खट्टी-मीठी यादों का दस्तावेज
जतिंदर जीत सिंह
छोटी-छोटी बातें भी कई बार बड़ी-बड़ी यादें बन जाती हैं। यादें हैं तो वह खट्टी और मीठी दोनों तरह की हो सकती हैं। कुछ इसी तरह का अहसास कराते हैं लेखक कमलजीत के लेख जिन्हें उन्होंने अपनी ताजा किताब ‘अद्धे पागल हो जाइये’ में संजोया है। मूलरूप से पंजाबी भाषा में रचित इस किताब में जिंदगी के निजी अनुभवों को खूबसूरती से सहेजा गया है। कुछ महसूस करने की व्यथा-कथा के साथ-साथ इस कृति में समाज के लिए गहरे संदेश भी हैं। घर-परिवार, रिश्ते, दोस्त, गांव-शहर, स्कूल-कॉलेज, नौकरी-दफ्तर… जीवन के कई पन्नों को पलटते लेख हमारे आसपास के हालात को बयां करते हैं।
‘केहड़ा अंबानी कौन अदानी’ लेख में बच्ची के जन्मदिन की पार्टी के किस्से के जरिये लेखक अमीरों की कभी न मिटने वाली तृष्णा और गरीब इंसान की संतुष्टि का अनुभव कराते हैं। बच्चों को बड़े स्कूल में दाखिल कराने की भागदौड़, सिफारिश, डोनेशन और फिर एडमिशन की खुशी व परिवारों पर भारी पड़ती फीस की टीस ‘कोटा’ में दिखती है। कोरोना काल के दौरान सबसे ज्यादा मार झेलने वाले गरीब तबके के दर्द का अहसास कराता है ‘प्रॉन मसाला’। लंगर बाबा, चिड़ी दी चुंज, गुरु दी रसोई… दूसरों के लिए जीने वालों की मिसाल हैं और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देते हैं।
पंजाबी पत्रकारिता से गहरे जुड़े लेखक कमलजीत सिंह बनवैत की इससे पहले आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें दो कहानी संग्रह हैं। ‘डंके की चोट ते’ लेख के जरिये वह अपनी पत्रकारिता से परिचय कराते हैं। पुस्तक में कुल 28 लेख हैं। भाषा सरल, सहज है। शैली ऐसी है कि पढ़ते हुए पूरा दृश्य सामने बनने लगता है।
पुस्तक : अद्धे पागल हो जाइये लेखक : कमलजीत सिंह बनवैत प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 220.