एकदा
वर्ष 1970 के दशक की शुरुआत में बाढ़ ने असम के एक सुदूर गांव को तबाह कर दिया था। जब भूपेन हजारिका को इस आपदा के बारे में पता चला, तो वे गांव पहुंचे। उन्होंने देखा कि लोग हताश थे। भूपेन दा राहत कार्य में जुट गए। उन्होंने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके राहत सामग्री जुटाई और खुद गांव-गांव जाकर उसे वितरित किया। उन्हें अहसास हुआ कि लोगों को सिर्फ भौतिक मदद की ही नहीं, बल्कि मानसिक सहायता की भी जरूरत है। इसलिए वे हर शाम गांव की चौपाल पर बैठते और लोगों से मिलते और उन्हें गीतों के जरिए हिम्मत और उम्मीद का संदेश देते। उन्होंने एक नया गीत भी बनाया, जिसमें बाढ़ पीड़ितों के संघर्ष और उम्मीद को दर्शाया गया था। यह गीत बाद में असम में बाढ़ पीड़ितों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। भूपेन दा के इस काम ने न सिर्फ ग्रामीणों को राहत पहुंचाई, बल्कि उन्हें यह अहसास भी कराया कि वे अकेले नहीं हैं। उनकी पहल ने कई अन्य कलाकारों और नागरिकों को प्रेरित किया, जिन्होंने बाद में राहत कार्य में हिस्सा लिया।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार