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जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का अनमोल रत्न

04:05 AM Mar 14, 2025 IST
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का अनमोल रत्न
गौरैया
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गौरैया, जो एक छोटी सी चिड़िया है, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा है और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शहरीकरण, कीटनाशकों और प्राकृतिक आवासों की कमी के कारण यह तेजी से लुप्त हो रही है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन पर असर पड़ रहा है।

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के.पी. सिंह
चौबीस से चालीस ग्राम तक की फुदकती हुई छोटी-सी गौरैया हमारी जैव विविधता और पारिस्थितिकी संतुलन का बहुत बड़ा आधार है। लेकिन दुनियाभर में बढ़ते शहरीकरण, मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन, खेतों में इस्तेमाल की जाने वाले कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग तथा अपने प्राकृतिक आवासों की कमी के कारण दुनिया में गौरैया की संख्या तेजी से घट रही है। साल 2010 में लुप्त होती गौरैया को बचाने के लिए और दुनिया को उसके महत्व को बताने के लिए ‘नेचर फॉर एवर सोसायटी’ के संस्थापक मोहम्मद दिलावर द्वारा विश्व गौरैया दिवस मनाये जाने की शुरुआत भारत में हुई। पक्षियों के पैसर वंश की गौरैया का जीवनकाल आमतौर तीन साल का होता है। गौरैया की कई दो प्रजातियां हैं लेकिन दो सबसे मशहूर हैं एक घरेलू गौरैया और दूसरी यूरेशिया वृक्ष गौरैया।
गौरैया का भोजन मुख्यतः अनाज के दाने और फसलों के कीड़े-मकोड़े हैं। ये अनाज के दाने घरों में गिरे पड़े हुए भी हो सकते हैं और खेतों में बालियों में लगे भी हो सकते हैं, खासकर ज्वार और बाजरा के खुली बालियों में से गौरैया खूब मन से अपना भोजन चुरा लेती है। गौरैया आमतौर पर घरों में या घरों के आसपास ही रहती है, जिसे लोग आसानी से पहचान लेते हैं। गौरैया 46 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ती है। यह छोटी-सी चिड़िया पूरे दिन घरों के आसपास फुदकती रहती है। गौरैया के बारे में जानने लायक कई तथ्यों में से एक यह भी है कि यह पारिस्थितिकी तंत्र में जैव विविधता और पौधों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। गौरैया उत्सर्जन के माध्यम से बीजों को फैलाने तथा वनस्पति को बढ़ावा देने में मदद करती है।
हाल के दशकों में गौरैया के लगातार खत्म होने का कारण शहरीकरण, कृषि पद्धतियों में बदलाव और पेड़ों की बड़ी तादाद में हुई कटाई है, जिसके कारण गौरैया को घोसला बनाने के लिए अनुकूल जगह मिलनी मुश्किल हो गई है। इसी तरह खेतों में बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिस कारण कीड़े-मकोड़े नहीं हो रहे और जो होते भी हैं, वो तेजी से खत्म हो जाते हैं। इस कारण गौरैया को अपना स्वाभाविक भोजन मिलने में मुश्किल हो रही है।
भारत में पायी जाने वाली घरेलू चिड़िया दरअसल गौरैया है। इसका वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस है। यह पूरे भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में घरों के आसपास पायी जाती है। भारत में सबसे ज्यादा यही घरेलू गौरैया ही मिलती हैं, लेकिन गौरैया की पांच अन्य प्रजातियां भी थोड़ी-थोड़ी संख्या में अलग-अलग एक या दो प्रदेशों में पायी जाती हैं। जैसे जम्मू कश्मीर और हिमाचल में वाइट थ्रोटेड स्पैरो इसका वैज्ञानिक नाम जोनोट्रिचिया अल्बीकोलिस है। इसकी आवास प्राथमिकताएं पर्वतीय क्षेत्र हैं, इसलिए यह भारत में मुख्यतः जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पायी जाती है। राजस्थान और गुजरात में कुछ मात्रा में चेस्ट नट-सोल्डरेड पैट्रोनास गौरैया भी पायी जाती है, जिसका वैज्ञानिक नाम पैट्रोनिया जैन्थोकोलिस है। यह आमतौर पर सूखे जंगलों या स्क्रब लैंड में पायी जाती है।
‘द स्टेट ऑफ इंडियन बड्स’ रिपोर्ट 2023 के मुताबिक भारत की कुल चिड़ियों में 28 चिड़िया ही ऐसी हैं जो ठीकठाक संख्या में हैं या बढ़ रही हैं। 643 चिड़ियों का सही-सही रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। लेकिन जो सबसे खतरनाक आंकड़ा चिड़ियों को लेकर है, वह यह है कि 78 चिड़िया या तो खत्म हो चुकी हैं, या इतनी कम है कि नजर नहीं आ रही हैं। 64 चिड़ियों की प्रजातियां ऐसी हैं, जो तेजी खत्म हो रही हैं। अगर दुनियाभर में मौजूदा चिड़ियों की प्रजातियों की बात करें तो 942 प्रजातियों की जानकारी है, जिसमें 299 प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं या उसके कागार में है।
चिड़ियों की इस हालत में गौरैया का धीरे-धीरे कम होना खतरनाक है, क्योंकि गौरैया महज एक चिड़ियाभर नहीं है बल्कि यह धरती में खेती की विविधता को बरकरार रखने और उसे कोने-कोने में फैलाने में बड़ी भूमिका निभाती है। इसलिए विश्व गौरैया दिवस दुनिया के हर संवेदनशील और धरती को बने रहने के बारे में सोचने वाले इंसान से उम्मीद करता है कि वह गौरैया संरक्षण के लिए उनके उपयुक्त आवास की व्यवस्था करेंगे और गौरैया को निरंतर अपना भोजन और आवास उपलब्ध रहे, उसकी चिंता करेंगे। विश्व गौरैया दिवस हर साल किसी विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल गौरैया दिवस का विषय या थीम है- ‘होप फॉर स्पैरो’ यानी गौरैया के लिए आशा। इस थीम का मुख्य उद्देश्य गौरैया संरक्षण के प्रति आशा और सकारात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करना है। इ.रि.सें.

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