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खातेदारों के भरोसे को कायम करने की चुनौती

04:00 AM Jan 06, 2025 IST

कहते हैं कि नया युग मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग का है, लेकिन उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ाना भी जरूरी है। आंकड़े दर्शाते हैं कि बैंकिंग से संबंधित खातेदारों की शिकायतें लगातार बढ़ी हैं। इन शिकायतों का समाधान तत्काल किया जाना जरूरी है।

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सुरेश सेठ

पिछले दशकों में देश की आर्थिक दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की कोशिशें की जाती रही हैं। नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान शुरू की गई उदार आर्थिक नीतियों को अब एक नया आयाम दिया जा रहा है। इस प्रयास के तहत, देश की विकास दर, व्यवसाय और निवेश को गति देने के लिए निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी जा रही है। हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र को पूरी तरह से कमजोर नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रजातांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य उसे प्रोत्साहित करना है, लेकिन अब सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच एक नया संतुलन स्थापित किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, सार्वजनिक क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ रही है, जो आर्थिक विकास के नए रास्ते खोल रही है।
स्व. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने बैंकिंग क्षेत्र को व्यापक रूप से प्रभावित किया। इसके बाद, सार्वजनिक बैंकों का विलय और निजी बैंकों का उत्थान आर्थिक संरचना में बदलाव में सहायक बने। आज निजी बैंकों में रोजगार की संख्या सार्वजनिक बैंकों से अधिक हो गई है, लेकिन इस प्रगति ने कुछ विसंगतियों को जन्म भी दिया है। वर्तमान में, आरबीआई की मौद्रिक नीतियों का असर बैंकिंग क्षेत्र पर गहरा है, लेकिन रैपो रेट में परिवर्तन न होने के कारण निवेशकों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, मुद्रा प्रवाह में अस्थिरता बढ़ी है और निवेशक विदेशों में अधिक लाभ की तलाश में हैं। बहरहाल, बैंकिंग क्षेत्र के बिना डिजिटल अर्थव्यवस्था की कल्पना असंभव है, क्योंकि पेपरलेस कार्यप्रणाली और आधुनिकीकरण से बैंकिंग में सुधार किया जा रहा है।
नये वर्ष के आगमन के साथ ही भारत की डिजिटल बैंकिंग व्यवस्था ने एक नई दिशा तो ली, लेकिन ग्राहकों की शिकायतें 32.8 प्रतिशत बढ़ गई हैं, जो डिजिटल परिवर्तन के प्रभाव पर सवाल उठाती हैं। जबकि सार्वजनिक बैंकों का विलय जारी है, निजी बैंक भी अपेक्षित गति से निवेश नहीं बढ़ा पा रहे हैं और न ही ग्राहक सेवा में सुधार कर पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह निजी बैंकों में कर्मचारियों की कमी और नौकरी छोड़ने की उच्च दर है, जिससे संस्थागत ज्ञान की हानि हो रही है। इसके अलावा कृत्रिम मेधा और डिजिटल शक्ति का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पा रहा है। हालांकि, यूपीआई भुगतान सुविधाजनक है, लेकिन बैंकिंग धोखाधड़ी में 28 प्रतिशत की वृद्धि ने ग्राहकों का विश्वास हिलाया है।
उपभोक्ता हमेशा उम्मीद करते हैं कि रैपो रेट में कटौती की जाए, जिससे उन्हें सस्ते कर्ज मिलेंगे और उनकी ईएमआई घटेगी। लेकिन ऐसा नहीं होता, और इस कारण बैंकों में विकास, विस्तार और लाभ की गति में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।
भारत में लोगों के पास अकूत सोना है, जो आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का एक अहम स्रोत माना जाता है। हालांकि देश सोने का बड़ा उत्पादक नहीं है, लेकिन यदि बैंकिंग व्यवस्था सही तरीके से विकसित होती, तो स्वर्ण बांड्स का प्रचार-प्रसार अधिक होता। निजी वित्तीय संस्थानों ने स्वर्ण बांड्स को प्राथमिकता दी है, लेकिन वे आम जनता में विश्वास नहीं जगा सके और उन्हें अपने सोने को बांड्स में निवेश करने के लिए प्रेरित नहीं कर पाए।
नये वर्ष में गोल्ड बांड्स की सीमाओं और संभावनाओं पर पुनः विचार किया जाना चाहिए और लोगों को अपने घर में रखे सोने को स्वर्ण बांड्स में निवेश करने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए।
हालांकि हम यह कहते हैं कि नया युग मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग का है, लेकिन उपभोक्ताओं की शिकायतों पर विचार करना जरूरी है। आंकड़े दर्शाते हैं कि बैंकिंग से संबंधित शिकायतें लगातार बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर जमा खातों से जुड़ी शिकायतों में भी इजाफा हो रहा है। इन शिकायतों का समाधान तत्काल किया जाना चाहिए, ताकि बैंकों के प्रति उपभोक्ताओं का दृष्टिकोण सकारात्मक बना रहे। तभी हम डिजिटल बैंकिंग के इस नये रूप का सही तरीके से उपयोग कर सकते हैं, जो देश के आर्थिक और निवेश नवाचार में योगदान कर सके।
बैंकिंग, कृत्रिम मेधा और डिजिटल पावर का उपयोग देश की आर्थिक तरक्की के लिए किया जा सकता था, लेकिन आम लोगों में कृत्रिम मेधा के प्रति अविश्वास उसके गलत इस्तेमाल के कारण उत्पन्न हो रहा है। साइबर अपराधियों ने इन तकनीकों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है, जिससे 5जी और 6जी जैसी नई तकनीकों के प्रति विश्वास भी कमजोर हुआ है। जहां एक ओर हम डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का दावा करते हैं, वहीं ठग और धोखेबाज मासूम खातेदारों के खातों से पैसा चुराकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल कर देते हैं। पुलिस इसका कोई ठोस समाधान नहीं कर पा रही है। नये वर्ष के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि साइबर अपराध रोकने और कृत्रिम मेधा के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए त्वरित कदम उठाए जाएंगे, ताकि बैंकिंग क्षेत्रों में बढ़ती समस्याओं को समाप्त किया जा सके।

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लेखक साहित्यकार हैं।

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