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झूठा शपथ पत्र दायर करने का मामला : शिमला के एसपी संजीव गांधी की मुश्किलें बढ़ी, हाईकोर्ट ने किया जवाब तलब

04:47 AM Jun 01, 2025 IST
झूठा शपथ पत्र दायर करने का मामला   शिमला के एसपी संजीव गांधी की मुश्किलें बढ़ी  हाईकोर्ट ने किया जवाब तलब
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ज्ञान ठाकुर/हप्रशिमला, 31 मई
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने झूठा शपथपत्र दायर कर अदालत को गुमराह करने की कोशिश करने पर आइपीएस अधिकारी संजीव गांधी से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने संजीव गांधी को आदेश दिए हैं कि वह यदि वांछित हो तो तीन सप्ताह के भीतर जवाब दायर कर यह बताएं कि क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाए। न्यायाधीश राकेश कैंथला ने एक आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान पाया कि सर्वोच्च न्यायालय ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, (एनडीपीएस एक्ट") की धारा 32(ए) के प्रावधान को इस हद तक असंवैधानिक घोषित किया है कि यह प्रावधान दोषी की सजा को निलंबित करने के न्यायालय के अधिकार को छीन लेता है। इसके बावजूद, राज्य सरकार ने अपने जवाब में दावा किया कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 32(ए) के तहत दिए गए प्रावधान के अनुसार, एनडीपीएस अधिनियम में सजा के निलंबन पर एक विशिष्ट प्रतिबंध है। अपीलकर्ता गुड्डू राम द्वारा सजा के निलंबन को लेकर दायर आवेदन के जवाब में दायर रिपोर्ट में हलफनामा संजीव कुमार गांधी, तत्कालीन एसपी, शिमला द्वारा शपथ पत्र दायर किया गया था।

कोर्ट ने प्रथम दृष्टया इस शपथपत्र को झूठा पाया और कहा कि हलफनामा दायर करके अदालत को गुमराह करने का प्रयास प्रतीत होता है। इसलिए, इन परिस्थितियों में, संजीव कुमार गांधी को तीन सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है। यदि ऐसा वांछित है, कि झूठा हलफनामा दायर करके अदालत को गुमराह करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। इस मामले में हाईकोर्ट ने प्रार्थी गुड्डू राम के आवेदन पर उसकी सजा को निलंबित करते हुए अपने आदेश में कहा था कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता को अठारह महीने की अवधि के लिए कठोर कारावास और 18,000 रुपये का भुगतान करने की सजा सुनाई गई थी और अपील के निपटारे में कुछ समय लगने की संभावना है, इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई कारावास की सजा को मुख्य अपील के निपटारे तक निलंबित करने का आदेश दिया जाता है। कोर्ट ने इस आवेदन का जवाब भी तलब किया था और जवाब में उस प्रावधान का उपयोग किया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक करार दे चुका है।

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