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गुरबत में उभरता चमकीला नगीना सुशीला मीणा

04:00 AM Dec 27, 2024 IST

राजस्थान के एक आदिवासी गांव की बेटी सुशीला मीणा के वायरल वीडियो में वह सधे हुए एक्शन में क्रिकेट की तेज गेंद डालती दिख रही है। महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का उसक्र बॉलिंग एक्शन को जहीर खान के समान कहना सुशीला मीणा की प्रतिभा पर मुहर लगाता है। उसकी मदद को कई हस्तियों का आगे आना उम्मीद बंधाता है कि प्रशिक्षण मिलने पर उसका खेल और निखरेगा।

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अरुण नैथानी

यह तो स्वयंसिद्ध तथ्य है कि प्रतिभाएं अभावों में पलती हैं। वैसे तो प्रतिभा का मूल स्वर प्राकृतिक होता है, जिसे कुशल प्रशिक्षण से ही तराशा और निखारा जा सकता है। ऐसे ही तमाम गुदड़ी के लालों ने अपनी नैसर्गिक प्रतिभाओं के बूते देश का गौरव बढ़ाया है। इन्हीं बातों को सिद्ध कर रही है राजस्थान के एक आदिवासी गांव की बारह साल की बेटी सुशीला मीणा। पिछले दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें एक लड़की नंगे पांव सरकारी स्कूल की ड्रेस में एक सधे हुए एक्शन में क्रिकेट की तेज गेंद डाल रही है। किसी भले मानुस ने वो वीडियो सोशल मीडिया पर क्या डाला कि अब उसकी हर तरफ चर्चा है। संतरी से लेकर मंत्री ने तो देखा ही, क्रिकेट का बादशाह कहे जाने वाले भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को भी इस वीडियो ने गहरे तक प्रभावित किया। उन्होंने उस वीडियो को अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर साझा क्या किया कि पूरे देश व क्रिकेट जगत में सुशीला सुर्खी बन गयी। सचिन ने भारत के तेज गेंदबाज रहे जहीर खान को वीडियो टैग कर कहा कि इस लड़की का बॉलिंग एक्शन तुम्हारे जैसा है। जहीर ने भी उस एक्शन को सरल व खूबसूरत बताते हुए सचिन की बात पर सहमति जतायी।
बेहद गुरबत में पली सुशीला मीणा बारह साल की है और एक सरकारी स्कूल में पांचवीं की छात्रा है। उसके माता-पिता को भी नहीं पता कि उसमें क्रिकेट का जुनून कैसे पैदा हुआ। वह तीन साल से क्रिकेट खेलती है। गांव के आसपास अच्छा खेल का मैदान नहीं है। मजदूरी व खेती से जीवन यापन करने वाले रतनलाल मीणा व मां शांति बाई ने जैसे-तैसे गृहस्थी चलाई, मगर बेटी के सपनों को जिंदा रखने का प्रयास किया। वे उसके लिए किसी तरह बॉल आदि का जुगाड़ तो कर लेते थे, लेकिन प्रशिक्षण देने की बात नहीं सोच सकते थे। उन्हें व सुशीला को उस तरह की क्रिकेट की समझ भी नहीं थी। हां, उसके क्रिकेट में रुचि रखने वाले टीचर ईश्वर लाल मीणा का प्रोत्साहन उसे जरूर मिला।
बहरहाल, सोशल मीडिया की बदौलत राजस्थान के प्रतापगढ़ स्थित रामेर तालाब गांव की रहने वाली सुशीला मीणा आज सुर्खियों की सरताज है। बताते हैं कि उसकी गेंदबाजी का एक्शन न केवल सधा हुआ बल्कि वह मध्यम गति के तेज गेंदबाजों की गति से गेंद डालती है। बाद में उसका बैटिंग करते हुए वीडियो भी सामने आया है, जिसमें वह क्रीज से बाहर निकलकर रोहित शर्मा के अंदाज में छक्के लगाती नजर आती है। देश को इस नवोदित क्रिकेटर से बहुत उम्मीदे हैं।
पांचवीं में पढ़ने वाली सुशीला बताती है कि मेरे गुरुजी ने मुझे गेंदबाजी करना सिखाया। वैसे तो मैं तीन साल की उम्र से गांव के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलती रही हूं, लेकिन स्कूल में आने के बाद बहुत कुछ सीखने को मिला। मेरे गुरुजी ईश्वरलाल जी ने मुझे तेज गेंद फेंकने का तरीका बताया। फिर मैंने पढ़ाई के साथ बॉलिंग और बैंटिग करना शुरू किया। मैं दिन में दो घंटे क्रिकेट खेलती हूं। सचिन तेंदुलकर जी का ट्वीट करना मुझे अच्छा लगा। मैं आगे जाकर देश का नाम रौशन करना चाहती हूं। राजस्थान की उप मुख्यमंत्री ने मुझे फोन करके मेरा हौसला बढ़ाया। मुझे अच्छा लग रहा है। बहरहाल, सोशल मीडिया से सुर्खियों में आने के बाद मीणा समाज से लेकर क्रिकेट प्रेमी तक उसकी मदद करने के लिये आगे आ रहे हैं। कोई बैट लेकर आ रहा है तो कोई बॉल। कोई पैसे से परिवार की मदद कर रहा है।
निस्संदेह, प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं, उन्हें बेहतर अवसर और प्रशिक्षण देने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पूरे देश से इस बिटिया को आशीर्वाद मिल रहा है। राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने उसे फोन करके प्रोत्साहित किया है और उसे जयपुर बुलाया है। राजस्थान सरकार के खेल मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने उसे पर्याप्त सुविधा और प्रशिक्षण का वायदा किया है। यहां तक कि राजस्थान रॉयल्स ने उसे अपनी एकेडमी से जोड़ने का वायदा किया है जो नई प्रतिभाओं को क्रिकेट के हुनर से निखारती है। जहां से कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी निकले हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रतिभा को अब नंगे पैर बॉलिंग नहीं करनी पड़ेगी और उसे आगे पढ़ाई व प्रशिक्षण के बेहतर अवसर मिल सकेंगे। इस बात का श्रेय सोशल मीडिया को भी दिया जाना होगा कि उसने एक छिपी प्रतिभा को राष्ट्रीय मंच पर चर्चित बना दिया। अन्यथा देश में कोने-कोने में बिखरी प्रतिभाएं सहयोग, संबल व आर्थिक दिक्कतों के कारण दम तोड़ देती हैं। कमोवेश क्रिकेट ही नहीं अन्य खेलों के गरीब खिलाड़ियों की भी यही त्रासदी रही है कि हम उन्हें बेहतर अवसर नहीं दे पाए और ना ही उनकी प्रतिभा को निखार पाए।
यह विडंबना ही है कि देश में ऐसे गुदड़ी के लालों को तलाशने और निखारने का कोई योजनाबद्ध कार्यक्रम नहीं चलाया जाता। जब कोई प्रतिभा नजर आती है तो सब गुणगान तो करते हैं, लेकिन नई प्रतिभा की तलाश नहीं होती। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को करोड़ो रुपये देने के बजाय हम उभरती प्रतिभाओं को तलाशकर निखारें तो तो हमें कई नगीने मिल सकते हैं।

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