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ज्ञान, कला और वाणी की देवी का वैश्विक सम्मान

04:05 AM Apr 14, 2025 IST
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देवी सरस्वती ज्ञान, वाणी और कला की देवी हैं, जिनकी आराधना भारत सहित विश्व के अनेक देशों में विभिन्न रूपों में होती रही है। वे कहीं वीणा वादिनी हैं, कहीं वाग्देवी तो कहीं बुद्धि और सौंदर्य की प्रतीक। संस्कृतियों के इस अद्भुत संगम में देवी सरस्वती का स्वरूप समय और सीमाओं को पार करता हुआ दिखाई देता है। उनके विविध वैश्विक रूपों में छिपा है मानव सभ्यता का ज्ञान और सृजन के प्रति अपार श्रद्धा का भाव।

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शिखर चंद जैन
देवी सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी माना गया है। वाग्देवी, भारती, शारदा आदि नामों से पूजित इस देवी के बारे में कहा जाता है, ये अज्ञानी को भी विद्वान बना सकती हैं। धर्मग्रंथों और पुराणों में इनके रूप-रंग को शुक्लवर्णा और श्वेत वस्त्रधारिणी बताया गया है, जो वीणावादन के लिए तत्पर और श्वेत कमल पुष्प आसीन रहती हैं। भारत में देवी सरस्वती की आराधना विशेष रूप से की जाती है। आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि देवी सरस्वती की आराधना केवल भारत और नेपाल में ही नहीं, बल्कि इण्डोनेशिया, बर्मा (म्यांमार), चीन, थाइलैण्ड, जापान और अन्य देशों में भी होती है।
म्यांमार
यहां विद्या की देवी सरस्वती को मानने वालों की संख्या बहुत अधिक है। वर्ष 1084 ई. में बनाया गया एक मंदिर भी यहां मौजूद है। म्यानमार के बौद्ध कलाओं में देवी सरस्वती को ‘थुरथदी’ कहा जाता है। बौद्ध मूर्तियों में इनका स्वरूप देखा जा सकता है।
कंबोडिया
कंबोडिया के अंकोरवाट के मंदिरों में मां सरस्वती की प्रतिमा देखी जा सकती है। इससे यह सिद्ध होता है कि यहां भी सदियों पहले से देवी सरस्वती की पूजा होती आ रही है। कंबोडिया के यह मंदिर 7वीं सदी के हैं। उस समय लिखे गए कई साहित्यकारों ने देवी सरस्वती को ब्रह्माजी की पत्नी बताया है। जिन्होंने देवी सरस्वती को ‘वागेश्वरी’ नाम से संबोधित किया है।
थाईलैंड
यहां के प्राचीन साहित्य से उल्लेख मिलता है देवी सरस्वती ‘बोलने की शक्ति’ देती हैं। थाईलैंड में वैसे तो बौद्ध धर्म काफी पल्लवित हैं। लेकिन देवी सरस्वती का स्वरूप उन्होंने भारत से ही लिया है। यहां सरस्वती को वो मोर पर विराजमान रूप में पूजते हैं।
इंडोनेशिया
इंडोनेशिया यानी बाली में रहने वाले यहां के आप्रवासी भारतीयों की प्रमुख देवी हैं सरस्वती। यहां के धार्मिक साहित्य में देवी सरस्वती का उल्लेख किया गया है। बाली में होने वाले रंगमंच और नृत्य कला में प्रवीण लोग अपनी कला प्रस्तुत करने से पहले मां सरस्वती की वंदना जरूर करते हैं।
अन्य देशों में देवी
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ज्ञान की पूजा का महत्व सदियों से है और यह आगे भी रहेगा। यही कारण है कि दुनिया के लगभग हर देश ज्ञान की देवी और देवताओं परिकल्पना की गई है। जर्मनी में स्नोत्र को ज्ञान, सदाचार और आत्मनियंत्रण की देवी माना गया है। वहीं फ्रांस, स्पेन, इंगलैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया सहित कई यूरोपीय देशों में ज्ञान और शिल्प की देवी के रूप में मिनर्वा का स्मरण किया जाता है। उसे कताई-बुनाई, संगीत, चिकित्सा शास्त्र और गणित सहित रोजमर्रा के कार्यो में निपुणता की देवी माना गया है। प्राचीन ग्रीस में एथेंस शहर की संरक्षक देवी एथेना को ज्ञान, कला, साहस, प्रेरणा, सभ्यता, कानून-न्याय, गणित, जीत की देवी माना गया।

जापान की सरस्वती बेनजायतेन
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जापान में श्वेत कमल पुष्प पर विराजित बीवा (एक वाद्ययंत्र) बजाती हुई बुद्धिमानी की देवी बेनजायतेन की भी पूजा-आराधना की जाती है। जापान में बौद्ध धर्म के अलावा शिंतो धर्म के अनुयायी भी बड़ी संख्या में है। शिंतो का अर्थ है, ‘कामी यानी सर्वशक्तिमान का मार्ग।’ सर्वशक्तिमान का प्रतिनिधित्व करने वाले देव हैं- आमातेरासु (सूर्य भघवान), सुकुयोमी (चंद्रदेव), फूजिन (पवनदेव), सूईजीन (वरुणदेव) और इजनागी व इजनामी- पहले मानव पुरुष-स्त्री, जिन्हें शर्वशक्तिमान पति-पत्नी के रुप में बनाया। ये देव हमारे पंचभूतों की तरह हैं। जापान में देवी बेनजायतेन के कई मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु प्रतिदिन उनके दर्शन और अर्चन के लिए जाते हैं। मां सरस्वती की तरह ही बेनजायतेन को यहां संगीत, साहित्य, चित्रकला, नृत्य और अभिनय की देवी माना गया है। इसके अलावा भक्तों में अटूट विश्वास है कि देवी बेनजायतेन उन्हें दीर्घ आयु, अच्छा स्वास्थ्य, प्रसन्नता, धन और विजय का आशीर्वाद देती हैं। देवी बेनजायतेन का वाद्ययंत्र बीवा जापान में अक्सर शुभअवसरों व धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान बजाया जाता है। इसका वादन वहां शुभ बी माना जाता है। वासे बौद्धधर्म के अनुयायी भी देवी बेनजायतेन की पूजा-अर्चना करते हैं।

जापान में देवी बेनजायतेन के तीन प्रमुख और बड़े मंदिर हैं- इत्सुकुशिमा मंदिर, इनोशिमा मंदिर और होगोन जी मंदिर।मान्यता के मुताबिक बेनजायतेन को भाग्य की देवी भी माना जाता है। कहते हैं ये भाग्य के सात देवताओं में से एक है। जो तकारा-ब्यून यानी खजाने के जहाज पर सवारी करती हैं। जापानी नए वर्ष के अवसर पर अपने तकिये के नीचे तकारा-ब्यून की तस्वीर रखकर भी सोते हैं ताकि उन्हें ‘लकी ड्रीम’ यानी सौभाग्य वाले सपने दिखें। इन्हें कहीं-कहीं बेनटेन या बेनजाई तेन्यो के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

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