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गर्मी की तपिश में जीवन अनुकूल बनाने की जरूरत

04:05 AM Apr 13, 2025 IST
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दुनियाभर के लिए इस साल में गर्मी गंभीर चुनौती बनने वाली है। ऐसा मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं। इस बार देश में कई राज्यों का तापमान अभी से करीब 40 डिग्री है। इससे मुकाबले को रणनीति में शहरों की हीट प्रोफाइलिंग शामिल करना बहुत ज़रूरी है जिनमें भीषण ताप वाले क्षेत्र यानी अर्बन हीट आइलैंड्स बढ़ते जा रहे हैं।

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संजय श्रीवास्तव
अकेले अपने देश में ही नहीं, समूचे संसार में गरमी कहर ढहा रही है। तमाम देश इससे निपटने के बहुविध उपाय कर रहे हैं और उनको आंशिक सफलता भी मिलनी शुरू हो चुकी है। अपने देश में इससे निजात पाने के लिये जो रणनीति बननी है, उसके लिये शहरों की हीट प्रोफाइलिंग बहुत ज़रूरी है। यह कार्य कठिन है,लेकिन अच्छी बात यह है कि शासन के स्तर पर इसका शुभारंभ कर दिया गया है।
गर्मी के प्रकोप को लेकर अनुमान
इस बार देश में गर्मी का प्रकोप घातक होने के अनुमान हैं, दर्जनभर राज्यों का तापमान अभी से ही 40 डिग्री से ज्यादा चल रहा है। आगे पारा पचास पार होगा और हीटवेव के दिन दोगुने। अगले दस वर्षों में गर्मी हमारे लिये सबसे बड़ी चुनौती बनने वाली है। यह सब मौसम विभाग बता चुका है।
अरबन हीट आइलैंड्स में बढ़ोतरी
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने कहा कि विगत चार दशक में हीट वेव से मरने वालों की संख्या में 62 फीसद की बढ़ोतरी हुई है और जान के अलावा माल का नुकसान भी दसियों गुना बढ़ा है। इसके जिम्मेदार हैं भीषण ताप वाले “अरबन हीट आइलैंड्स की संख्या में साल दर साल होने वाली बढ़ोतरी।
मुकाबले की रणनीति हीट प्रोफाइलिंग से
इस चिंताजनक परिदृश्य से निपटना फिलहाल कठिन लगता है परंतु यदि हमारे पास इसके खिलाफ सुविचारित, प्रभावी रणनीति हो तो यह किंचित आसान हो। इसके लिये किसी भी प्रकार की रणनीति निर्माण का आधार और उसकी पहली शर्त है, शहरों और उसके सभी क्षेत्रों की व्यापक “हीट प्रोफाइलिंग” जिससे अरबन हीट आइलैंड बनने के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सके। आशंकित खतरे से बचा जा सके।
अजूबा नहीं दिल्ली में 52.3 डिग्री
पिछले बरस जून में दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में 52.3 डिग्री सेल्सियस का तापमान, भारत में गर्मी का सबसे बड़ा आंकड़ा बना। कुछ ने इस पर अचरज जताते हुए मौसम विभाग के मापन प्रणाली और उपकरणों में गड़बड़ी बताई, यहां तक कि पारे के पचास पार जाने की पुष्टि के लिये एक कमेटी मुंगेशपुर भेजी गई। पुष्टि हो गई। यह कोई अजूबा नहीं था। उसी दौरान दिल्ली के ही नरेला में तापमान पचास पर पहुंच रहा था जबकि बाकी जगहों पर 37 से 45 डिग्री था। मौसम विभाग ने संभवत: इस ओर पहले बहुत ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब यह कोई असामान्य परिघटना नहीं रह गई है।
एक ही शहर में तापमान के रेंज
साल 2020 में, हीट मैपिंग परियोजना के तहत ह्यूस्टन की हैरिस काउंटी के सबसे गर्म और ठंडे स्थान के बीच 17 डिग्री का अंतर था। इसी तरह न्यूयॉर्क के साउथ ब्रोंक्स में एक ही दिन रात के तापमान में वहां के सेंट्रल पार्क से 20 से 22 डिग्री का अंतर था। अब ऐसे उदाहरण भारत के तमाम शहरों में भी हैं। जब यह बताया जाता है कि किसी शहर विशेष का औसत अधिकतम सामान्य तापमान आज के दिन 39 डिग्री है तो उसी समय उसी शहर के किसी क्षेत्र का तापमान 48 डिग्री तो किसी इलाके का 35 डिग्री भी हो सकता है। अगर गर्मियों के समय में शहरों के विभिन्न हिस्सों की लगातार” हीट प्रोफाइलिंग” की जाए तो यह साफ हो जायेगा कि विभिन्न शहरों में कहां-कहां ऐसी स्थिति आती है कि वह बाकी शहर से बेहद असामान्य तापमान प्रदर्शित करता है। संबंधित क्षेत्र तेज हरारत दिखाने की इस हरकत के चलते कब और कितनी बार “अरबन हीट आइलैंड” अथवा शहरी उष्मा द्वीप बन जाता है।
हीट प्रोफाइल व अरबन हीट आईलैंड की कांसेप्ट
यहां किसी इलाके की हीट प्रोफाइल का मतलब है किसी क्षेत्र के तापमान में समय सापेक्ष बदलाव का पैटर्न या विवरण तथा “अरबन हीट आईलैंड” का अर्थ है शहरों का वह खास हिस्सा जो अपने आसपास अथवा नजदीकी ग्रामीण इलाकों की तुलना में अमूमन बहुत ज्यादा गर्म रहता है।
जिम्मेदार कारक व नुकसान
“हीट प्रोफाइलिंग” के व्यापक आंकड़े हमें यह बताएंगे कि किसी शहर के क्षेत्र विशेष में “अरबन हीट आइलैंड” बनने जैसी परिस्थितियां कैसे निर्मित होती हैं? इसके आंकडों के अध्ययन के निष्कर्ष बता सकते हैं कि ऐसे कौन से कारक हैं जो किसी इलाके को अरबन हीट आइलैंड बना देते हैं। यह भी कि ऐसी परिस्थितियों के निर्माण से दीर्घकालिक नुकसान क्या क्या हैं तथा संबंधित विभाग और सरकार ग्लोबल वार्मिंग के मौजूदा दौर में इससे निजात के पाने की दिशा में क्या कर रही है, क्या करने वाली है उसे और क्या करना चाहिये?
समस्या से जूझ रहे देशों से लें सीख
दूसरे देश जो गर्मी की समस्या से हमारी ही तरह जूझ रहे हैं या हमसे भी ज्यादा परेशान हैं, वे इस मामले से निपटने के लिये क्या कर रहे हैं। उनसे सीख लेकर इससे निजात पाने के लिये हमको कौन कौन सी फूलप्रूफ रणनीति तथा नई तकनीक अपनानी चाहिये। इन सारे सवालों का जवाब एक है, “हीट प्रोफाइलिंग”। शहरों के विभिन्न इलाकों की बहुत व्यापक स्तर पर हीट प्रोफाइअलिंग करनी होगी तथा उसके आंकडों के विश्लेषण के बाद यह जानना समझना होगा कि किसी क्षेत्र विशेष के अरबन हीट आइलैंड बनने के कौन से मुख्य कारण हैं। इसको समझे बिना बढ़ती जा रही मारक भीषण गर्मी से बचने की कोई पुख्ता और दूरगामी रणनीति असंभव है।
हीट प्रोफाइलिंग से मिले आंकड़ों का महत्व
हीट प्रोफाइलिंग के बाद जब उससे मिले आंकड़ों के आधार पर क्षेत्र विशेष में उसके कारकों कारणों के विश्लेषण से हमको पता लगेगा कि शहर के जिस क्षेत्र विशेष में गर्मी के भीषण प्रकोप से जान -माल का खतरा है उसके के लिये कौन सी वजहें जिम्मेदार हैं। किन क्षेत्रों में किस कारण पर ध्यान केंद्रित करना है। कहां तत्काल राहत के प्रबंध करने हैं कहां दूरगामी रणनीति लागू करनी है।
निस्संदेह ऐसी किसी समग्रतापूर्ण ठोस रणनीतिक योजना को लागू करने से पहले हमारे पास वह होनी भी चाहिये और उसके बनने के लिये हमारे पास हीट प्रोफाइलिंग से संबंधित पर्याप्त आंकड़े तथा जानकारियां चाहिये।
औसत तापमान से सीमित जानकारी
अभी मौसम विभाग के मापक यंत्रों के जरिये अमूमन शहर का औसत तापमान बताया जाता है। इससे यह पता नहीं चलता कि उक्त शहर के किस इलाके में गर्मी के चलते जान-माल का भारी नुकसान आशंकित है और कौन सा इलाका खतरे से बाहर है। ऐसे में शहरों की हीट प्रोफाइलिंग आसान नहीं है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी से प्रभावित न होने वाले राज्य, होने वाले राज्यों से ज्यादा हैं। सरकार को इसके लिये अत्यंत व्यापक व्यवस्था हेतु बड़े स्तर पर मानव संसाधन तथा उपकरण, उपस्कर एवं अवसंरचना का इंतज़ाम करना होगा।
कानपुर आईआईटी का नया मॉडल
ऐसे में कानपुर आईआईटी द्वारा एक नए मॉडल का निर्माण सुखद सूचना है। इस मॉडल के जरिये किसी भी शहर के अलग-अलग स्थानों के तापमान का सटीक आंकड़ा और पूर्वानुमान मिल सकेगा, यही नहीं ये यह भी बतायेगा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिये। तात्कालिक व्यवस्थाएं जैसे अलर्ट देना, संबंधित क्षेत्र में पानी, बिजली की अबाध आपूर्ति, छाया की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाना,जन जागरूकता के उपाय एवं अन्य संबंधित व्यवस्थाएं, दूरगामी उपाय यथा पौधरोपण, जल निकाय, हरित क्षेत्र में वृद्धि, भवन निर्माण की उचित तकनीकी लागू करना, कुछ क्रियाकलापों पर रोक लगाना इत्यादि। दिक्कत यह है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित यह मॉडल अभी प्रायोगिक दौर में है। इसमें विशेष प्रकार के सेंसर का विकास और उसे माइक्रो लेवल पर लगाना बाकी है।
जानकारी के साथ जरूरी तैयारी भी
शहरों में हीट आइलैंड क्यों बनते हैं, इसके बारे में मोटी जानकारी जानकारी आज सबके सामने है। इंटरनेट के माध्यम से इस इन बातों को भी लोग जानते हैं कि सिंगापुर से लेकर सियरा लियोन, एथेंस और बांग्लादेश से लेकर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों ने डीआई यानी थर्मल डिस्कम्फर्ट इंडेक्स का एटलस बनाने, चीफ हीट ऑफिसर नियुक्त करने और उन ऑफिसर द्वारा इससे निबटने के लिये क्या-क्या किया गया और उन्हें कितनी सफलता मिली। सवाल यह है कि हम इस आसन्न संकट से निबटने के शहरों की हीट प्रोफाइलिंग हेतु कितने तैयार हैं, जो इस मर्ज की उपयुक्त दवा बन सकती है। अच्छी बात यह है कि सरकार ने इस ओर गंभीर कोशिश शुरू कर दी है। -इ.रि.सें

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