप के जवाबी टैरिफ लागू होने से भारतीय दवा कंपनियों को यह सुनिश्चित करने को कि अमेरिकी उपभोक्ता की जेब पर असर न पड़े, अपनी कीमतों में 6-8 प्रतिशत की कमी करनी पड़ जाएगी, अन्यथा हो सकता है वे फिर से आयरिश और स्विस दवा निर्माताओं की ओर रुख करें, जिन्हें भारतीय कंपनियों के हाथों अपना हिस्सा गंवाना पड़ रहा है।
वास्तव में, ट्रंप ने संकेत दिया है कि वह बहुत जल्द फार्मास्यूटिकल्स पर और ऊंचे टैरिफ की घोषणा करेंगे, जो जबावी दरों से कहीं अधिक हो सकता है। उस स्थिति में, भारतीय दवा कंपनियों को अपना मार्केट शेयर घटने और मुनाफे में कमी का सामना करना पड़ सकता है। वहीं अगर अमेरिका निर्मित वस्तुओं पर टैरिफ में भारत कटौती करता है, तो क्या होगा? उस स्थिति में, अमेरिकी कृषि उत्पाद- जैसे मेवे, मिल्क चीज़ और मीट 24 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे। अमेरिकी कारों की कीमत अभी की तुलना में लगभग आधी हो जाएगी। अमेरिका निर्मित ऑटो पार्ट्स औसतन 19 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे। अमेरिका में बने अन्य उत्पाद भी भारतीय बाजार में 5-12 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे।
टैरिफ की दीवारें ऊंची करके ट्रंप अमेरिकी विनिर्माण को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। तर्क है कि जब अमेरिकी उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुओं का अधिक दाम चुकाना पड़ेगा तो जाहिर है वे घरेलू उत्पाद खरीदने लगेंगे। दूसरी ओर, अगर विदेशी निर्यातक कीमतें कम करने को तैयार हो जाते हैं, तो जहां अमेरिकी सरकार की कमाई टैक्स से हो जाएगी वहीं अमेरिकी उपभोक्ता को पुरानी कीमत पर माल मिलता रहेगा। यदि विदेशी सरकारें आयातित वस्तुओं पर अब तक अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे टैरिफ के बराबर शुल्क लगाती हैं, तो इससे भारत जैसे विदेशी बाजारों में अमेरिकी वस्तुओं की बिक्री बढ़ जाएगी।
यानी हर हाल में, बाकी दुनिया को गरीब बनाकर वह खुद मुनाफे में रहेगा।
लेखक आर्थिक मामलों के वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं।