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एक युगीन राजनेता

04:00 AM Dec 28, 2024 IST

निस्संदेह, ख्यात अर्थशास्त्री और एक कुशल प्रशासक डॉ. मनमोहन सिंह का अवसान देश-दुनिया के लिये एक दुखद क्षण है। आज के दौर में उन जैसा कुशाग्र बुद्धि का अर्थशास्त्री व सहज-सरल व्यक्ति होना दुर्लभ ही है। वे ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे कि तमाम विषम परिस्थितियों में भी अपनी सज्जनता और विनम्रता बरकरार रखते थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग गठबंधन की पराजय के अगले दिन 17 मई को प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में उन्होंने चिरपरिचित विनम्रता को दोहराया कि बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए भी उनका जीवन एक खुली किताब रहा है। उनके इस कथन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि उन्होंने वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में सदैव राष्ट्र के लिए अपना सर्वोत्तम देने का प्रयास किया। पहले वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की नीतियों का कुशल नेतृत्व किया। इसके उपरांत प्रधानमंत्री के रूप में महती भूमिका निभायी। निस्संदेह परिस्थितियां हमेशा हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं होती, लेकिन कड़ी मेहनत से उसे हासिल किया जा सकता है। वे कहते थे ‘परिश्रम मेरा उपकरण और सच्चाई मेरा प्रकाश स्तंभ रहा है।’ निर्विवाद रूप से सच्चाई और पारदर्शिता सदैव उनके व्यक्तित्व की आभा रही। उनके नेतृत्व वाली सरकार की एक बड़ी उपलब्धि वर्ष 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम का अस्तित्व में आना था। इस ऐतिहासिक कानून का मकसद देश के नागरिकों को सशक्त बनाना और सरकारी विभागों के कामकाज में आवश्यक जवाबदेही सुनिश्चित करना था। इस सार्थक पहल से तंत्र के चारों ओर बना गोपनीयता का पर्दा आखिरकार हटा दिया गया। कालांतर लोगों को अहसास हुआ कि लोकतंत्र में सिर्फ वोट डालने के अलावा भी उनके तमाम अधिकार हैं। इसके अलावा वर्ष 2005 में एक अन्य अग्रणी सुधार के रूप में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू होना भी ग्रामीण विकास की यात्रा में मील का पत्थर साबित हुआ।
निर्विवाद रूप से मनरेगा ने सामाजिक कल्याण के उपाय के रूप में ग्रामीण परिवारों की अाजीविका सुरक्षा को मजबूत करके जीवन बदलने में मदद की। जिसका सकारात्मक प्रतिसाद अगले आम चुनावों में संप्रग को मिला भी। इसके बावजूद मनमोहन सिंह अपनी सरकार की पहलों के बारे में शेखी बघारने और खुद अपनी पीठ थपथपाने में विश्वास नहीं रखते थे। उनकी प्राथमिकता खुद से पहले देश सेवा की रही है। लेकिन उनकी विफलता उन विसंगतियों को दूर न कर पाने में रही, जिसके चलते कालांतर यूपीए सरकार का पतन हुआ। यही वह चूक थी जिसके चलते भाजपा संप्रग सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुनाकर कांग्रेस से सत्ता छीनने में सफल रही। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते को अमलीजामा पहनाया जा सका। जिसने कालांतर दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग के लिये गेमचेंजर की भूमिका निभायी। इसके बाद ही दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयां मिल सकी। निश्चय ही वर्ष 2008 के आतंकी हमले से भारत के मर्म पर चोट लगी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई से बचने का फैसला किया। इस व्यावहारिक निर्णय ने दोनों पड़ोसियों को एक और युद्ध में फंसने से रोक दिया था। हालांकि, वे आमतौर पर मृदुभाषी और आत्मकेंद्रित व्यक्ति थे, लेकिन जब स्थितियां अस्वीकार्य हो जाती थी तो वे अपने मन की बात कहने से नहीं चूकते थे। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान से पहले जारी एक पत्र में उन्होंने चुनावी समर में वोटों के लिये विभाजनकारी भाषणों को दुर्भाग्यपूर्ण बताकर कड़ी अलोचना की थी। साथ ही राजग के शीर्ष नेतृत्व को सार्वजनिक संवाद की गरिमा बनाये रखने को कहा। बहरहाल, उनके योगदान को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि देश के विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का हमेशा सम्मान किया जाएगा। निस्संदेह, देश के सत्ताधीश मनमोहन सिंह की विरासत से बहुत कुछ सीख सकते हैं। जो बताते थे कि कोई भी व्यक्ति या सरकार देश से बड़ी नहीं हो सकता। यह भी कि काम बोलता है, उसे शब्दों से बयां करने की जरूरत नहीं है।

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