जयंत चौधरी की आरएलडी को भाजपा दे सकती है सीटें
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 29 अगस्त
भाजपा ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के लिए अपनी विचारधारा की पार्टियों से हाथ मिलाने का मन बना लिया है। सिरसा से हलोपा विधायक गोपाल कांडा के साथ पहले से बातचीत जारी है, जो लगभग सिरे चढ़ चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ भी हरियाणा में गठबंधन हो सकता है। इसी तरह, एक और पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है।
विगत दिवस गोपाल कांडा ने नई दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री व हरियाणा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से भी मुलाकात की थी। सूत्रों का कहना है कि गोपाल कांडा को सिरसा के अलावा प्रदेश में एक-दो और भी सीटें मिल सकती हैं। हालांकि हलोपा की ओर से आधा दर्जन सीटों की मांग की जाती रही है। कांडा की ओर से भाजपा को यह पेशकश भी की जा चुकी है कि पार्टी जिन सीटों को सबसे कमजोर मानती है, उन सीटों पर हलोपा चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
हलोपा और रालोद पहले से ही एनडीए का हिस्सा हैं। सूत्रों का कहना है कि हरियाणा के एक अन्य राजनीतिक दल के साथ भी भाजपा नेतृत्व की बातचीत अंतिम चरण में है। पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के प्रयासों से इस दल के अलावा गोपाल कांडा की पार्टी के साथ बातचीत शुरू हुई और अब सिरे चढ़ती नज़र आ रही है। बताते हैं कि पिछले तीन-चार दिनों से गठबंधन के मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व के साथ सभी समीकरणों के हिसाब से बातचीत चल रही है। केंद्र की ओर से भी अब हरी झंडी मिल चुकी है।
हरियाणा में भाजपा पहले भी गठबंधन में चुनाव लड़ती रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने हजकां के साथ गठबंधन किया था। कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली हजकां को भाजपा ने हिसार व सिरसा लोकसभा सीट दी थीं। हजकां दोनों ही सीटों पर चुनाव हार गई। वहीं भाजपा ने बाकी आठ में से सात सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। भाजपा पहली बार 47 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई।
2019 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने अपने ही दम पर चुनाव लड़ा। हालांकि पार्टी जब चालीस सीटों पर सिमट गई तो भाजपा ने 10 विधायकों वाली जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ गठबंधन करके सवा चार वर्षों से अधिक समय तक गठबंधन में सरकार चलाई। भाजपा पिछले दस वर्षों से सत्ता में है। दो टर्म की सरकार के खिलाफ थोड़ी-बहुत एंटी-इन्कमबेंसी होना भी स्वाभाविक है। इसी वजह से भाजपा अब अपनी विचारधारा से जुड़े दलों को साथ लेकर चलने की कोशिश में है।