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जोश और संयम

04:00 AM May 08, 2025 IST
जोश और संयम
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आखिरकार पहलगाम हमले के 15 दिन बाद भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर हमला करके न केवल आतंकवादियों की कमर तोड़ी है बल्कि बड़बोले पाकिस्तान के दंभ को भी तोड़ा है। बेहद सुनियोजित व सटीक तथा नियंत्रित कार्रवाई से भारत ने दुनिया को संदेश दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति जीरो टॉलरेंस की है। साथ ही सैन्य ठिकानों व नागरिक संस्थानों को निशाना न बनाकर मानवता का संदेश ही दिया है। बताया कि हमें आत्मरक्षा का अधिकार है। साथ ही दुनिया को यह भी बताया कि विश्व बंधुत्व हमारा सांस्कृतिक संकल्प है। लेकिन यदि हमारी बेटियों के सिंदूर छीने जाएंगे तो हम अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं लांघकर भी आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने से नहीं हिचकेंगे। यह भी कि मानवता के संरक्षण के संकल्प के साथ कि हम कभी नागरिक को निशाना नहीं बनाएंगे। गीता के उस संदेश का अनुपालन कि हम युद्ध के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन जब युद्ध अपरिहार्य हो, तो फिर युद्ध लड़ना धर्म बन जाता है। पिछले दिनों देश में शीर्ष सैन्य नेतृत्व की सक्रियता और प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री के बयान इस सधी हुई कार्रवाई के संकेत दे रहे थे। इस कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ मानवता के सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाना चाहिए। हमने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस कार्रवाई को तब अंजाम दिया जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा। ऑपरेशन सिंदूर ने उन्हें भी जवाब दे दिया है जो भारतीय अस्मिता की रक्षा के लिये किए जा रहे सैन्य व कूटनीतिक उपक्रमों को लेकर सतही बयानबाजी कर रहे थे। उन्हें इस बार बालाकोट के यथार्थ की तरह सवाल उठाने का मौका नहीं मिलेगा। इस बार के हमले के तमाम फोटो-वीडियो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तैर रहे हैं। बिहार की जनसभा में प्रधानमंत्री ने चेताया भी था कि आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि फिर वे ऐसा दुस्साहस न कर सकें। साथ ही गृहमंत्री ने कहा था कि जैसे जनता चाहती है, वैसा ही होगा। सचमुच वैसा ही हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की सीमित युद्ध की रणनीति व अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति सटीक रही। निस्संदेह, आतंकवाद के खिलाफ किए गए ‘आॅपरेशन सिंदूर’ पर संयुक्त राष्ट्र सहित विश्वभर के तमाम अमन पसंद देशों की मोहर लगनी ही चाहिए। कौन नहीं जानता कि अमेरिका, इस्राइल समेत तमाम अनेक यूरोपीय देश अपने विरुद्ध किसी भी आतंकवादी हमले के सूत्रधारों को कुचलने में कभी विलंब नहीं करते। आज इस कार्रवाई के बाद अमेरिका व चीन समेत तमाम विश्व शक्तियों को भारत-पाक को एक तराजू में रखकर नसीहतें देने की बजाय ईमानदारी से शांति व मानवता के पाले में खड़ा होना होगा। साथ ही भारतीय नागरिक के रूप में एक बड़ी सोच के साथ हमें इस सर्जिकल स्ट्राइक पर युद्ध उन्माद का जश्न मनाने के बजाय संयम से आतंक के दमन के रूप मे देखना चाहिए। वहीं दूसरी ओर सर्जिकल स्ट्राइक ने देश के आहत मर्म पर सांस्कृतिक और भावनात्मक मरहम भी लगाया है। यह बताया गया है कि विवाहिताओं द्वारा लगाए जाने वाला सिंदूर महज दिखावटी रस्म नहीं है। यह प्यार और रिश्तों में निरंतरता का पर्याय भी है। जब आतंकवादियों ने पहलगाम में 26 पुरुषों की हत्या करके उनकी जीवन संगिनियों का सिंदूर पोंछा था, तो उस सिंदूर के मिटने के दर्द को पूरे देश ने गंभीरता से लिया। खासकर उस विवाहिता का दर्द जिसके हाथ की मेहंदी फीकी भी नहीं पड़ी थी। उसके दु:ख को पूरे देश ने महसूस किया और आतंक की धरा को नेस्तनाबूद करने के लिये ही ‘सिंदूर ऑपरेशन’ को अंजाम दिया गया। निस्संदेह, पहलगाम आतंकी हमले के शिकार लोगों की विधवाओं का विलाप कालांतर राष्ट्रीय चेतना का पर्याय बन गया। इस अभियान ने दर्शाया कि आतंकवाद का विरोध केवल भू-राजनीतिक ही नहीं है बल्कि यह रिश्तों, घरों और शांति की भी रक्षा करता है। यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी से देश को रूबरू कराने के लिये आयोजित प्रेस वार्ता को महिला अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी व विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने संचालित किया। संदेश दिया कि सिंदूर से खिलवाड़ करने वाले आतंक के पैरोकार भारतीय नारी को किसी भी नजरिये से कमजोर न समझें।

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