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जंगल के अंधेरे में 'प्रकाश' का मिशन

05:00 AM Apr 25, 2025 IST
जंगल के अंधेरे में  प्रकाश  का मिशन
चंडीगढ़ में बृहस्पतिवार को पद्मश्री और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. प्रकाश मुरलीधर आमटे और डॉ. मंदाकिनी आमटे को सम्मानित किया गया। ट्रिन्यू
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विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 24 अप्रैल
महाराष्ट्र का घना जंगल, नक्सलियों का डर, जहरीले सांपों का डेरा और इलाज के नाम पर केवल अंधविश्वास। हेमलकसा गांव- जिसे मानचित्र पर ढूंढ़ पाना भी मुश्किल था, लेकिन इसी वीराने में एक दिन दो लोग पहुंचे नंगे पांव, मगर हौसलों से लबरेज। डॉ. प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी। शहर के चमकते अस्पतालों की ओर नहीं, उन्होंने उस जगह का रुख किया, जहां न डॉक्टर थे, न दवाएं… और न ही कोई उम्मीद।प्रकाश आमटे- जिनके पिता बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों को गले लगाया था, उसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए प्रकाश भी निकल पड़े। नागपुर मेडिकल कॉलेज से डिग्री लेने के बाद उन्होंने नौकरी नहीं, एक मिशन चुना। उनकी पत्नी मंदाकिनी, जो स्वयं एमबीबीएस डॉक्टर थीं, उनके साथ चल पड़ीं।
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डॉ. प्रकाश आमटे ने यह बात बृहस्पतिवार को पीजीआई चंडीगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन हार्ट-2025 के उद्घाटन सत्र में साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी ज़िंदगी का रुख शहर से मोड़कर जंगल की ओर किया।

1973 में दोनों ने हेमलकसा के घने जंगलों के बीच एक छोटा-सा क्लिनिक शुरू किया। एक झोपड़ी में बांस की छत, मिट्टी का फर्श, लेकिन संकल्प अडिग। अंधविश्वास के चलते उनके पास कोई इलाज करवाने भी नहीं आता था, लेकिन संघर्ष रंग लाया और अब हर साल वह अपने अस्पताल में 40 हजार से ज्यादा आदिवासियों का इलाज करते हैं। एक स्कूल खोला। अब यहां 600 से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यहां एक अनोखा पशु अनाथालय है, जहां जानवर प्रेम और सुरक्षा के वातावरण में रहते हैं। यह कोई संस्था नहीं, एक परिवार है—जहां हर मरीज को केवल इलाज नहीं, सम्मान मिलता है।

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असली पुरस्कार भरोसा

2008 में रेमन मैगसेसे अवॉर्ड, 2019 में आईसीएमआर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और मराठी फिल्म ‘डॉ. प्रकाश आमटे : द रियल हीरो’, जिसमें नाना पाटेकर ने उनकी भूमिका निभाई। लेकिन डॉ. आमटे कहते हैं कि हर बार जब कोई आदिवासी मरीज मुस्कुराकर कहता है, ‘अब मैं ठीक हूं’, वही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। उन्होंने कहा कि असली पुरस्कार लोगों का भरोसा है।

जहां तेंदुआ घर में घूमता है, भालू गोद में सोता है

इस घर की सबसे अलग बात? यहां इंसान ही नहीं, जानवर भी बच्चों की तरह पाले जाते हैं। एक घायल तेंदुआ जब डॉ. आमटे के पास लाया गया, तो उन्होंने न केवल उसका इलाज किया, बल्कि उसे अपने परिवार का हिस्सा बना लिया। तेंदुए, भालू, लकड़बग्घे, मगरमच्छ, मोर सब इस घर के सदस्य हैं। और हैरत की बात यह है कि ये सभी बिना पिंजरे के, इंसानों के बीच रहते हैं।

सेवा की लौ अब अगली पीढ़ी के हाथों में

बेटे अनिकेत और दिगंत इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। एक चिकित्सा सेवा में तो दूसरा वन्यजीव संरक्षण में। एक बहू गायनोलाजिस्ट हैं, जो आदिवासियों का इलाज करती हैं। दूसरी बहू स्कूल का कार्य देखती हैं। यहां नीट और जेईई की कोचिंग भी दी जाती है। अब तक 25 से अधिक आदिवासी बच्चे एमबीबीएस डॉक्टर बन चुके हैं। उनका पोता भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। डॉ. आमटे को उम्मीद है कि वह भी सेवा की यह मशाल आगे ले जाएगा।

डॉक्टरों को दी संवेदनशीलता की सीख

सम्मेलन में पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. विपिन कौशल, प्रो. अशोक कुमार और बठिंडा एम्स के डायरेक्टर डॉ. एके गुप्ता ने डॉ. प्रकाश और डॉ. मंदाकिनी आमटे का स्वागत किया। इस मौके पर डॉ. आमटे ने युवा डॉक्टरों से अपील की कि जहां इलाज नहीं पहुंच पाता, वहां तक पहुंचने की जिम्मेदारी हमारी है।

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