खनन पर लगाम
पर्यावरण संरक्षण और कानून व्यवस्था के लिये चुनौती बने अवैध खनन को लेकर देश की शीर्ष अदालत और एनजीटी अक्सर सख्त टिप्पणियां करते रहे हैं। इस दिशा में प्रयास भी होते रहे हैं लेकिन समेकित पहल के अभाव में प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाते। अब इस दिशा में हरियाणा के वन विभाग द्वारा एक व्यावहारिक पहल की गई है। अवैध खनन करके निकाले गये पत्थरों, रेत-बजरी आदि को ले जाने वाले वाहनों के रास्ते और वन मार्ग सील करने की पहल की गई है। निस्संदेह, यदि इस कोशिश को तार्किक परिणति दी गई तो अवैध खनन की कोशिशों पर किसी हद तक रोक लगायी जा सकती है। निश्चित रूप से नूंह में वन विभाग द्वारा सभी रास्तों व वन मार्गों को सील करने के लिये शुरू किया गया अभियान सही दिशा में उठाया गया कदम है। कह सकते हैं कि लंबी चलने वाली इस प्रक्रिया की व्यावहारिक शुरुआत हुई है। लेकिन एक बात तय है कि अरावली पर्वत शृंखला में अवैध खनन रोकने के प्रयासों में सफलता तभी मिलेगी, जब सभी स्तरों पर एकीकृत प्रयास किये जायेंगे। जो कि कार्रवाई के पैमाने और नीतियों में निरंतरता से संभव होंगे। लेकिन इस दिशा में सफलता के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी सख्त जरूरत होगी। यदि सरकारी तंत्र को अवैध खनन बंद करने के सख्त आदेश दिये जाएंगे तो नीतियों का क्रियान्वयन आसान हो सकेगा। वहीं यदि इस अभियान में कुछ लोगों को छूट दी गई तो मुहिम के सार्थक परिणाम पाना मुश्किल हो सकता है। कुछ लोगों को छूट और कुछ पर सख्ती से अवैध खनन पर रोक के लक्ष्य हासिल नहीं किये जा सकते हैं। कहा जा सकता है कि सभी विभागों की ओर से साझे प्रयास और खनन से जुड़ी बड़ी मछलियों पर नकेल डालने से ही अवैध खनन की समस्या का कारगर समाधान निकलने की संभावना बढ़ जायेगी।
यह भी तय है कि राज्य में अवैध खनन बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है। दरअसल, चुनाव में आर्थिक मदद करने वाले खनन माफिया कालांतर निरंकुश खनन के लिये संरक्षण की सुविधा जुटाने का प्रयास करते हैं। कुछ पर शिकंजा और कुछ को छूट की नीति से प्राकृतिक संपदा की लूट का खेल बदस्तूर जारी रहता है। जो किसी भी सार्थक मुहिम को निष्प्रभावी बना देता है। विगत में देखा गया है कि अवैध खनन हेतु डम्पर- कैंटर व मशीनों को लाने तथा उत्खनित पत्थरों को ले जाने वाले वाहनों के लिये रास्ते रातों-रात चौड़े कर दिये जाते हैं। अधिकारियों द्वारा पहचाने गये ऐसे करीब सौ रास्तों में से अधिकांश राजस्थान में भरतपुर की सीमा के निकट स्थित हैं। इनमें से बीस को अधिकारियों ने सील कर दिया है। अधिकारी कह रहे हैं कि अवैध खनन की कोशिश करने वालों से सख्ती से निबटा जा रहा है। साथ ही अवैध खनन करके पत्थर व रेत-बजरी ले जाने वाले वाहनों की आवाजाही को रोकने के लिये और मार्गों की तलाश की जा रही है। इन इलाकों में चौकसी बढ़ा दी गई है। जरूरत इस बात की है कि ऐसे प्रयासों में निरंतरता बनी रहे। विगत में देखा गया है कि ऐसे अभियान शुरुआत में तो बड़े जोर-शोर से शुरू किये जाते हैं लेकिन इस प्रयासों को तार्किक परिणति तक पहुंचाने से पहले ही मुहिम में शिथिलता आ जाती है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि अरावली की तलहटी में ऐसे अभियानों को सफल बनाने में सामुदायिक भागीदारी की पर्याप्त संभावनाओं को तलाशा जाये। इसके लिये जरूरी है कि अवैध खनन के खतरों और इसके दीर्घकालीन विनाशकारी परिणामों के बारे में ग्रामीणों को जागरूक किया जाये। इससे विभिन्न विभागों को इस इलाके में होने वाली अवैध गतिविधियों की सूचना भी समय रहते हासिल की जा सकती है। यदि इन सूचनाओं पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई हो तो सार्थक परिणाम जरूर मिल सकते हैं। खनन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में स्थानीय समर्पित युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर अपेक्षित लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं। ऐसे लोगों को प्रशिक्षित करने और रोजगार देने से स्थानीय लोगों की भूमिका अवैध खनन रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती है।