जल संरक्षण की प्रेरणा
वर्ष 1867 में कई वंचित वर्गों की दशा शोचनीय थी। एक वर्ग के लोग उन्हें मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित करते थे। भेदभाव के चलते पीने के पानी के लिए भी वे तरसते थे। ज्योतिबा फुले से उनकी यह दशा नहीं देखी गई। ऐसे में उन्होंने 1868 में अपने घर के पास ही एक हौज बनाने का निर्णय लिया। रूढ़ियों के चलते उन्हें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन ज्योतिबा अपने कदम पर अडिग रहे। उस हौज को उन्होंने सभी वर्गों के लिए खोल दिया। निम्न वर्ग के लोग अब उस हौज पर आकर अपनी पानी की आवश्यकता पूर्ण करने लगे। एक दिन ज्योतिबा ने हौज पर उपस्थित लोगों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया। यह सुनकर एक व्यक्ति बोला, ‘हम भला जल संरक्षण कैसे कर सकते हैं?’ इस पर ज्योतिबा बोले, ‘अगर हर व्यक्ति ऐसे ही सोचेगा तो क्या कहीं पर ऐसे हौज बन पाएंगे। हम सभी की पानी की आवश्यकता की पूर्ति हो पाएगी।’ उनमें से एक व्यक्ति का प्रश्न था, ‘आप ही बताइए कि हम पानी का संरक्षण कैसे करें?’ लोगों की बातों की प्रतिक्रिया में ज्योतिबा बोले, ‘छोटे-बड़े जलाशयों से ही घर पर पानी इकट्ठा कर संरक्षित किया जा सकता है।’ उन्होंने उन्हें पानी बचाने के तरीकों के बारे में सिखाया। उन्होंने जल-नीति का विकास भी किया। महाराष्ट्र में आज भी उनके जल संरक्षण संबंधी प्रयासों का विशेष उल्लेख किया जाता है। प्रस्तुति : रेनू सैनी