कुंभकर्ण के दलबदल और चैनलों का कोलाहल
आलोक पुराणिक
अब तो डर जाता हूं टीवी देखकर, कहीं हिमयुग आ रहा होता है। कोई बाबाजी बता रहे होते हैं कि प्रलय अब उस मोड़ पर है। एक बाबीजी ने पूरा ग्राफ वगैरह दिखाकर बताया कि सिर्फ इतने ही लोग जायेंगे स्वर्ग में, जो भी स्वर्ग जायेंगे, वो हमारे मठ संप्रदाय के ही होंगे। इसलिए जल्दी रजिस्ट्रेशन करा लो हमारे मठ संप्रदाय में, वरना स्वर्ग का दरवाजा न खुलेगा।
पुराने वक्त में कई बड़ी-बड़ी घटनाएं हो गयीं, बाद में लोग भूल भी गये। अगर वो पुरानी घटनाएं अब हुई होतीं, तो टीवी चैनल इतनी वैरायटी की मार मचाते कि विकट उत्पात हो जाता। पुरानी कथा है कि कुंभकर्ण छह महीने सोते थे। हमारे यहां ऐसे-ऐसे मंत्री हैं, जो पूरे पांच साल सोते हैं। खैर, कुंभकर्ण को उनके भाई रावण उठाते थे, तो उनका उठना मुश्किल होता था।
अब का-सा वक्त होता तो टीवी चैनल वाले लाइव कवरेज पर लगा देते कैमरा टीम को। टीम यही कवरेज करती रहती कि अब रावण के बंदे पहुंच गये हैं कुंभकर्ण के पास। देखिये कुंभकर्ण को एकदम करीब से, सिर्फ हमारे चैनल पर। कुंभकर्ण नहीं उठ रहे हैं। क्या उठेगा कुंभकर्ण, क्यों नहीं उठ रहा है कुंभकर्ण। क्या कुंभकर्ण ने रावण की पार्टी छोड़ दी है। कुंभकर्ण ने क्या दल बदल कर लिया है, जो उठने से इनकार कर रहे हैं। क्यों आखिर क्यों नहीं उठ रहे हैं कुंभकर्ण, कौन जवाब देगा। जनता मांगे जवाब, उठे कुंभकर्ण। कुंभकर्ण इस्तीफा दो, यह मांग भी कोई चैनल कर सकता है। टीवी चैनल कुछ भी मांग सकता है, कुछ भी कह सकता है।
कुंभकर्ण ने उस गद्दा कंपनी से मॉडलिंग के करोड़ों ले लिये हैं, जिसके गद्दों का यह इश्तिहार कि हमारे गद्दे पर ऐसी नींद आये कि टूटे ही नहीं। कुंभकर्ण इस गद्दा कंपनी से करोड़ों लेकर सो गये, अगर उन्होंने नींद तोड़ी, तो करोड़ों का कांट्रेक्ट टूट जाएगा। करोड़ों के लालच में भाई से दगाबाजी- एक टीवी चैनल यह हेडिंग लगा रहा होता।
महाभारत कथा में कर्ण के रथ का पहिया टूटकर अलग हो जाता है, उसे ठीक करने कर्ण उतरता है। यह दृश्य आज के टीवी चैनलों के दौर में इतनी आसानी से न निकल पाता। कर्ण के रथ का पहिया टूटा क्यों- क्या विरोधी पक्ष की साजिश। रथ खरीद घोटाले का शिकार कर्ण, किसने खाया रथ का पहिया। कर्ण के रथ का पहिये का स्कैंडल इतना बड़ा बन जाता कि कर्ण सुबह से शाम तक बस बयान ही दे रहा होता। कोई टीवी चैनल अति उत्साह में उस पेड़ का इंटरव्यू चला देते, जिस पेड़ की लकड़ी से कर्ण का रथ बना था।
कुछ भी हो सकता था, टीवी चैनल नहीं थे, तो कई कांड आराम से संपन्न हो लिये। वरना बहुत विकट रायता फैलता।