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चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है निर्जला एकादशी से

12:35 PM May 29, 2023 IST

डॉ. मधुसूदन शर्मा

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संस्कृत में एक श्लोक है :-

‘विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।

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असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी।’

जिसका अर्थ है भगवान विष्णु, एकादशी व्रत, गीता, तुलसी, ब्राह्मण यानी ज्ञानी और गौ माता ये छह साधन असार संसार में लोगों को मुक्ति प्रदान करने के हैं।

इस श्लोक में छह ऐसे काम बताये गए है जिन्हें करने पर मनुष्य अक्षय पुण्य, मान-सम्मान से युक्त वैभवशाली सुखी श्रेष्ठ जीवन पा सकता है। इन छह कामों में सर्वप्रथम भगवान विष्णु की पूजा के लिए कहा गया है, जो जगत पालक हैं और सुख समृद्धि व शांति के स्वामी हैं। श्लोक में दूसरी बात एकादशी व्रत को लेकर है, जिसको पूर्ण विधि से करने पर घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। चूंकि एकादशी व्रत के मुख्य देवता भगवान विष्णु या उनके अवतार होते हैं। इसलिए हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व दूसरे व्रतों से कहीं अधिक माना गया है।

एकादशी संस्कृत का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ ग्यारह होता है। प्रत्येक माह दो बार एकादशी आती है। पूर्णिमा के 11 दिन बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के 11 दिन बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इस प्रकार साल भर में 24 एकादशियां होती हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह पड़ता है ऐसे में साल में 24 के बजाय 26 एकादशी हो जाती हैं। हर एकादशी के अलग-अलग नाम होते हैं और उनका अपना अलग-अलग महत्व होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांच पांडवों में से एक भीमसेन अपने जीवनकाल में प्रतिवर्ष मात्र यही एक व्रत रखते थे। इसी कारण से इसे भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता हैं। कथा के अनुसार, भीमसेन को बहुत भूख लगती थी। इसलिए वह चाह कर भी कभी कोई व्रत नहीं रख पाते थे। उनके चारों भाई सभी एकादशियों का व्रत रखते थे और भीम को भी ये व्रत रखने के लिए कहते थे। परंतु भीम को भूख सहन नहीं होती थी। इस समस्या का हल पाने की चाह लिए भीम महर्षि वेदव्यास से मिले। वेदव्यास ने कहा कि यदि तुम प्रत्येक एकादशी भोजन किए बिना नहीं रह सकते हो, तो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक बिना अन्न-जल ग्रहण किये रहो तो तुमको सभी एकादशी के व्रत का फल मिल जाएगा। तभी से भीम ने अन्य एकादशियों के स्थान पर मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखना शुरू कर दिया।

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और यह अत्यंत संयम-साध्य व्रत है। दिन में न सोना, रात में जागरण करते हुए श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक आध्यात्मिक साधना करना पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना इस व्रत के महत्वपूर्ण अंग हैं। सबसे पहले एकादशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण करें। इसके पश्चात नित्य कर्मों से निवृत्त हों। मंजन के स्थान पर दातुन करें, क्योंकि मंजन में नमक होता है। पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा में पीले रंग के चावल, पीले रंग के फल-फूल प्रयोग करना चाहिए। वैष्णव भक्त एकादशी की रात में जागरण करते हुए ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। निर्जला एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस व्रत में मटके या कलश का दान करना भी बहुत शुभ होता है। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना, दिन में न सोना, मौन रहना व सात्विक दिनचर्या पर जोर दिया जाता है।

मानव देह पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि,आकाश और वायु से निर्मित होती है। निर्जला एकादशी भी इन पांचों तत्वों को अपने अनुकूल करने की तपश्चर्या है। जब ये पांचों तत्व साधक के अनुकूल होते हैं तो वह मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं पर नियंत्रण पा लेता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यदि निर्जला एकादशी को पूरे विधि-विधान से किया जाए तो मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने से मनुष्य पापों से मुक्ति पाता है, शरीर और मन शुद्ध होता है। जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है व पाचन तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और निरोग रहता है। यदि सेहत ठीक नहीं हो या बिना जल ग्रहण किए नहीं रह सकते, तो पानी में नीबू मिलाकर पी लें। अगर इसके बाद भी नहीं रह पाते हैं तो फल का सेवन करें। लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बीमार लोगों को नहीं करना चाहिए।

कठिन विधान से श्रेष्ठता

निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी एकादशी व्रतों का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह व्रत बहुत कठिन होता है, क्योंकि दूसरी एकादशियों के व्रत में तो फलाहार भी किया जा सकता है, परंतु निर्जला एकादशी के व्रत में फल तो क्या, जल भी ग्रहण करने का विधान नहीं है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाता है। इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को निश्चित है। एकादशी तिथि 30 मई , मंगलवार को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 31 मई, बुधवार को दोपहर एक बजकर पैंतालिस मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए एकादशी का व्रत 31 मई को रखा जाएगा। व्रत का पारण समय 1 जून, दिन बृहस्पतिवार को सुबह 5 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 10 मिनट के बीच रहेगा।

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