जादुई शब्दों का अनूठा शिल्पकार
डॉ. आनंद शर्मा
कमलेश्वर के व्यक्तित्व की प्रखरता उनके सम्पूर्ण साहित्य में दृष्टिगोचर होती है। कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, सम्पादक, रेडियो प्रस्तोता, दूरदर्शन अधिकारी और सिने लेखक, एक साथ विविध विधाओं के स्वामी रहे हैं-कमलेश्वर। इस व्यक्तित्व में विभिन्न व्यक्तियों का अद्भुत और संतुलित सामंजस्य था।
मैनपुरी के सरकारी विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा पाने के पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इनकी जीवनधारा बदली। साहित्य की भूख और ज्ञान-पिपासा को शांत करने हेतु त्रिवेणी की संगम नगरी इलाहाबाद इनकी कर्मभूमि बनी। यहां से इन्होंने साहित्य-साधना की जो राह पकड़ी, उसे जीवन के अन्तिम दिन तक निभाया।
साहित्य और पत्रकारिता के पुरोधा कमलेश्वर ने दोनों ही विधाओं में अपनी प्रखर लेखनी से जनमानस को बरसों तक दिशा देने का सत्कार्य किया। कहानी कला को स्थिरता और विलक्षण पहचान दिलाने हेतु कमलेश्वर ने ‘गुलमोहर फिर खिलेगा’, ‘कथा-संस्कृति’, ‘समान्तर’ और ‘शताब्दी की कालजयी कहानियां’ जैसे अतुल्य कथा-ग्रंथों का सफल संपादन किया। ‘विहान’ से ‘सारिका’ तक के सम्पादकीय सफर में कमलेश्वर ने असंख्य आर्थिक, सामाजिक झंझावातों का सामना किया। कमलेश्वर ने अनेक साप्ताहिक, अर्धमासिक, मासिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उन्हें उत्कृष्ट शब्द-शक्ति संपन्न बनाया और उनके लिए पाठकों का अपार जनसमूह तैयार किया। साथ ही दैनिक समाचारपत्र को अधिकाधिक पठनीय और उपयोगी बनाने हेतु उनका सम्पादन करके साहित्य और पत्रकारिता के अन्योन्याश्रित संबंधों के औचित्य को सिद्ध किया।
साहित्यिक भावभूमि से उठकर कमलेश्वर ने पत्रकारिता को ऐसे अनुपमेय आयाम दिए, जिनका विश्व सदैव अनुसरण करेगा। कमलेश्वर ने मीडिया भाषा और संस्कृति, घटनाचक्र, बंधक लोकतंत्र, सिलसिला थमता नहीं, दस्तक देते सवाल, हिन्दुत्ववादी नाज़ीवाद, अघोषित आपातकाल, कमलेश्वर अभी ज़िंदा है, सवाल सरोकारों का, प्रश्नों का प्रजातंत्र जैसे ग्रंथों द्वारा पत्रकारिता को मानवीय संवेदना और संबंधों के जीवंत दस्तावेज निर्मित किए।
कमलेश्वर ने जहां साहित्य में नए प्रतिमान स्थापित किए, वहीं मीडिया लेखन के भी वे सशक्त हस्ताक्षर बन कर उभरे। आकाशवाणी और दूरदर्शन की शैशवावस्था में ही इन्होंने इन दोनों माध्यमों को घुट्टी पिलाकर नन्हे कदमों से चलना सिखाया था। अनुकरणीय लेखन ऊर्जा से लैस कमलेश्वर छात्र जीवन से ही आकाशवाणी से जुड़ गए थे। रेडियो के ‘प्रथम स्क्रिप्ट राइटर’ होने का गौरव और जिम्मेदारी ने इन्हें मान दिया था।
दिल्ली दूरदर्शन का शुभारम्भ 1959 में हुआ। आकाशवाणी और दूरदर्शन में कमलेश्वर का कार्य रचित और वाचित दोनों रहा। ये दूरदर्शन जैसे नए और सशक्त माध्यम कला, संस्कृति एवं साहित्य को प्रबलता से जोड़ने के पक्षधर रहे।
यह इनके नैसर्गिक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि अपार शक्ति-पुंज इन्दिरा गांधी के राजनीतिक जीवन पर जीवन्त फिल्म लिखी, जिसकी कटु आलोचना और चर्चा हुई। वहीं इन्दिरा गांधी कमलेश्वर को बंबई से खोज कर दिल्ली दूरदर्शन पर लाती हैं और वहां का अतिरिक्त महानिदेशक बनाती है। कमलेश्वर ने दूरदर्शन के लिए साहित्य और आम आदमी से सरोकार रखने वाले नए एवं रोचक कार्यक्रमों तथा ‘करेन्ट अफेयर, आपके लिए पत्रिका, परिक्रमा सरीखे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को तैयार करके प्रदर्शन करने की योजनाओं पर अमल किया।
कमलेश्वर शब्दों के उम्दा शिल्पकार रहे। फिर इन्हीं प्रभावी शब्दों द्वारा उन्होंने दूरदर्शन हेतु धारावाहिक लेखन में ऐसे नए प्रतिमान स्थापित किए जिन्हें छू सकना भी आश्चर्यजनक होगा। ‘दर्पण’, ‘आकाशगंगा’, ‘रेत पर लिखे नाम’, ‘बेताल पच्चीसी’, ‘युग’ और ‘चंद्रकांता’ सरीखे धारावाहिकों द्वारा कमलेश्वर की अतुलनीय कल्पनाशीलता, लेखनशैली और प्रस्तुति कला के अनुपम उदाहरण सिद्ध हुए। ‘चंद्रकांता’ की साप्ताहिक एक घंटे के सौ एपिसोड दूरदर्शन की अमूल्य कृति सिद्ध हुए।
हिंदी सिनेमा से सम्बद्ध ऐसे साहित्यकारों में आज सबसे बड़ा नाम हैं-कमलेश्वर। उनकी कहानियोंं, उपन्यासों ने सिने रूप में सिनेमा व्यवसाय को कथ्य का महत्व दिया है। सिने लेखन की चुनौती को उन्होंने पूरी निष्ठा और लगन से स्वीकार किया। उन्होंने अपनी सुघड़ कलम से फिल्मों की कहानी, पटकथा और संवाद लेखन किया है।
फार्मूला फिल्मों की प्रतिक्रिया से उपजा कला सिनेमा ही समांतर सिनेमा कहा गया। सन् 1969 में मृणाल सेन की फिल्म ‘भुवन सोम’ से हिंदी कला सिनेमा का जन्म हुआ। बासु भट्टाचार्य के साथ मिलकर कमलेश्वर ने इस फिल्म की पटकथा और संवाद लिखे। कालांतर कमलेश्वर के उपन्यास ‘काली आंधी’ पर आधारित लोकप्रिय फिल्म ‘आंधी’ सामने आई। इसके बाद उनके उपन्यास ‘आगामी अतीत’ पर फिल्मांतरण कर ‘मौसम’ फिल्म का निर्माण हुआ। उन्होंने ‘आनंद आश्रम’, ‘साजन बिना सुहागन’, ‘सौतन’, ‘अमानुष’, ‘छोटी सी बात’, ‘तुम्हारी कसम’, ‘पति, पत्नी और वो’, ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘राम बलराम’, ‘साजन की सहेली’, ‘रंग-बिरंगी’, ‘लैला’, ‘सागर संगम’ आदि अनेक फिल्मों का लेखन किया। हिंदी सिनेमा में कमलेश्वर की सोच, चिंतन और कर्मठता सदैव स्वर्णिम और वंदनीय रहेगी।