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चरचा हुक्के पै

04:27 AM Dec 30, 2024 IST
चरचा हुक्के पै
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‘त्रिमूर्ति’ का झगड़ा
charcha hukke pe : हरियाणा कांग्रेस एक बार फिर सुर्खियों में है। विधानसभा चुनावों में कई ऐसे नेता भी टिकट नहीं मिलने के बाद बागी हो गए, जिन्हें पार्टी की ओर से जिला प्रभारी नियुक्त किया हुआ था। ऐसे में होडल वाले प्रधानजी ने जिला प्रभारियों की संशोधित सूची जारी कर दी। प्रभारियों की लिस्ट जारी होते ही बखेड़ा खड़ा हो गया। बात दिल्ली तक पहुंच गई। एंटी खेमे ने दो-टूक कह दिया कि विधानसभा चुनावों में फ्री-हैंड देने का नतीजा देख चुके हैं। अभी भी प्रदेश कांग्रेस में एकतरफा चल रही है। अपने गुजरात मूल के हरियाणा वाले प्रभारी ने तुरंत लिस्ट पर रोक लगा दी। बाकायदा आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की ओर से इसकी पुष्टि की गई। इसके बाद सांघी वाले ताऊ ने दावा किया कि लिस्ट रुकी नहीं है, उसमें थोड़ा संशोधन होना है। बहरहाल, प्रधानजी, प्रभारी और सांघी वाले ताऊ की ‘त्रिमूूर्ति’ के बीच लिस्ट को लेकर चल रही खींचतान चर्चाओं में है। एलओपी को लेकर पहले से ही खींचतान से गुजर रहे हरियाणा के ‘कर्ता-धर्ताओं’ के समीकरण प्रभारी ने बिगाड़ दिए हैं।

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11 साल पुरानी रणनीति
पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो सुप्रीमो चौ. ओमप्रकाश चौटाला के स्वर्गवास के बाद अब उनके छोटे बेटे यानी ‘बिल्लू’ भाई साहब पार्टी की मजबूती में जुट गए हैं। जिस तरह से इनेलो ने 2013 में चौटाला और अजय सिंह के जेल जाने के बाद चौ. देवीलाल की स्मृतियों को लेकर पूरे हरियाणा में यात्रा निकाली थी, उसी तरह से अब भाई साहब ने ‘अर्जुन’ को आगे कर दिया है। अर्जुन पूरा टारगेट लेकर निकले हैं। भाई साहब की कोशिश पार्टी के पुराने समर्थकों को लामबंद करने की है। चौटाला साहब की ‘कलशयात्रा’ के जरिये पार्टी से दूर जा चुके वोटर-सपोर्टर को चौटाला के नाम पर इमोशनली पार्टी से जोड़ने में अगर भाई साहब कामयाब होते हैं तो यह उनकी पार्टी के लिए बड़ी मजबूती का काम करेगा। अगर वे अब भी पार्टी के साथ वर्करों को जोड़ने में सफल नहीं हुए तो उनके लिए चुनौतियां बरकरार रहेंगी।

रास आए निकाय चुनाव
शहरी स्थानीय निकायों – नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं के चुनावों के लिए निकाले गए ड्रा बीजेपी को फायदा पहुंचाते नजर आ रहे हैं। सांघी वाले ताऊ के शहर यानी रोहतक में मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित होने से ताऊ समर्थकों में मायूसी है। वहीं भाजपा एक बार फिर इन चुनावों में जाट और गैर-जाट का दंगल जमाने के लिए तैयार है। बीजेपी को कांग्रेस की उस दुविधा का भी फायदा हो रहा है, जिसमें कांग्रेस अभी तक सिम्बल पर चुनाव लड़ने का फैसला नहीं ले पाई है। भाजपा निकायों के चुनाव शुरू से ही सिम्बल पर लड़ती आ रही है। कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह सिम्बल के साथ चुनौती देते हुए भाजपा को घेरने का काम करे या फिर डिफेंसिव पॉलिटिक्स को अपनाए।

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बाबा का ‘करंट’
अंबाला के ‘दाढ़ी’ वाले ‘बाबा’ का रौब कम नहीं हुआ है। बेशक, वे अब गृह मंत्री नहीं हैं, लेकिन उनके काम करने का तरीका और फैसले लेने की शैली उन्हें पहले की तरह चर्चाओं में बनाए हुए है। प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति बाबा का कड़क रवैया उन्हें ‘गब्बर’ की छवि में रखे हुए है। यही वजह है कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में सबसे अधिक खौफ उन्हीं के नाम का है। हालांकि कई बार ‘बाबा’ सामने वाले की सुनने की बजाय अपने फैसले पर अड़ जाते हैं। पिछले दिनों एक पुलिस इंस्पेक्टर को धमकाने का उनका वीडियो वायरल हुआ। इसमें पुलिस अधिकारी बार-बार अपना पक्ष रखने की कोशिश करता है, लेकिन ‘बाबा’ हैं कि सुनते ही नहीं। दरअसल, किसी मामले में एफआईआर दर्ज करने के आदेश ‘गब्बर’ ने दिए थे। केस दर्ज नहीं होने के पीछे बड़ा कारण यह है कि जमीनी विवाद से जुड़ा यह मामला पहले से कोर्ट में चल रहा है। ऐसे में कानूनन इसमें केस दर्ज नहीं हो सकता।

दोनों पार्टियां असमंजस में
निकाय चुनाव जहां भाजपा व कांग्रेस को आमने-सामने करने का काम कर रहे हैं। वहीं चौटाला परिवार की दोनों पार्टियों – इनेलो व जजपा के लिए ये चुनाव बड़ी उलझन बन गए हैं। दोनों ही पार्टियों का गांवों के मुकाबले शहरों में जनाधार नहीं है। ऐसे में इन चुनावों में उतर कर दोनों ही पार्टियों को कुछ हासिल होने की गुंजाइश कम ही लगती है। चुनाव नतीजे सही नहीं आने पर फिर से ‘सियासी फजीहत’ का डर लगा रहेगा। वहीं दूसरी ओर, अगर दोनों ही पार्टियां निकाय चुनावों से दूर रहती हैं तो इससे सियासत खराब होती है। यही वजह है कि दोनों पार्टियां निकाय चुनाव को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं ले पा रही हैं। हालांकि अभी दोनों पार्टियों के नेता परिवार के मुखिया के जाने की वजह से शोक में हैं।

कांग्रेस में बदल गया नजारा
तीन साल पहले यूथ कांग्रेस के चुनाव में हरियाणा में जबरदस्त घमासान हुआ था। यूथ कांग्रेस पर वर्चस्व हासिल करने के लिए रोहतक वाले ‘युवराज’ के साथ-साथ सिरसा वाली बहनजी और कैथल वाले भाई साहब ने पूरा चुनावी बंदोबस्त किया हुआ था। एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में उस समय युवा कांग्रेस ने प्रदेशभर में 15 लाख युवाओं को अपने साथ जोड़ दिया था। मेम्बरशिप का यह इतिहास था। लेकिन इस बार यूथ कांग्रेस के चुनाव को लेकर अभी तक कांग्रेस के ‘सियासी चूल्हे’ ठंडे पड़े हैं। न तो युवा नेताओं में चुनाव लड़ने को लेकर दिलचस्पी दिख रही है और न ही सदस्यता अभियान को लेकर कोई खबर है। विधानसभा चुनावों में हार के चलते कांग्रेस के साथ-साथ युवा कांग्रेस के नेताओं में भी मायूसी का आलम है। इसलिए न तो रोहतक वाले ‘युवराज’ ने अभी तक कमान संभाली है और न ही दूसरा खेमा इस दंगल को लेकर एक्टिव हुआ है।

बड़ा टारगेट बड़ी चुनौती
प्रदेश में तीसरी बार बीजेपी के सत्ता में आने के बाद प्रधानजी ने बड़ा दावा किया था कि 50 लाख सदस्यों को पार्टी के साथ जोड़ा जाएगा। बाकायदा सांसदों व विधायकों को टारगेट दिए गए। बड़े नेताओं की जिलावार ड्यूटी भी लगाई गई। पार्टी के बड़े व छोटे नेताओं का पसीना बहने के बाद अभी तक 39 लाख ही सदस्य पार्टी के साथ जुड़े हैं। हालांकि प्रधानजी व ‘दाढ़ी’ वाले ‘बिग बॉस’ ने हिम्मत नहीं छोड़ी है। वे इस मुहिम को सिरे चढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। माना जा रहा है कि बाकी के 11 लाख का टारगेट हासिल करने के लिए दोनों को मिलकर कुछ ‘नायाब’ कदम उठाने होंगे।
-दादाजी

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