कविताएं
महेश चंद्र पुनेठा
शर्त और प्रेम
शर्तें प्रतियोगिता में होती हैं,
शर्तें व्यापार में होती हैं,
शर्तें समझौते में होती हैं,
शर्तें नौकरी में होती हैं।Advertisementरिश्ता तो केवल प्रेम से बनता है
प्रेम तब तक ही प्रेम रहता है,
जब तक उसमें कोई शर्त नहीं होती है।ढकना
घर में कोई भी ऐसी चीज़ नहीं होगी,
जिसे तुमने ढक कर न रखा हो।
कल की लाई हो या फिर वर्षों पुरानी।कोई भी वस्त्र पुराना हो गया हो,
या कट-फट गया हो,
तुम उसे फेंकती नहीं हो,
काट सिल कर सही आकार का बना
पहना देती हो किसी चीज़ को।छतरी के तार टूट गए,
बटन खराब हो गया,
हमने इस्तेमाल करना छोड़ दिया,
पड़ी रही किसी कोने में,
तुम बाज़ार ले गई,
ठीक करवा कर ले आई,
अब के वह ज्यादा खराब हो गई,
तुमने उसका कपड़ा निकाल लिया,
आज स्टैंडिंग फैन को पहना दिया।अर्धशतक पूरा कर दिया तुमने जीवन का,
अट्ठाइस की साझेदारी तो
मेरे साथ ही हो गई है।
अब तक की पारी में
मैंने बहुत सारी गलतियां की,
उसी तरह ढकती रही हो तुम उन्हें भी,
जैसे घर की निर्जीव वस्तुओं को।तुम पूरी पूरी तरह मां पर गई हो।
उदास नदी
उदास बैठी नदी जंगल से बोली,
दुख इतना ही नहीं कि
सड़क दनदनाती आई,
नाैलों धारों,
गाड़ गधेरों
और पेड़ों को
रौंदते हुए आगे बढ़ गई।
इससे बड़ा दुख तो यह है
कि सारे गांव वाले
सड़क के साथ खड़े हो गए।नौले
ये केवल जलस्रोत नहीं,
बल्कि इतिहास के स्रोत भी हैं।
इनके साथ जुड़ी हैं
अनेक खट्टी-मीठी स्मृतियां,
संयोग वियोग के किस्से,
परिस्थितिकी तंत्र में
आ रहे बदलावों के चिन्ह,
मानव हस्तक्षेप के प्रतिफल के संकेतक।ये मनुष्य के लापरवाह होते जाने के
उदाहरण भी हैं,
पीछे हटते हिमनदों और
नदियों के क्षीणकाय होते जाने के बीच,
ये भविष्य की टिमटिमाती उम्मीद हैं।