'ऑटिज्म रोग नहीं, बेहतर वातावरण और काउंसलिंग से सुधार संभव'
रामकुमार तुसीर/निस
सफीदों, 2 अप्रैल
विश्व ऑटिज्म दिवस के उपलक्ष्य में अग्रवाल अस्पताल परिसर में बाल रोग विशेषज्ञों के संगठन आईएपी (इंडियन अकेडमी ऑफ पैडिट्रिशन्स) के जिला जींद अध्यक्ष डॉ. लोकेश अग्रवाल ने पैरामेडिकल स्टाफ व कई अभिभावकों को ऑटिज्म की समस्या को लेकर जागरूक किया। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि ऑटिज्म ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चा असाधारण व्यवहार करता है, उसे संवाद में, बोलने में देर व दिक्कत होती है। वह बार-बार किसी गतिविधि को दोहराता है, उसे किसी सूचना को समझने में दिक्कत होती है और देर लगती है। तेज रोशनी व ऊंची आवाज में वह परेशानी महसूस करता है। उन्होंने बताया कि यह न तो छूत का रोग है और न ही किसी टीके के दुष्प्रभाव से ये समस्या होती है और न ही कोई गलत खानपान इसका कारण है।
डाॅ. लोकेश ने बताया कि जब कोई नवजात 1 साल की उम्र में नाम लेने से नहीं समझता और डेढ़ साल की उम्र में किसी मीनिंगफुल बात पर रियेक्ट नहीं करता तो संदेह होता है कि उसे ऑटिज्म की समस्या है। उन्होंने बताया कि इसका कारण कई बार वंशानुगत रहता है तो कभी वातावरण की वजह से समस्या बनती है। उनका कहना था कि बच्चों के देर से बोलने के कई और कारण भी हो सकते हैं और यदि ऑटिज्म के लक्षण पाकर 3 वर्ष की आयु से पहले समाधान का प्रयास किया जाए तो काफी हद तक इस समस्या को दूर कर किया जा सकता है। उन्हाेंने कहा कि समय रहते ऐसी कमजोरी को डिटेक्ट करके शीघ्र हस्तक्षेप करते हुए सुधार किया जा सकता है। समस्या जब कुछ ज्यादा हो तो बच्चों को डेवलपमेंटल बिहेवरल पैडिट्रिशियन के क्लीनिक में रेफर किया जाता है, जहां उसकी गहन जांच कर उपाय सुझाए जाते हैं।
दो साल के बच्चे से स्क्रीन से रखें दूर
डाॅ. लोकेश ने कहा कि 2 साल तक के बच्चों को स्क्रीन टाइम के दुष्प्रभावों से बचाने को टेलीविजन, कंप्यूटर, स्मार्टफोन आदि से दूर रखना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मार्गदर्शिका में ये स्पष्ट किया गया है कि 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों का स्क्रीन एक्सपोजर जीरो हो। उनकी संस्था आईएपी हर माह चिकित्सा के किसी न किसी विषय पर काम करती है। पिछले महीने 'एनीमियामुक्त भारत' मुहीम के तहत देशभर में उनकी संस्था ने सेवा दी और इस बार प्रति वर्ष 2 अप्रैल को निर्धारित 'विश्व ऑटिज्म दिवस' पर 'आईएपी की बात-ऑटिज्म के साथ' शीर्षक के तहत देशभर में बच्चों को समर्पित जनहित की मुहीम उनके संगठन ने छेड़ी है, जिसमें डॉक्टरों द्वारा पैरामेडिकल स्टाफ व अभिभावकों तथा आम लोगों को ऑटिज्म की समस्या को लेकर सचेत किया जा रहा है।