मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

गणपति की दिव्यता और पूजा का उत्सव

11:39 AM Sep 02, 2024 IST

आर.सी. शर्मा

हिंदू धर्म में भगवान गणेश अग्रगण्य देवता हैं। उन्हें गणपति यानी पवित्रताओं का स्वामी कहा जाता है। वह केवल इंसानों के लिए ही पूज्य नहीं हैं, बल्कि देवताओं के भी परमपूज्य हैं। इसी कारण गणेश जी के जन्मपर्व गणेश चतुर्थी को दस दिनों के आराधना महापर्व के रूप में मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी की धूमधाम का प्रतिनिधित्व जन-जन के उल्लास के रूप में होता है, जैसे पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा। हाल के दशकों में गणेश चतुर्थी ने पूरे देश में एक लोकप्रिय पर्व का रूप ले लिया है। इस साल गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाई जाएगी।
गणेश जी हिंदुओं के अग्रगण्य देवता हैं, और इसलिए कोई भी धार्मिक गतिविधि उनकी प्रथम पूजा के बिना शुरू नहीं होती। गणेश जी सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाले विघ्नविनाशक हैं। इसलिए हर शुभ काम के पहले उनकी प्रतिमा की स्थापना की जाती है। गणेश चतुर्थी के पर्व में पहले दिन, यानी चतुर्थी के दिन, घर में या किसी सार्वजनिक पंडाल में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होती है। उनका अभिषेक किया जाता है और उनके प्रिय फूलों, फलों और मोदकों से पूजा की जाती है।
गणेश जी का भारत के सनातन समाज में बहुत महत्व है, और इसलिए उन्हें गणों का देवता यानी लोगों का भगवान कहा जाता है। गणेश जी अपने भक्तों की सभी परेशानियों को दूर करते हैं।
गणेश जी के जन्म को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा शिवपुराण की है। इसके अनुसार, एक दिन माता पार्वती ने स्नान करने जाने से पूर्व अपन दिव्य शक्ति से एक बालक उत्पन्न किया और उसे अपनी रक्षा के लिए द्वारपाल बना दिया। जब भगवान शिव घर में प्रवेश करने की कोशिश किए, तो इस बालक ने उन्हें रोक दिया। शिवजी के गणों ने इस बालक से युद्ध किया, लेकिन वे उसे पराजित नहीं कर सके। इस पर शिवजी ने त्रिशूल से बालक को सिरविहीन कर दिया। यह देख और जानकर माता पार्वती बहुत क्रोधित हो गईं। देवताओं ने नारद मुनि की सलाह पर माता पार्वती को शांत करने के लिए प्रयास किए। शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले हाथी का सिर लाए और मृत्युंजय रुद्र ने उसे बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती अपने बालक को जीवित देखकर बहुत खुश हुईं और उसे अग्रपूज्य होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने भी उस बालक को अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।
गणेश चतुर्थी का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान गणेश इस ब्रह्मांड में व्यवस्था बनाए रखते हैं। इसलिए जब लोग कोई नया काम शुरू करते हैं, नया संकल्प लेते हैं, या कोई नई बौद्धिक यात्रा शुरू करते हैं, तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करते हैं। गणेश चतुर्थी का पर्व देश में इसलिए भी धूमधाम से मनाया जाता है कि मुगलों के शासनकाल में जब वे भारतीय संस्कृति को नष्ट कर रहे थे, तब छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ गणेश चतुर्थी का पर्व सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की थी। तब से गणेश चतुर्थी का यह त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गणपति की पूजा का धार्मिक महत्व किसी भी दूसरी पूजा से अधिक है।
माना जाता है कि गणपति की साधना करने से हर किसी को सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। गणपति की कृपा से साधक के सभी दुख दूर होते हैं और बल, बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गणपति पूजा में सिंदूर और दूर्वा का उपयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि ये दोनों ही चीजें गणेश जी को बहुत प्रिय हैं। पूजा में केले, गन्ने, श्रीफल, मोदक और मोतीचूर के लड्डू जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार, गणपति की पूजा करने से ग्रहों से जुड़े सभी शुभ फल प्राप्त होते हैं। गणपति सुख, संपत्ति और सौभाग्य प्रदान करने वाले देवता हैं, इसलिए हर सनातन धर्म मानने वाले को गणपति की पूजा करनी चाहिए।

Advertisement

इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

Advertisement
Advertisement